- डॉ कामिनी वर्मा
ज्ञानपुर , भदोही ( उत्तर प्रदेश )


ए माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी.......

 ईश्वर हर किसी के पास नहीं पहुँच पाया होगा, शायद इसीलिए अपनी प्रतिकृति माँ के रूप में पृथ्वी पर भेज दी। माँ संतान के लिए ईश्वर का अद्वितीय उपहार है। माँ की दुआओं में दुनिया की सारी दौलत है , माँ भाव है, दुलार है , ममता का लहराता सागर है जिसके प्रेम का कोई ओर छोर नही है । माँ वो दिल है जिसको निकाल संतान किसी को देने के लिए चल देती है परंतु उसी सन्तान को ठोकर लगने पर माँ का दिल कराह उठता है और उसे संभल कर चलने की हिदायत देता है। एक माँ ही है जिसका प्रेम विपरीत परिस्थितियों में भी नही बदलता। संतान उसके साथ चाहे जितना भी गलत व्यवहार करे किंतु माँ कभी उसे शाप नही देती।
     'पुत्र कुपुत्र जायते, माता कुमाता न भवति।,माँ से ही घर की परिभाषा बनती है । माँ के अभाव में घर ईंटों से बना मकान है।
    माँ के दिये संस्कारों से व्यक्ति महान बनता है और समाज मे सम्मान पाता है। जितने भी महापुरुष व गौरवशाली महिलाएं हुई हैं उनकी श्रेष्ठता का कारण माँ द्वारा की गई परवरिश होती है।कहा भी जाता है यदि व्यक्ति के गुणों की परीक्षा करनी है तो उसकी माता के गुणों को जान लो। माता की प्रेरणा से ही ध्रुव पिता और राज सिंहासन से भी ऊँचा स्थान प्राप्त करके आज भी आसमान में तारा बनकर उत्तर दिशा में चमक रहा है । वीर माता जीजाबाई के त्याग और प्रेरणा से शिवाजी को छत्रपति बनने का गौरव प्राप्त हुआ । स्त्री त्याग और बलिदान की मूरत होती है। कर्तव्यनिष्ठा की भावना उसमें कूट कूटकर भरी होती है । ऐसी ही बलिदानी कर्तव्यनिष्ठ माँ पन्ना धाय के त्याग को कौन नही जानता जिन्होंने कर्त्तव्य पालन के लिए उफ किये बिना अपने पुत को राजपुत्र बचाने के लिए बलिदान कर दिया  ।

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