यूरिया, भारतीय किसानों के लिए खेती का आधारभूत उर्वरक, आज एक गंभीर संकट का रूप ले चुका है। देश के विभिन्न हिस्सों में यूरिया की कमी ने किसानों को लंबी कतारों, कालाबाजारी और मानसिक तनाव के भंवर में फंसा दिया है। इस समस्या के पीछे आपूर्ति श्रृंखला की कमजोरियाँ, कालाबाजारी और सबसे अहम, सरकारी नीतियों की नाकामी प्रमुख रूप से जिम्मेदार है। यह लेख यूरिया की कमी के कारणों, इसके प्रभावों और सरकार की विफलताओं पर निशाना साधते हुए समाधान सुझाता है।

यूरिया की कमी के कारण

यूरिया की कमी के कई कारण हैं, जिनमें सरकारी नीतियों की कमी सबसे अधिक उजागर होती है:

1. **आपूर्ति श्रृंखला में सरकारी ढिलाई**: सरकार द्वारा रेलवे रैक और परिवहन व्यवस्था को मजबूत करने में विफलता के कारण यूरिया समय पर किसानों तक नहीं पहुँच रहा। गोदामों में स्टॉक होने के बावजूद, ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी उपलब्धता सुनिश्चित करने में प्रशासन नाकाम रहा है।

2.**कालाबाजारी को रोकने में असफलता**: सरकार की कमजोर निगरानी के कारण यूरिया की कालाबाजारी बढ़ रही है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में दुकानदार इसे ऊँचे दामों पर बेच रहे हैं, और स्थानीय प्रशासन इस पर अंकुश लगाने में असमर्थ दिखता है।

3. **आयात पर अत्यधिक निर्भरता**: भारत में यूरिया का उत्पादन सीमित है, और सरकार ने स्वदेशी उत्पादन को बढ़ाने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए। वैश्विक बाजार में कीमतों में उतार-चढ़ाव का सीधा असर भारतीय किसानों पर पड़ रहा है।

4. **नीतिगत असफलताएँ**: यूरिया की सब्सिडी प्रणाली में पारदर्शिता की कमी और डिजिटल निगरानी का अभाव इस संकट को और गहरा रहा है। पॉश मशीनों पर उपलब्धता दिखाने के बावजूद, वास्तविक स्टॉक की कमी किसानों को ठग रही है।

:5. **मौसमी माँग का कुप्रबंधन**: खरीफ और रबी सीजन में यूरिया की माँग बढ़ती है, लेकिन सरकार इस माँग को पूरा करने के लिए पहले से तैयारी करने में विफल रही है।

किसानों पर प्रभाव

यूरिया की कमी का सबसे ज्यादा खामियाजा छोटे और मध्यम वर्ग के किसानों को भुगतना पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जैसे क्षेत्रों में किसानों को लंबी कतारों में अपमान और शारीरिक कष्ट सहना पड़ रहा है। इसके प्रमुख प्रभाव हैं:

- **कम पैदावार**: यूरिया की कमी के कारण फसलों की वृद्धि रुक रही है, जिससे उत्पादन में भारी गिरावट आ रही है।

- **आर्थिक नुकसान**: कालाबाजारी के कारण किसानों को यूरिया के लिए दोगुनी कीमत चुकानी पड़ रही है, जिससे उनकी लागत बढ़ रही है।

- **मानसिक तनाव**: लंबी कतारों, अनिश्चितता और प्रशासन की उदासीनता ने किसानों में निराशा और गुस्सा पैदा किया है।

सरकार पर निशाना: कहाँ चूक रही है व्यवस्था?

यूरिया की कमी के लिए सरकार की जवाबदेही से इन्कार नहीं किया जा सकता। निम्नलिखित बिंदु सरकारी नाकामी को उजागर करते हैं:

- **योजना का अभाव**: सरकार ने यूरिया की माँग और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाने के लिए कोई ठोस योजना नहीं बनाई। हर साल एक ही समस्या दोहराई जा रही है, लेकिन कोई स्थायी समाधान नहीं दिखता।

- **निगरानी की कमी**: कालाबाजारी और अनुचित वितरण पर अंकुश लगाने के लिए सख्त निगरानी तंत्र की जरूरत है, जो स्पष्ट रूप से गायब है।

- **किसान विरोधी नीतियाँ**: यूरिया की सब्सिडी और वितरण प्रणाली में सुधार के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किए गए। डिजिटल सिस्टम होने के बावजूद, जमीनी हकीकत में सुधार नहीं दिखता।

- **स्वदेशी उत्पादन पर ध्यान की कमी: सरकार ने यूरिया के घरेलू उत्पादन को बढ़ाने के लिए नए संयंत्र स्थापित करने या मौजूदा संयंत्रों की क्षमता बढ़ाने में रुचि नहीं दिखाई।

निष्कर्ष

यूरिया की कमी केवल एक आपूर्ति की समस्या नहीं है, बल्कि यह सरकारी नीतियों और प्रबंधन की विफलता का परिणाम है। किसान, जो देश की खाद्य सुरक्षा की रीढ़ हैं, आज सरकार की उदासीनता का शिकार हो रहे हैं। यह समय है कि सरकार जागे और किसानों के हित में ठोस कदम उठाए। यूरिया की कमी को दूर करने के लिए न केवल तात्कालिक राहत, बल्कि दीर्घकालिक नीतिगत सुधारों की आवश्यकता है। यदि सरकार इस दिशा में गंभीरता नहीं दिखाती, तो किसानों का गुस्सा और असंतोष बढ़ना तय है।


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