आज प्रस्तुत हुये बजट से ढेरों उम्मीदे न केवल बीमा उद्योग को थी बल्कि बीमा से जुड़े प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से लोगों को भी थी कि शायद वित्त मंत्री जी बीमा के मुख्य मुद्दों को बजट में प्रस्तुत करेंगे पर वित्त मंत्री जी ने मुख्य मुद्दों से न केवल किनारा कर लिया बल्कि कई ऐसी घोषणाए बीमा के लिये कर दी जो देखने में आकर्षक तो लग सकती है पर जमीनी हकीकत यह है कि उससे बीमा उद्योग का दूर - दूर तक कोई भला नही होने वाला | जिस तरह की अटकलें बजट पेश होने के पूर्व बीमा के पक्ष में लगायी जा रही थी वो धरी की धरी रह गयी | बीमा के लिये जो घोषणाए वित्त मंत्री जी ने की है उसका सही आकलन प्रस्तुत है :-

१.      माननीय वित्त मंत्री जी ने अपने बजट में बीमा कंपनियों को नये कार्यालय खोलने पर विशेष जोर दिया हुआ है | २ टियर शहरो में अब बीमा कंपनियों को कार्यालय खोलने के लिये बीमा बिनियामक एवं विकास प्राधिकरण कि अनुमति लेने कि जरुरत नही होगी | पर आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि बीमा कम्पनियाँ जो कार्यालय पहले से स्थापित किया हुआ है उसे भी सही ढंग से नही चला पा रही है क्योकि उनकी समस्याये कुछ और है, जो पता तो सबको है पर उसका कोई समाधान नही कर रहा है | यदि बीमा बिनियामक एवं विकास प्राधिकरण के वर्तमान वित्तीय वर्ष के आंकड़ो को देखे तो आपको जानकर यह ताज्जूब होगा कि १ अप्रैल २०१२ से ३१ दिसंबर २०१२ के बीच जीवन बीमा उद्योग ने कुल मात्र १६८ नये कार्यालय खोले है जबकि इसी अवधि में कुल ९८१ कार्यालय बंद किये है | फिर इस बजट में नये कार्यालयों को खोलने के लिये की गयी घोषणा किस काम की | इसका अनुमान आप सब आसानी से लगा सकते है |

२.      वित्तीय वर्ष २०१३-१४ के अंत तक सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कम्पनियाँ (जीवन एवं सामान्य) भारत के प्रत्येक क्षेत्र की आबादी जहाँ १०००० या इससे अधिक है वहाँ पर अपने कार्यालय खोलेगी | यदि सिर्फ कार्यालय खोलने से बीमा का काम त्वरित गति से होता तो आज न केवल सार्वजनिक बीमा कंपनिया अपने कार्यालय का प्रसार कर चूकी होती बल्कि निजी कंपनिया भी | यदि जमीनी हकीकत को देखा जाय तो पिछले कई वर्षों से बीमा की गति नकारात्मक हुई है और वह आज भी है | बीमा से जुड़े कई लाख लोग पलायन कर चुके है जिनके बारे में न सरकार सोच रही है और न ही प्राधिकरण | आप ही सोचो क्या बीमा के कार्यालय से बीमा का प्रचार होता है ?

३.      बैंको को वित्त मंत्री ने यह अवसर दिया कि वो ब्रोकर बन कर बीमा उत्पाद को बेच सकते है वो भी एक या एक से अधिक बीमा कंपनी के | जबकि यह सार्वभौमिक सत्य है की इस आधुनिकतम युग में भी सबसे भरोसेमंद बीमा उत्पाद के विक्रीकर्ता के रूप में व्यक्तिगत अभिकर्ता ही है और इधर के कुछ वर्षों में २५ लाख से घटकर इनकी संख्या सिर्फ २० लाख ही रह गयी है जिनके लिये कोई भी नही सोच रहा है |

४.      नो योर कस्टमर (KYC) की जरुरत उस व्यक्ति के लिये नही होगी बीमा लेते समय यदि वह पहले से ही किसी बैंक में नो योर कस्टमर को पूरा करके खाता रखता है | जबकि यह जमीनी हकीकत है की बैंक भी बिना जरुरी प्रपत्रो के नये खाते अपने यहाँ नही खोलते है |

माननीय वित्त मंत्री जी से बीमा व्यवसाय के मुख्य कार्यकारी अधिकारीयों की अभी हाल ही में बैठक हो चूकी है  जिसमे उन्होंने अपनी समस्याओं को वित्त मंत्री जी के सम्मुख प्रस्तुत किया था, तथा वित्त मंत्रालय ने बीमा उद्योग को यह आश्वासन भी दिया था कि वो बीमा की गति को बढाने के लिये आवश्यक कदम जरुर उठाएंगे | पर वो वादा दूर - दूर तक पूरा हुआ नही दिख रहा है, बल्कि अब लोग ठगे हुये से महसूस कर रहें होंगे | यदि माननीय वित्त मंत्री जी उपरोक्त चार घोषणाओ का पचास प्रतिशत यानि की दो घोषणाए जो सटीक और अत्यंत आवश्यक भी है कर देते तो जरुर बीमा उद्योग में नयी उर्जा का संचार होता और यह उद्योग पुनः गति के साथ विकास की पटरी पर वापस आता | वो महत्वपूर्ण घोषणाए है :-

१.      बीमा उद्योग से सेवाकर की समाप्ति – आपको जानकर आश्चर्य होगा की आयकर की धारा ८० सी में जितने भी निवेश के आप्सन उपलब्ध है उनमे सिर्फ बीमा ही है जिसपर सेवाकर लागू है जो यूलिप उत्पाद पर १२.३ प्रतिशत है और परम्परागत बीमा उत्पाद पर ३.०९ प्रतिशत है यानी की एक आम निवेशक को लाभ कितना मिलेगा वह स्पष्ट हो या न हो पर वह इतना नुकशान बीमा में पैसा लगाकर अवश्य ही कर ले रहा है | यही एक वजह और भी है की एक समझदार निवेशक बीमा में निवेश अब नही कर रहा है | अतः यह अत्यंत आवश्यक था कि सेवाकर बीमा उद्योग से समाप्त किया जाय |

२.      बीमा में निवेश पर आयकर की धारा ८० सी के अतिरिक्त कर छूट – जीवन बीमा अपने अतुलनीय गुणों कि वजह से निवेश के उपलब्ध साधनों में न केवल अलग है बल्कि सर्वश्रेष्ठ भी है यही वजह है कि लोगों में इसकी लोकप्रियता अधिक है | ये ही एक माध्यम है जिससे देश के अनुत्पादक धन को देश की अर्थव्यवस्था के विकास में लगाया जा सकता है | और यह तभी संभव है जब कि आयकर की धारा ८० सी के अतिरिक्त पचास हजार या एक लाख तक के बीमा में निवेश पर आम जनता को कर में और छूट वित्त मंत्री जी प्रदान करें |

शायद आप सभी भी मेरे उपरोक्त बातों से सहमत होंगे | यदि वित्त मंत्री जी बीमा के क्षेत्र में ये दो महत्वपूर्ण घोषणाए करते तो वह न केवल आम जनता के हित में होता बल्कि बीमा कंपनियों एवं भारत सरकार के भी हित में होता और बीमा क्षेत्र कि दो प्रमुख समस्याओं का समाधान भी अब तक हो चूका होता |

Post a Comment

If you have any doubts, please let me know

और नया पुराने