मान्यता प्राप्त निजी विद्यालय संघ ने आरटीई

प्रवेशों के दुरुपयोग पर जताई गंभीर आपत्ति


लखनऊ, 28 जून 2025ः मान्यता प्राप्त निजी विद्यालयों के संघ के अध्यक्ष श्री अतुल श्रीवास्तव ने शिक्षा विभाग के अधिकारियों एवं जिलाधिकारी कार्यालय द्वारा निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 की धारा 12(1)(ग) के अंतर्गत अपात्र बच्चों के प्रवेश को लेकर बढ़ते दबाव को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है।

पिछले कुछ महीनों में लखनऊ के अनेक निजी विद्यालयों ने यह बताया है कि जैसे ही किसी अभिभावक द्वारा मुख्यमंत्री जनसुनवाई पोर्टल पर आरटीई प्रवेश से संबंधित शिकायत दर्ज कराई जाती है, अधिकारी बिना उचित पात्रता जाँच के विद्यालयों पर तुरंत इन बच्चों को प्रवेश देने का दबाव बनाने लगते हैं, जबकि विद्यालय पहले ही उत्तर प्रदेश आरटीई नियमावली 2011 के नियम 8(1) के अंतर्गत अपनी आपत्तियाँ पात्रता को लेकर प्रस्तुत कर चुके होते हैं। शिकायतों के निस्तारण के अतिरिक्त, अधिकारी अन्य अपात्र बच्चों का भी मनमाने ढंग से आवंटन कर रहे हैं, वह भी बिना पृष्ठभूमि की विस्तृत जाँच या आवश्यक दस्तावेजों के सत्यापन के।


ऐसी कार्यवाही केवल प्रशासनिक “प्रभावशीलता” और शिकायतों के त्वरित निस्तारण को दर्शाने के उद्देश्य से की जा रही है, जिससे निजी अनुदानरहित विद्यालयों पर अनावश्यक बोझ पड़ रहा है और आरटीई अधिनियम की मूल भावना कमजोर हो रही है।इसके अलावा, अधिकारियों द्वारा विद्यालयों से कहा जा रहा है कि उन्हें पात्रता की जाँच का अधिकार नहीं है, जो कि उत्तर प्रदेश आरटीई नियमावली 2011 के नियम 8(1) का स्पष्ट उल्लंघन है। यह नियम स्पष्ट कहता है कि “कुल आवेदकों में से जिन बच्चों को किसी भी कारणवश प्रवेश नहीं दिया जा सका, उनकी अपात्रता की कारण सहित लिखित सूचना शिक्षा विभाग को दी जाएगी।”


श्री श्रीवास्तव ने कहा, “आरटीई अधिनियम आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और वंचित समूहों के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बना ऐतिहासिक कानून है। लेकिन जब अपात्र बच्चों के प्रवेश को अधिकारियों के दबाव में जबरन लागू किया जाता है, तो इससे इसकी साख बुरी तरह प्रभावित होती है। यह न केवल नियम 8(1) का उल्लंघन है बल्कि उत्तर प्रदेश आरटीई नियमावली 2011 के नियम 8(6) के अनुसार ऐसे मामलों में विद्यालय की मान्यता रद्द किए जाने का भी प्रावधान है, यदि किसी विद्यालय ने अपात्र बच्चों के नाम पर प्रतिपूर्ति प्राप्त की हो।”


संघ ने स्पष्ट किया कि उसके सदस्य विद्यालय आरटीई कोटे के अंतर्गत पात्र बच्चों के लिए 25ः सीटें आरक्षित रखने के प्रावधान का पूर्णतः पालन करते हैं, परंतु यह केवल विधिसम्मत प्रक्रिया और निर्धारित मानकों के अनुरूप ही होना चाहिए। अपात्र बच्चों को प्रवेश देने से वास्तव में पात्र और जरूरतमंद बच्चों का अधिकार छीना जाता है और इससे विद्यालयों के लिए अनावश्यक विवाद व जटिलताएँ उत्पन्न होती हैं।


संघ ने राज्य सरकार से तत्काल हस्तक्षेप करने का आग्रह करते हुए कहा कि यह सुनिश्चित किया जाए किः

1. धारा 12(1)(ग) के अंतर्गत किसी भी प्रवेश आवंटन से पूर्व आवेदकों की पात्रता की पारदर्शी और कठोर जाँच की जाए।


2. नियमों और कानून का पालन करने वाले विद्यालयों के विरुद्ध किसी भी प्रकार की दण्डात्मक कार्रवाई न की जाए।


3. आरटीई के क्रियान्वयन से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए विद्यालय प्रबंधन और जिला अधिकारियों के बीच एक समन्वयात्मक तंत्र विकसित किया जाए।


श्री श्रीवास्तव ने माननीय मुख्यमंत्री से अपील की कि इस प्रगतिशील कानून का वास्तविक लाभ पात्र और वंचित वर्ग के बच्चों को ही मिले तथा सभी हितधारकों के अधिकारों की पूरी तरह रक्षा सुनिश्चित की जाए।


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