नहाय खाय के साथ छठ महापर्व की शुरुआत से चुकी है और इस पर्व से मन आस्था से भर जाता है। चार दिनों के इस पर्व के लिए महीनों पहले से तैयारियां कर लेते हैं। इस पर्व को लेकर उत्साह इतना होता है कि इस व्रत की कठिनाई महसूस ही नहीं होती। इस पर्व में आस्था एक नई ऊर्जा का संचार कर जाती है। आइए जानते हैं पहले दिन नहाय खाय का महत्व और क्यों मनाया जाता है छठ पर्व...

पूर्वांचल के लोगों का महापर्व छठ की शुरुआत आज से हो चुकी है। आज नहाय-खाय के साथ ही लोक आस्था का पर्व या कहें प्रकृति पर्व, सूर्योपासना के पर्व की शुरुआत हो चुकी है। चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व का समापन सोमवार सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य के साथ होगा। वैसे तो यह बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों का प्रमुख पर्व है, लेकिन समय के साथ दूसरे प्रदेश के लोग भी अब इस महापर्व को मनाने लगे हैं। खासकर दिल्ली और एनसीआर में देश के विभिन्न हिस्से के लोग एक साथ एक ही घाट पर यह पर्व करते देखे जा सकते हैं।

क्यों मनाया जाता है छठ महापर्व
छठ पूजा का व्रत करने वाले 36 घंटे के करीब निर्जला उपवास करते हैं, जो शनिवार को खरना के साथ शुरू होगा और सोमवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद खत्म होगा। मुख्य रूप से यह पर्व सूर्य उपासना के लिए किया जाता है, ताकि पूरे परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहे। साथ ही यह व्रत संतान के सुखद भविष्य के लिए भी किया जाता है। मान्यता है कि छठ का व्रत करने से निसंतान को संतान की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। यह महापर्व चार दिन का होता है और छठ माई के लिए व्रत रखा जाता है। जिसमें पहला दिन नहाय खाय, दूसरा दिन खरना, तीसरा दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य और चौथे दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देते हैं।

नहाय-खाय का महत्व
छठ पर्व शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हो चुका है। छठ में नहाय-खाय का विशेष महत्व है, क्योंकि यह छठ पर्व के 36 घंटे के कठिन व्रत के लिए तैयार होने का दिन है। नहाय-खाय का महत्व इसलिए भी माना जाता है कि इस दिन किए जाने वाला सात्विक भोजन जहां व्रती को तीन दिन तक चलने वाली पूजा के लिए मानसिक व शारीरिक रूप से मजबूत बना देता है, वहीं 36 घंटे के कठिन व्रत के लिए शक्ति भी प्रदान करता है।

भैयादूज के बाद शुरू होती है तैयारी
छठ में कई तरह के प्रसाद चढ़ाए जाते हैं, जिनमें महत्वपूर्ण ठेकुआ होता है। ठेकुआ गेहूं के आंटे से बनता है। इसके लिए इसे पहले धोकर सुखाया जाता है और फिर इसे खुद से पीसा जाता है। हालांकि अब कई आटा चक्की वाले ऐसे भी हैं, जो चक्की को अच्छे से साफ कर विशेष रूप से छठ के प्रसाद की ही पिसाई करते हैं। लेकिन, अभी भी ज्यादातर व्रती खुद ही प्रसाद की पिसाई अपने घर में करते हैं। गेहूं को सुखाने के समय भी खास एहतियात बरतना पड़ता है। जैसे कि कोई पक्षी उसको झूठा ना कर दे। ऐसे में जब तक गेहूं सूखता है, किसी ना किसी को वहां मुश्तैद रहना पड़ता है। हालांकि प्रसाद बनाने की तैयारी भैयादूज के बाद शुरू होती है। जैसे कि नहाय खास से एक दिन पहले गेहूं को धोया जाता है। नहाय खाय के दिन यह सूख जाता है तो खरना वाले दिन सुबह इसे पीसा जाता है या फिर चक्की पर पिसवाया जाता है।

इस बार छठ पर्व
1. शुक्रवार: नहाय-खाय

 2. शनिवार: खरना

  3. रविवार: शाम का अर्घ्य
अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने का समय
शाम: 5:26 बजे
  4. सोमवार: सुबह का अर्घ्य
उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने का समय
सुबह: 6:47 बजे


रिपोर्टर : शिवानंद मिश्रा

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