उतरौला बलरामपुर- कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाने वाला भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक पर्व, यम द्वितीया या भाई दूज, नगर सहित ग्रामीण अंचलों में पारम्परिक हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। बहनों ने अपने भाइयों की लम्बी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करते हुए व्रत रखा,और यमराज की पूजा की। उन्होंने यम राज का आह्वान कर उनसे प्रार्थना की, कि उनके भाई दीर्घायु हों।
इस पावन अवसर पर बहनों ने भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर उन के उज्ज्वल भविष्य की कामना की,जबकि भाइयों अपने बहनों को उपहार देकर अपने प्रेम का इजहार किया।सुबह से ही घर-घर में इस पर्व की धूम देखने को मिली जहां बहनें भाइयों को तिलक लगाकर उनकी लम्बी आयु की कामना कर रही थीं,और भाइयों की तरफ से उपहारदिए जा रहे थे। इस परम्परा के अनुसार, तिलक के साथ साथ नारियल और मिठाइयां भी भाइयों को भेंट की गईं। हर घर में इस त्यौहार की धूम रही और भाइयों के माथे पर सजे लाल तिलक भाई दूज की महत्ता को प्रति बिंबित कर रहे थे।
**पौराणिक मान्यता ओं में भाई दूज का महत्व*पौराणिक कथाओं के अनुसार, भाई दूज का पर्व यम राज और उनकी बहन यमुना के प्रेम से जुड़ा है। कहते हैं कि यमराज अपनी बहन से गहरा स्नेह करते थे,लेकिन अपनी व्यस्तता के कारण उनसे मिल नहीं पाते थे।एक दिन यम राज अपनी बहन की नाराजगी दूर करने और उनसे मिलने उनके घर पहुंचे। भाई को देख यमुना बहुत प्रसन्न हुईं और उनका आतिथ्य करते हुए अनेक प्रकार के स्वादिष्ट भोजन परो से। यमराज ने विदा लेते समय यमुना को वरदान मांगने के लिए कहा, जिस पर यमुना ने प्रार्थ ना की, कि वे हर वर्ष इसी दिन उनसे मिलने आएं। तभी से इस दिन को भाई दूज के रूप में मनाने की परम्परा शुरू हो गई। इस दिन को यम द्वितीया भी कहा जाता है,और इस दिन बहनें अपने भाई के माथे पर रोली और अक्षत लगाकर उनकी दीर्घायु की कामना करती हैं।रक्षाबंधन की तरह भाई दूज का भी अपना एक अलगमहत्व है। ग्रंथों में यह उल्लेख मिलता है कि भाई दूज के दिन मृत्यु के देवता यमराज का पूजन विशेष फलदायक होता है। दीपावली के समापन पर्व के रूप में भी इसे देखा जाता है,जो भाई- बहन के अटूट रिश्ते को और अधिक मजबूत बनाता है।
हिन्दी संवाद न्यूज से
असगर अली की खबर
उतरौला बलरामपुर।
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubts, please let me know