भारत में भावनाओं, और परिवार का जो है, संस्कार |
पूरा विश्व उसको, नही प्राप्त कर सकता,
चाहे लगा दे शक्ति अपार ||
हम भारत माता की महान संस्कृति पर,
कर सकते हैं, जापान, यूरोप, अमेरिकी,
सुखों का श्रृंगार ||
मिल कर भारतीय संस्कृति और पाश्चात्य सुखों का भण्डार |
भारत ऐसा देश होगा, जिसके आगे स्वर्ग है बेकार ||
हम है देश द्रोही, भ्रष्टाचार, प्रदुषण के शिकार |
इसलिए बेशकीमती कोहिनूर (भारत) |
सडाघ भरे कीचड़ में सिसक रहा लाचार||
हमने अपने संस्कारों को छोड़,
विदेशी कुरीतियों को लिया धार |
मेहनत, लगन देश प्रेम छोडकर
व्यभिचार,,दुर्व्यसनों में लिप्त धुआंधार ||
हम विश्व के सर्वाधिक सुखी हो सकते है
यदि छोड़ दे भ्रष्टाचार |
हम ओलंपिक में ताज पहन सकते है |
यदि कर ले प्रदुषण में सुधार ||
पालीथीन, कूड़ा, कचरे का,
फ़ैल रहा ऐसा कहर |
भोपाल गैस के ४० प्रतिशत जहर में
दवाइयों के सहारे,
सिसक रही, घिसट रही, जीवन की डगर ||
भारतीय सौ में १०१ बीमार,
विदेशी एक हजार में एक बीमार |
भारतियों के सिसकती उम्र ५६ वर्ष
विदेशी जिये, ८६ बसंत कि बहार ||
लाखो गुना दवाई खाते,
लाखों गुना सिसकते, घिसते, पिछडते जाते |
लाखों गुना घमंड दिखाते,
अपने को महान बताते ||
सच्चाई से मुख को छिपाते,
पूजन भोजन स्थल पर, कीड़े बिलबिलाते |
जल जलकर ख़ाक हुये,
परन्तु ऐठन अपनी बढ़ाते जाते ||
लानत और धिक्कार है, ऐसे लोगों पर,
जो अपने घर को लूट-लूटकर ऐश मनाते
शराब खून पीकर कानून को घोलकर
शर्म व स्वाभिमान को बेचकर |
अपने को मोर्डन बताते ||
कठोर नियम पालन करवा सके, चाहिये ऐसी सरकार,
भोजन और स्वांश से ज्यादा है, इसकी दरकार |
पहले मतदान, फिर भोजन, स्वयं सुधरे, सुधरेगा जग जीवन ||   

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