यह घटना 20 दिसंबर 2025 की तड़के हुई, जब सैरांग (मिजोरम) से नई दिल्ली जा रही राजधानी एक्सप्रेस (ट्रेन नंबर 20507) वन क्षेत्र से गुजर रही थी। रेलवे अधिकारियों के अनुसार, लोको पायलट ने हाथियों का झुंड देखते ही इमरजेंसी ब्रेक लगाए, लेकिन कम दृश्यता और तेज गति के कारण टक्कर टाली नहीं जा सकी। मृत हाथियों में तीन वयस्क और चार बच्चे शामिल थे। घायल बच्चे को तुरंत वन्यजीव बचाव केंद्र में भर्ती कराया गया, जहां उसका इलाज चल रहा है। मृत हाथियों के शवों का पोस्टमॉर्टम किया गया और उन्हें घटनास्थल के पास ही दफनाया गया।
असम उत्तर-पूर्व भारत का वह राज्य है जहां एशियाई हाथियों की सबसे बड़ी आबादी में से एक रहती है। राज्य में लगभग 7,000 जंगली हाथी हैं, जो जैव-विविधता का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये हाथी पारिस्थितिकी तंत्र में संतुलन बनाए रखते हैं – वे बीजों को फैलाते हैं, जंगलों को स्वस्थ रखते हैं और अन्य प्रजातियों के लिए आवास बनाते हैं। लेकिन मानवीय गतिविधियों के बढ़ने से इनका प्राकृतिक आवास सिकुड़ता जा रहा है। जंगल कटाई, कृषि विस्तार और बुनियादी ढांचे के विकास ने हाथियों को मानव बस्तियों और रेल ट्रैकों के करीब धकेल दिया है। नतीजतन, मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ रहा है, जिसमें ट्रेन से टक्कर जैसी घटनाएं आम हो गई हैं।
रेलवे के अनुसार, दुर्घटना स्थल कोई घोषित हाथी कॉरिडोर नहीं था, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि हाथी अब पारंपरिक मार्गों से हटकर नए रास्तों का इस्तेमाल कर रहे हैं। सर्दियों में कोहरा और कम रोशनी ऐसी घटनाओं को और खतरनाक बना देती है। पिछले कुछ वर्षों में असम में ट्रेन से हाथियों की टक्कर में कई मौतें हुई हैं। केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, 2020 से 2024 तक देशभर में ट्रेन हादसों में 79 से अधिक हाथियों की जान गई है, जिनमें असम का हिस्सा सबसे बड़ा है। यह न केवल वन्यजीवों के लिए खतरा है, बल्कि जैव-विविधता और पर्यावरण संतुलन के लिए भी बड़ा नुकसान है।
इस घटना पर असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने गहरा दुख व्यक्त किया है। उन्होंने वन विभाग को निर्देश दिए हैं कि घटना की विस्तृत जांच की जाए और विशेष रूप से कम दृश्यता वाले मौसम में वन्यजीव गलियारों की सुरक्षा मजबूत की जाए। मुख्यमंत्री ने कहा कि ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है। वहीं, वन्यजीव संरक्षण संगठनों ने रेलवे और वन विभाग के बीच बेहतर समन्वय की मांग की है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि संवेदनशील क्षेत्रों में ट्रेनों की गति सीमा तय की जाए, सेंसर-आधारित चेतावनी प्रणाली लगाई जाए, और हाथी आंदोलन की रीयल-टाइम निगरानी की जाए।
इसके अलावा, हाथी कॉरिडोर के बाहर भी निगरानी बढ़ाने की आवश्यकता है। कुछ क्षेत्रों में अंडरपास या ओवरपास बनाए जा रहे हैं, ताकि हाथी सुरक्षित ट्रैक पार कर सकें। लेकिन इन उपायों को पूरे राज्य में लागू करने में समय लगेगा। वन्यजीव विशेषज्ञ बिभब तालुकदार जैसे लोग लंबे समय से बेहतर समन्वय की वकालत कर रहे हैं। उनका कहना है कि तकनीक का इस्तेमाल – जैसे वाइब्रेशन सेंसर या ड्रोन निगरानी – से ऐसी घटनाओं को काफी हद तक रोका जा सकता है।
यह घटना हमें याद दिलाती है कि विकास और प्रकृति संरक्षण के बीच संतुलन जरूरी है। रेल नेटवर्क का विस्तार जरूरी है, लेकिन वन्यजीवों की सुरक्षा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। असम जैसे राज्य, जहां प्रकृति की समृद्धि है, वहां ऐसी दुर्घटनाएं न केवल जानमाल का नुकसान करती हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए पर्यावरणीय विरासत को खतरे में डालती हैं। सरकार, रेलवे और स्थानीय समुदायों को मिलकर काम करना होगा ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदियां न दोहराई जाएं।
वन्यजीव प्रेमी और पर्यावरणविद् इस घटना को एक चेतावनी के रूप में देख रहे हैं। हाथी जैसे विशाल और बुद्धिमान प्राणी हमारी धरती की शान हैं, उनकी रक्षा हमारी जिम्मेदारी है। उम्मीद है कि इस हादसे से सबक लेकर मजबूत नीतियां बनेंगी और हाथियों को सुरक्षित आवागमन मिलेगा।
रिपोर्टर सौरभ यादव जौनपुर
हिंदी संवाद न्यूज़

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