भारत एक शांतिप्रिय देश है यहाँ न केवल लोगों के व्यवहार में शालीनता पायी जाती है बल्कि यहाँ की बोली भी सबसे मीठी मानी जाती है | यह न केवल अपने संस्कृत और संस्कार से विश्व में प्रसिद्ध है बल्कि विश्व के कोने - कोने से लोग यहाँ आने की ख्वाहिस रखते है जिनमे कुछ भाग्यशाली लोग ही है जो भारत की संस्कृत को नजदीक से समझने का अनुभव उठा पाते है | भारत के नवीनतम जनसँख्या के आकड़ो को देखा जाय तो भारत की जनसँख्या १,२१०,१९३,४२२ (१मार्च २०११ की जनगणना के अनुशार) है | विश्व के कुल १४२ देशों की कुल आबादी में भारत की आबादी का हिस्सा १७.१२ % है | यह अपनी जनसँख्या के आधार पर विश्व में दितीय स्थान पर है | यदि बीमा की बात करें तो भारत में बीमा व्यवसाय के लिये अपार सम्भावनाये है | जीवन बीमा में यदि प्रति व्यक्ति प्रीमियम की बात करे तो यह डालर ४९ मात्र है तथा बीमा पेनरेसन मात्र ३.४० प्रतिशत कुल आबादी का है जबकि सामान्य बीमा में औसत प्रीमियम प्रति पॉलिसी डालर १० मात्र है और सामान्य बीमा पेनरेसन मात्र ०.७० प्रतिशत ही है और यह हाल वर्ष २०११ के नवीनतम आकड़ो के आधार पर है | इन्ही आकड़ो से अंदाजा लगाया जा सकता है की भारत में बीमा व्यवसाय (जीवन एवं सामान्य) की कितनी सम्भावनाये विद्यमान है | सम्पूर्ण बीमा उद्योग की बात करें तो भारत में औसत प्रीमियम डालर ४९ मात्र है जबकि ४.१० प्रतिशत तक ही बीमा की पहुँच है |

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा जारी आकड़ो के आधार पर, वैश्विक स्तर पर यदि सकल घरेलू उत्पाद की तुलना करे तो चाइना नंबर दो पर है और जापान नंबर तीन पर जबकि भारत का स्थान इस श्रेणी में दसवें स्थान पर है | यदि इसी बात को दूसरे आधार पर प्रस्तुत किया जाय तो चाइना जनसंख्या के आधार पर नंबर १ है और भारत नंबर दो पर इस श्रेणी में चाइना नंबर दो पर है जबकि भारत का स्थान १० है | यदि चाइना के विकास की गति के पीछे का कारण जाना जाय तो वहाँ बोली जाने वाली भाषा का महत्वपूर्ण स्थान है | चाइना में चाइनीज भाषा न केवल बोली जाती है बल्कि समस्त क्रियान्वयन इसी भाषा में किये जाते है | ठीक यही हाल विश्व की सकल घरेलू उत्पाद में तृतीय स्थान रखने वाले जापान का भी है जहाँ पर न केवल जापानीज भाषा बोली जाती है बल्कि सारे क्रियान्वयन जापानीज भाषा में किये जाते है | इन बातो से एक बात निकलकर सामने आती है कि किसी देश कि उन्नति तभी हो सकती है जबकि उस देश की भाषा कि उन्नति हो और वह तभी संभव है जबकि उस देश कि भाषा को सभी क्रियान्वयन में अनिवार्य किया जाय |

भारत में, भारतीय जीवन बीमा निगम के आरंभ से ही बीमा का विकास होता चला आ रहा है और इसमे तेजी से गति मिली जब निजी बीमाकर्ताओं को इस क्षेत्र में कार्य करने की अनुमति भारत सरकार द्वारा बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण की स्थापना के पश्चात उसकी निगरानी में दिया गया | निजीकरण के पश्चात बीमा के क्षेत्र में व्यापक परिवर्तन हुये है और होते चले जा रहें है पर उनमे से एक परिवर्तन जिसने विशालकाय राक्षस का रूप धारण कर लिया है वह है अंग्रेजी | बीमा के निजीकरण के पश्चात बीमाकर्ताओं ने बीमा के क्षेत्र में अंग्रेजी का जमकर उपयोग करना शुरू किया है प्रत्येक फार्म अंग्रेजी के रूप में आम लोगों तक पहुँचा और लोग अंग्रेजी की बारीकियों को नही समझ पाए नतीजन अपनी मेहनत की कमाई भी बीमा में गवां बैठे | निजी बीमाकर्ताओं की तो नीव ही अंग्रेजी पर टिकी हुई है | खासकर ऐसे बीमाकर्ता जो विदेशी साझेदार के साथ इस व्यवसाय में कार्यरत है | इस अंधी रेस में भारतीय जीवन बीमा निगम ने भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया चाहे वह अपनी साख बचाने के लिये या फिर प्रतियोगिता में बने रहने के लिये जिसकी वजह से भारत में आज व्यावसायिक क्षेत्र में न केवल बीमा में बल्कि प्रत्येक क्षेत्र में अंग्रेजी का बोलबाला है | आज अंग्रेजी भाषा शान का प्रतीक भी बन चूका है | जहाँ एक तरफ़ हम उद्योग का विकास सिर्फ इसलिए नही कर पा रहे है कि हमारे यहाँ व्यावसायिक वातावरण है ही नही वही हम अपनी जमीनी सच्चाई को भूलकर अंग्रेजी के गुलाम बनते चले जा रहे है |

यदि भारत के नवीनतम जनसँख्या के आंकड़ो पर गौर करें तो कुल आबादी का मात्र १२ पर्तिशत लोग ही इंग्लिश भाषा कि समझ रखते है (जन गणना २०११ के अनुशार) | शेष अन्य लोग हिंदी या अन्य क्षेत्रीय भाषा की समझ है | यदि इन्ही आधार पर  हिंदी भाषा की बात करें तो २००१ की जनसँख्या के अनुशार ४१.०३ प्रतिशत लोग कुल आबादी का हिंदी भाषा को प्रयोग करते है | और यदि यह अंको में बात करे तो ४२ करोड़ से भी अधिक लोग हिंदी भाषा को बोलते है (२०११ की जन गणना के आधार पर) | पर दुर्भाग्य यह है कि बीमा कंपनिया ४० प्रतिशत लोगों के समूह को लक्ष्य बनाकर अपने उत्पाद को बेचने कि अपेक्षा १२ प्रतिशत लोगों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है और यह कई कारणों में से एक बड़ा कारण भी है कि बीमा का विकास उस स्तर पर नही हो पा रहा है जितनी यहाँ सम्भावनाएं विद्यमान है और यह हाल बीमा व्यवसाय के निजीकरण के १० वर्षों से अधिक समय होने पर भी बना हुआ है | भारत के जिस क्षेत्र में हिंदी भाषा नही बोली जाती वहाँ हिंदी से मिलती जुलती भाषा ही बोली जाती है और वो समस्त लोग हिंदी भाषा को अच्छी तरह से समझते है |

हिंदी भाषा कि अपनी कई विशेषताएं है और यह दुनिया में बोली जाने वाली समस्त भाषाओँ में अपनी खास योग्यता कि वजह से अहम स्थान रखती है | सन् 1998 के पूर्वमातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकड़े मिलते हैंउनमें हिन्दी को तीसरा स्थान दिया जाता है । सन् 1997 में सैन्सस ऑफ़ इंडिया का भारतीय भाषाओं के विश्लेषण का ग्रन्थ प्रकाशित होने तथा संसार की भाषाओं की रिपोर्ट तैयार करने के लिए यूनेस्को द्वारा सन् 1998 में भेजी गई यूनेस्को प्रश्नावली के आधार पर उन्हें भारत सरकार के केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के तत्कालीन निदेशक प्रोफेसर महावीर सरन जैन द्वारा भेजी गई विस्तृत रिपोर्ट के बाद अब विश्व स्तर पर यह स्वीकृत है कि मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से संसार की भाषाओं में चीनी भाषा के बाद हिन्दी का दूसरा स्थान है। चीनी भाषा के बोलने वालों की संख्या हिन्दी भाषा से अधिक है किन्तु चीनी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा सीमित है। अँगरेज़ी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा अधिक है किन्तु मातृभाषियों की संख्या अँगरेज़ी भाषियों से अधिक है।

हिन्‍दी भाषा का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना माना गया है । हिन्‍दी भाषा व साहित्‍य के जानकार अपभ्रंश की अंतिम अवस्‍था अवहट्ठ से हिन्‍दी का उद्भव स्‍वीकार करते हैं। हिंदी भाषा के उज्ज्वल स्वरूप का भान कराने के लिए यह आवश्यक है कि उसकी गुणवत्ताक्षमताशिल्प-कौशल और सौंदर्य का सही-सही आकलन किया जाए। यदि ऐसा किया जा सके तो सहज ही सब की समझ में यह आ जाएगा कि –
  
  1. संसार की उन्नत भाषाओं में हिंदी सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है
  2. यह सबसे अधिक सरल भाषा है
  3. यह सबसे अधिक लचीली भाषा है
  4. यह एक मात्र ऐसी भाषा है जिसके अधिकतर नियम अपवादविहीन हैं
  5. यह सच्चे अर्थों में विश्व भाषा बनने की पूर्ण अधिकारी है
  6. हिन्दी लिखने के लिये प्रयुक्त देवनागरी लिपि अत्यन्त वैज्ञानिक है।
  7. हिन्दी को संस्कृत शब्दसंपदा एवं नवीन शब्द रचना सामर्थ्य विरासत में मिली है। वह देशी भाषाओं एवं अपनी बोलियों आदि से शब्द लेने में संकोच नहीं करती।
  8. अंग्रेजी के मूल शब्द लगभग १०,००० हैंजबकि हिन्दी के मूल शब्दों की संख्या ढाई लाख से भी अधिक है।
  9. वर्तमान में हिन्दी बोलने एवं समझने वाली जनता साठ करोड़ से भी अधिक है।
  10. हिन्दी का साहित्य सभी दृष्टियों से समृद्ध है।
  11. हिन्दी आम जनता से जुड़ी भाषा है तथा आम जनता हिन्दी से जुड़ी हुई है। हिन्दी कभी राजाश्रय की मुहताज नहीं रही।
  12. भारत के स्वतंत्रता-संग्राम की वाहिका और वर्तमान में देशप्रेम का अमूर्त-वाहन हिंदी है |
  13. भारत की  संपर्क भाषा हिंदी है |
  14. भारत की राजभाषा हिंदी है |
  15. देश के विकाश में मात्र एक सहायक भाषा हिंदी ही है |

बीमा में हिंदी की आवश्यकता ?

व्यावसायिक जगत में हिंदी को कभी भी महत्व नही दिया गया चाहे वह बीमा का क्षेत्र हो या फिर कोई अन्य व्यावसायिक क्षेत्र जिससे देश कि अर्थव्यवस्था पर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कुप्रभाव पड़ा है | उपलब्ध श्रम एवं संसाधनों का उपयोग आज तक नही हो पा रहा है और आज भी हम विकसित देश की श्रेणी में खड़े हुये है | भारत सरकार के द्वारा आज तक इस मुद्दे पर कोई सराहनीय पहल भी नही कि गयी हिंदी भाषा के विकास एवं प्रचार प्रसार के लिये | हाँ कुछ छूट पुट चीजे अक्सर अव्यवस्थित ढंग से देखने को मितली जरुर रहती है | भारतीय जीवन बीमा निगम ने कुछ कदम जरुर उठाये है हिंदी के प्रचार – प्रसार के लिये लेकिन वो बिना भारत सरकार एवं बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण के सहयोग के बिना सफल नही हो सकते | बिगत के दो दशको से व्यावसायिक क्षेत्र में अंग्रेजी का अत्यधिक तेजी से विकास हुआ है जिसके वजह से हिंदी भाषा ने अपनी ख्याति में कमी महसूस कि है | यदि हिंदी भाषा का प्रयोग अनिवार्य किया जाय तो निसंदेह देश का विकास त्वरित गति से होगा और आम लोगों में देश के प्रति विश्वास भी मजबूत होगा | बीमा के क्षेत्र में हिंदी भाषा का प्रयोग न करने से बीमा उद्योग निम्न समस्याओं को जन्म दे चूका है जिसे तभी समाप्त किया जा सकता है जब हिंदी का प्रयोग प्रत्येक स्तर पर हो |


1.     बीमाकर्ता एवं आम जनता के बीच पारदर्शिता का आभाव है और आम जनता एवं बीमाकर्ता के बीच एक अंग्रेजी कि दिवार सी खड़ी दिखाई पड़ रही है जो उद्योग के लिये अच्छी बात नही |2.     अंग्रेजी के शब्दों की वजह से ही आम जनता के करोड़ो रुपयों का नुकशान यूलिप पालिसियों में उठाना पड़ा जिसकी जिम्मेदारी न बीमा कंपनिया ले रही है न ही बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण |3.     बीमा उद्योग का विकास होने कि बात तो दूर पिछले कुछ वर्षों से नकारात्मक विकास दर्ज करा रहा है4.     भारतीय व्यावसायिक वातावरण के अनुरूप नियमों का निर्धारण करने के बजाय अंग्रेजो के नियमों को यहाँ पर लागू कर लोगों को न केवल भ्रमित किया जा रहा है बल्कि उनके लिये रोजगार प्राप्ति के दरवाजो पर ताले लगाये जा रहे है 5.     ये अंग्रेजी का ही कमाल है कि पिछले कुछ वर्षों में लगभग ६ लाख से अधिक लोगों को अपना रोजगार जो कि वो बीमा अभिकर्ता के रूप में करते थे छोडना पड़ा6.     अंग्रेजी की वजह से ही आने वाले दिनों में लाखो लोगों को मजबूरन यह व्यवसाय छोड़ना पड़ेगा |7.     लोगों के बीच अंग्रेजी भाषा एक गुड़ रहस्य होने की वजह से ही आज भी बीमा सिर्फ ४ प्रतिशत लोगों के पास सिमट कर रह गया है |8.     कई बार बीमा सेवा में विवाद अंग्रेजी भाषा की दोहरी समझ से जन्म ले लेता है जिसका खामियाजा आम जनता को उठाना पड़ता है 9.     अंग्रेजी भाषा की बजह से ही आम लोग बीमा को अपने से जुडा हुआ नही महसूस करते और बीमा लेने से कतराते है 10. बीमाकर्ता दोअर्थी अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग कर लोगों में भ्रम पैदा कर रहे है जिनका ज्ञान आम जनता में आज भी नही है परिणाम स्वरुप आम जनता का विश्वाश बीमा में तेजी से कम हुआ है |11. अंग्रेजी भाषा कि ही वजह से बीमा मध्यस्थो के विभिन्न रूपों में तेजी से कमी आयी है चाहे वह कार्पोरेट बीमा अभिकर्ता होब्रोकर्स हो या कोई अन्य विक्रय प्रतिनिधि 12. मृत्यु दावे के बड़े भाग को अस्वीकार बीमाकर्ता अंग्रेजी शब्दों की आड़ में ही कर रही है जिसका खामियाजा बीमित के परिवार वालो को उठाना पड़ रहा है |

अगर इसी पहलु को अलग नजरिये से देखा जाय तो भारत में प्रिंट मीडिया के टाप १० हिंदी दैनिक पेपर कि कुल प्रतिदिन कि पहुच १८८.६८ मिलियन लोगों तक है जबकि अंग्रेजी पेपर की पहुच सिर्फ ३८.७६ मिलियन लोगों तक ही है | यदि इलेक्ट्रानिक मीडिया कि बात कि जाय तो कुल आबादी में से १३४ मिलियन घरों के पास टी.वी. सेट उपलब्ध है (वार्ड प्रेस रिपोर्ट २०१० के अनुशार) जिसमे से ७० मिलियन रूरल एरिया के लोगों के पास है और ६४ मिलियन अर्बन एरिया में रहने वाले लोगों के पास है | हिंदी चैनल्स कि पहुच ४३ प्रतिशत के पास है जबकि अंग्रेजी की पहुच मात्र ११ प्रतिशत लोगों तक है | यह आकड़े भी स्वतः ही प्रमाणित कर रहें है कि हिंदी कि लोकप्रियता कहीं अधिक है |

क्या बीमा में हिंदी अनिवार्य होना चाहिये ?

उपरोक्त दिये गये तथ्यों, आकडों और अन्य देशो में चल रही व्यवस्थाओ को देखते हुये यह आसानी से कहा जा सकता है कि बीमा के क्षेत्र में हिंदी अनिवार्य कर दिया जाना चाहिये प्रत्येक कार्यवाही एवं प्रपत्रो के लिये न केवल बल्कि समस्त बातो एवं व्यवहार के लिये भी | इससे न केवल बीमा का समचुत विकास हो पायेगा बल्कि बीमा की जटिलता को भी लोग आसानी से समझ लेगे जिससे वो अपना भला अवश्य ही समझ लेगे | न केवल बीमा के क्षेत्र में बल्कि भारत वर्ष के प्रत्येक क्षेत्र में हिंदी को अनिवार्य कर दिया जाना चाहिये जिससे देश के विकास में सहायता मिलेगी और हमारा देश भी चाइना, जापान कि तरह तरक्की की राह पर अग्रसर होगा | यदि बीमा के क्षेत्र में हिंदी अनिवार्य कर दिया जाता है तो निसंदेह उसके दूरगामी परिणाम बीमा के पक्ष में होंगे | बीमा में हिंदी के अनिवार्य हिने से ढेरों लाभ है कुछ प्रमुख निम्नलिखित है |


1.     गलत विक्रय पर रोक
2.     बीमा के बारे में लोगों में प्रचार प्रसार
3.     बीमा उत्पाद विक्रय में आसानी
4.     देश की अर्थवस्था के विकास में सहायक
5.     दावों में कमी
6.     उद्योग का विकास
7.     उपलब्ध संसाधनों का सही दोहन
8.     नये रोजगार के अवसरों में वृद्धि
9.     देश के सकल घरेलू उत्पाद में बीमा के योगदान में वृद्धि
10. बीमा पेंरेसन में वृद्धि अंतर्राष्ट्रीय स्तर की
11. बीमा प्रीमियम औसत में वृद्धि
12. राष्ट्र भाषा को सही मायने में सम्मान
13. बीमाकर्ता एवं बीमित के बीच स्वस्थ्य संबंधो का निर्माण
14. अंग्रेजी भाषा के रहस्यों एवं बिबदो से मुक्ति
15. उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का समपूर्ण दोहन

इस लेख के अंत में एक बात जरुर अप सब के मन में घर कर रही होगी कि आखिर इतनी खास बातें होने के बावजूद हमारी हिंदी भाषा आज तक इतनी पिछड़ी क्यों रह गयी और क्यों अंग्रेजी भाषा को अंतररास्ट्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त हो गया | आज हम अपने ही घर में गुलामो की तरह रह रहे है वो भी इस अग्रेजी के गुलाम | आज के इस आधुनिकतम युग में भी चाइना और जापान जैसे सश्क्त्शाली देश अपनी देश की भाषा का विकास कर रहे है और हम अपनी ही मात्रु एवं राष्ट्र भाषा से दिन प्रतिदिन दूर होते चले जा रहे है | इस भाषा का विकास न होने के पीछे जितने भारत सरकार जिम्मेदार है उतने आप और हम जिसने इस बारे में या तो सोचा नही और सोचा तो व्यक्त नही किया | सही मायने में बीमा का विकास हिंदी भाषा के साथ ही हो सकता है | इससे न केवल पारदर्शिता दिखेगी बल्कि आम लोगों का विश्वाश पुनः बीमा में केंद्रित होगा | और तब शायद पॉलिसी बनाने वाले लोग देश कि भाषा का सम्मान कर देश हित में बीमा पालिसियाँ भी बनायेगे | न रोजगार छीनेगा लोगों का और न ही बीमा उद्योग नाकारात्मक वृद्धि को दर्ज कराएगा बल्कि नये रोजगार के अवसरों का सृजन होगा और उद्योग विकास के बने कई रिकार्ड को स्वयं ही तोड़ देगा | जीवन बीमा, सामान्य बीमा के बीच की समझ का भी ज्ञान आम जनता के बीच देखने को मिलेगा | “बीमा से हिंदी का विकास एवं हिंदी से बीमा का विकास”

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