जलालपुर, अम्बेडकर नगर। पूर्वांचल की पावन धरा पर सोमवार को ऐतिहासिक गोविंद साहब मेले ने भक्ति, उल्लास और सांस्कृतिक विरासत का अद्भुत दृश्य प्रस्तुत किया। यह मेला मात्र एक सामुदायिक आयोजन नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि और ईश्वर के प्रति अनन्य श्रद्धा का जीवंत तीर्थ बन गया।

पावन स्नान से प्रारंभ हुई दिव्य यात्रा
सुबह के प्रथम प्रहर से ही भक्तजन पवित्र सरोवर में डुबकी लगाकर अपनी आध्यात्मिक साधना प्रारंभ करते रहे। जल-कणों के साथ मन के मैल धुलने का यह दृश्य हृदय को पवित्र करने वाला था। इसके बाद श्रद्धालु गोविंद साहब के मठ में शीश नवाकर, पूजन-अर्चन कर प्रसाद चढ़ाते रहे। हवन की सुगंध और मंत्रोच्चार के बीच पूरा वातावरण दिव्य भक्ति में सराबोर था।

संस्कृति और आनंद का रंगमंच
धार्मिक अनुष्ठानों के साथ ही मेला मनोरंजन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का भी केंद्र बना। 'मौत का कुआं' जैसे रोमांचक खेल और जादूगरों के अद्भुत करतबों ने युवाओं व बच्चों को आकर्षित किया। वहीं, लगभग 50 से अधिक खिलौना एवं सजावटी सामान (खजले) की दुकानों के साथ फैशन, कपड़ा, सौंदर्य प्रसाधन व खादी के स्टॉल भक्तों व पर्यटकों से गुलजार थे।

पशु बाजार: कृषि संस्कृति का प्रतीक
मेले का एक विशेष आकर्षण पशु बाजार रहा, जहां गाय, भैंस व घोड़ों की विभिन्न नस्लों को प्रदर्शित किया गया। यह खंड कृषि प्रधान इस क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियों और पशु प्रेम की जीवंत अभिव्यक्ति था।

सुव्यवस्था एवं सुरक्षा
प्रशासन ने भीड़ प्रबंधन और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए समुचित प्रबंध किए, जिससे मेले की पवित्रता और उल्लास बना रहा।

निष्कर्ष
गोविंद साहब मेला पूर्वांचल की सांस्कृतिक चेतना, सामुदायिक सद्भाव और अटूट आस्था का प्रतीक है। यह केवल मेला नहीं, बल्कि वह पावन सूत्र है जो समस्त वर्गों को भक्ति के एक ही मंच पर लाने का सामर्थ्य रखता है। भगवान गोविंद सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करें।

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