शरीर से शरीर की बीमारियों के इलाज की चिकित्सा विज्ञान के रूप में है योग- डॉ.उमेश शर्मा   

आगरा। योग शास्त्र के अनुसार आप चीजों को महसूस करना सीख लीजिये क्योंकि योग एक सीधा विज्ञान है। योग करने से पहले, इसको जानना भी अति आवश्यक है तभी लाभदायक होगा। 

इसी महत्वपूर्ण विचार को आगे बढ़ाते हुये डॉ उमेश शर्मा ने अपने वक्तव्य में सभी को विश्व योग दिवस की शुभकामनाएं देते हुए बताया कि योग गुरु श्री दिनेश गुप्ता जी (प्रफुल्ल ) से स्वयं मैं,मेरा बड़ा बेटा कनिष्क देव और मेरा छोटा बेटा मनु देव योग का नियमित प्रशिक्षण लेते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार जब कोई व्यक्ति योग करता है तो उसे फिजिकल ट्रेनिंग के मुकाबले काफी कम ऊर्जा खर्च करनी होती है, जबकि इसका फायदा सामान्य एक्सरसाइज के मुकाबले काफी ज्यादा होता है। जब देश साल से प्रकृति मूक रहकर मानुषी को चेतावनी दे रही थी , कि ओ मानव ! मेरे साथ ज्यादा खिलवाड़ उचित नही,तब इशारा यह था कि इंसान हो इनसान बनाकर रहो , ईश्वर बनने कि कोशिस उचित नही है , अर्थात कोरोना संक्रामण महामारी का विकराल रूप और मौत का तांडव प्रारम्भ हुआ तो यही योग सर्वाधिक बचाव कि मुद्रा में आया, और इसने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई , आज अंतराष्ट्रीय योग दिवस भले कि मना रहे हो हम सब यह वास्तव  में हमारे मनीषियों ऋषि पतंजलि और उनके बाद अनगिनत ऋषि मुनियों के प्रति कृतग्न दिवस  और प्रकृति का आभार दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए,या मानव जाती पर ऋषियों का उपकार दिवस मनाएँ ।
भारत के समृद्ध और गौरवशाली संस्कारों की धनी विधाओं में से एक विधा-विज्ञान  ‘योग’ का लोहा समूचे विश्व ने माना है।  इस कारण आज पूरा विश्व समुदाय हमारी विधाओं और वैज्ञानिक परम्पराओं का कायल है और उनको अपने जीवन व दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा बना रहा है , जिसका परिणाम ‘अंतराष्ट्रीय योग दिवस’ का एक महाउत्सव की तरह विश्व भर  में मनाया जाना  इसका जीता जागता प्रयोगात्मक उदाहरण है ।

 अध्यात्म से जुड़े ग्रंथ कहते हैं कि ईश्वर में किया गया विश्वास, ईश्वर की धारणा— अनेक विधियों में से एक विधि है सत्य तक पहुंचने की है जो अति सरल और प्रभावी है वो है योग । यदि ईश्वर कि अनुभूति विज्ञान के माध्यम से करनी है तो योग अपनाओ ,योग साइकोलोजी,फिलोसाफी और आसन/प्राणायाम का वैज्ञानिक मिश्रण तो है ही , अतमा कि भी शुद्धि की अचूक विधा भी है  जो कि अद्भुत विज्ञान है। किसी भी धर्म का कोई भी व्यक्ति या प्रबुद्ध व्यक्ति बिना योग से गुजरे हुए सत्या तक नही पहुंचा है,सभी का एक ही माध्यम रहा है वो है योग। मेडिटेशन बुद्धि और विवेक को जोड़ता है। पिछले वर्ष से योग के प्रति विश्व का अटूट भरोसा रहा है , यह जीवन दायक सिद्ध हुआ है। योग सनातन धर्म के गर्भ से निकला वो प्रकाशपुंज है जिसका किसी भी विशेष प्रकार के अन्यथा धर्म से कोई संबंध नहीं है। शास्त्रानुसार यदि कोई भी व्यक्ति, जो सत्य को प्राप्त हुआ है, या कैवल्य कि प्राप्ति कर के अमर हुआ है तो वो  बिना योग से गुजरे हुए नहीं हुआ । उन्होने भी योग कि महत्ता को माना कि योग के अतिरिक्त जीवन के परम सत्य तक पहुंचने का कोई उपाय नहीं है। यह अमूल्य देन केवल और केवल हमारे मनीषियों और ऋषिकुल स्वर्णिम ज्ञान-विज्ञान से ओतप्रोत  विचारों और सटीक प्रयोगों की कसौटी पर खरी सत्य विज्ञान का परिणाम है ,धनी हैं वो मनीषी ऋषि पतंजलि जिन्होने बिना भेदभाव व नीना भौगोलिक विषमता किए मानव जीवन को दीर्घायु व निरोगी सशक्त संजीवन रूपी विधा को पीढ़ी दर पीढ़ी और भविष्य कि पीढ़ियों के लिए को सौंपा। जिन्हें हम धर्म कहते हैं वे विश्वासों के साथी हैं। योग विश्वासों का नहीं है, जीवन सत्य की दिशा में किए गए वैज्ञानिक प्रयोगों की सूत्रवत प्रणाली है। इसलिए पहली बात यह कि योग विज्ञान है, विश्वास नहीं ।मध्यमार्गी विचारधारा  के विचारक कहते हैं कि नास्तिक भी योग के प्रयोग में उसी तरह प्रवेश पा सकता है जैसे आस्तिक। योग नास्तिक-आस्तिक की भी चिंता नहीं करता है। विज्ञान आपकी धारणाओं पर निर्भर नहीं होता; विपरीत, विज्ञान के कारण आपको अपनी धारणाएं परिवर्तित करनी पड़ती हैं। कोई विज्ञान आपसे किसी प्रकार के बिलीफ, किसी तरह की मान्यता की अपेक्षा नहीं करता है। विज्ञान सिर्फ प्रयोग की, एक्सपेरिमेंट की अपेक्षा करता है। विज्ञान कहता है, करो, देखो। विज्ञान के सत्य चूंकि वास्तविक सत्य हैं, इसलिए किन्हीं श्रद्धाओं की उन्हें कोई जरूरत नहीं होती है, परंतु यदि श्रद्दहोन का तालमेल ल्करके इस मार्ग पर चले तो अवश्य ही अद्भुत विज्ञान के परिणाम सामने आते हैं ।  

दो और दो चार होते हैं, माने नहीं जाते। योग कि क्रियाएँ भी इसी प्रकार हैं म क्योंकि यह विज्ञान है ,विज्ञान मान्यता से शुरू नहीं होता; विज्ञान खोज से, अन्वेषण से शुरू होता है। वैसे ही योग भी मान्यता से शुरू नहीं होता; खोज, जिज्ञासा, अन्वेषण से शुरू होता है। इसलिए योग के लिए सिर्फ प्रयोग करने की शक्ति की आवश्यकता है, प्रयोग करने की सामर्थ्य की आवश्यकता है, खोज के साहस की जरूरत है; खोज को विश्वास कि कसौटी कि जरूरत है । योग का पहला सूत्र है कि जीवन ऊर्जा है, लाइफ इज़ एनर्जी। जीवन शक्ति है। बहुत समय तक विज्ञान इस संबंध में राजी नहीं था; अब राजी है। लेकिन विगत तीस वर्षों में विज्ञान को एक-एक कदम योग के अनुरूप जुट जाना पड़ा है।वर्ष 2015-16 के लगभग योग की क्रियाओं के लिए वैज्ञानिक प्रभाव पर भारत के वैज्ञानिक जुटे और प्रयोग किया गया, अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाए जाने के ऐलान से बहुत पहले से एक डिफेंस लैब में कुछ विज्ञानीयों ने योग पर रिसर्च किया । ये जानने की कोशिश कर की कि आखिर योग के पीछे का विज्ञान क्या है, इंसानी शरीर और बायोकेमिस्ट्री योग के प्रति कैसे रिएक्ट करते हैं?सरकार द्वारा एवं सेनाओ व अन्य बालों में योग को नियमित करने से पहले एक छोटी सी रक्षा शोध लैबोरेट्री योग के पीछे के विज्ञान को समझने की कोशिश कर रही है। यहां आधुनिक हाईटेक मशीने जुड़ी हैं और इसके जरिए योग के आसनों के दौरान दिल की धड़कनों, ईसीजी, सांस लेने के पैटर्न और तंत्रिकाओं पर होने पर असर पर नज़र रखी जा रही है। ये सारी कवायद पौराणिक जानकारियों से आधुनिक विज्ञान को जोड़ने की है और यह सत्य सिद्ध हुई। योग आत्मा का विषय है जो स्वानुभूति कराता है। मानव के विचारों को एकाग्र कर भौतिक से सूक्ष्म, सूक्ष्म से अतिसूक्ष्म तक ले जाकर आत्मीय-बोध कराता है। योग का संबंध अंत:करण और बाह्य दोनों से है। योग एक व्यवस्थित नियम को प्रतिपादित करता है। योग शरीर को अनुशासित ढंग से रखता है। मन को उद्देश्यपूर्ण दिशा में चलने का बोध देता रहता है। योग एक प्रयोग भी है, क्योंकि यही मनुष्य को प्रकृति के अनुकूल चलने के लिए प्रेरित करता है। विचार गति है, भाव उत्पत्ति है और शब्द अभिव्यक्ति है। योग में सबका अपना महत्वपूर्ण योगदान है। यह पूरी तरह से शरीर के धर्म का प्रकृति के अनुकूल बोध कराता है। मानव शरीर में ही संपूर्ण ब्रह्मांड का वैभव छिपा है। जिसे पहचानना और जानना आवश्यक है। संपूर्ण ब्रह्मांड  की चेतना और प्रारूप को पाकर भी मानव सांसारिक वाटिका में भटकता रहता है। योग जीवन का अंग है , इससे असाध्य से असाध्य रोगो का इलाज संभव है। इसलिए योग को माध्यम बनाकर आज और अभी से शरीर रूपी प्रयोगशाला का उपयोग कर सदैव संकल्पित स्वरूप को प्राप्त कर स्वस्थ्य,निरोगी और सुखमय जीवन जिएँ ।प्रकृति , सनातन धर्म की परंपराओं, ऋषि मुनि व पूर्वजों का भार ज्ञपित करें और प्रतिदिन योग और पेड़-पौधो कि देखभाल रोपण करें ,प्रकृति की गोद में पुत्रवत बैठे और उसका सम्मान करें।

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