मुख्यमंत्री ने कश्मीरीगंज, वाराणसी स्थित
श्रीरामजानकी मन्दिर के पुनर्निर्माण का शिलान्यास किया

वाराणसी के प्राचीन श्रीरामजानकी मन्दिर का इतिहास बहुत गौरवशाली, अनेक ज्ञानियों, तपस्वियों और त्यागियों ने इसे कर्मसाधना की भूमि के रूप में स्वीकार किया : मुख्यमंत्री

पूज्य संतों ने जिस संकल्प के साथ अपना पूरा जीवन जिया, उसने 22 जनवरी, 2024 को अयोध्या धाम में मूर्त रूप लिया, प्रधानमंत्री जी के कर-कमलों से 500 वर्षों
बाद भव्य श्रीरामजन्मभूमि मंदिर में श्रीरामलला विराजमान हुए

प्रधानमंत्री जी न केवल पूर्वजों के संकल्प की पूर्ति कर रहे,
बल्कि राष्ट्र मंदिर को भव्य स्वरूप देने का कार्य कर भी रहे

प्रयागराज महाकुम्भ में 66 करोड़ से अधिक श्रद्धालु
45 दिन के आयोजन में एक स्थान पर सहभागी बने

लखनऊ : 03 अप्रैल, 2025

     उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने आज कश्मीरीगंज, वाराणसी स्थित श्रीरामजानकी मन्दिर के पुनर्निर्माण का शिलान्यास किया। उन्होंने मन्दिर में दर्शन-पूजन किया और गायों को गुड़ भी खिलाया।
मुख्यमंत्री जी ने इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा कि हमारी पीढ़ी सौभाग्यशाली है, जिसने समृद्ध विरासत को अपनी आंखों के सामने साकार रूप लेते हुए देखा है। पूज्य संतों के सान्निध्य में श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन तेज गति से आगे बढ़ा। हमारे पूज्य संतों की लंबी विरासत ने जिस संकल्प के साथ अपना पूरा जीवन जिया था, उसे हम सभी ने 22 जनवरी, 2024 को अयोध्या धाम में मूर्त रूप लेते हुए देखा, जब प्रधानमंत्री तथा काशी के सांसद श्री नरेन्द्र मोदी जी के कर-कमलों से 500 वर्षों बाद भव्य श्रीरामजन्मभूमि मंदिर में श्रीरामलला विराजमान हुए।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि भव्य राष्ट्रमंदिर के भव्य स्वरूप का श्रेय काशीवासियों को जाता है, जिन्होंने ऐसा प्रतिनिधि चुनकर संसद में भेजा है। यह सारा कार्य प्रधानमंत्री जी के करकमलों से हो रहा है। काशी ने देश को ऐसा प्रतिनिधि दिया है, जो न केवल पूर्वजों के संकल्प की पूर्ति कर रहे हैं, बल्कि राष्ट्र मंदिर को भव्य स्वरूप देने का कार्य कर भी रहे हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि माँ गंगा, माँ यमुना और माँ सरस्वती की त्रिवेणी में सभी ने दिव्य और भव्य प्रयागराज महाकुम्भ का आयोजन देखा। 66 करोड़ से अधिक श्रद्धालु 45 दिन के इस आयोजन में एक स्थान पर सहभागी बने। यह देख दुनिया अभिभूत थी। उसके सामने अकल्पनीय और अविस्मरणीय दृश्य था। महाकुम्भ में जाति, मत, सम्प्रदाय तथा महिला-पुरुष का कोई भेद नहीं था। यही तो सनातन धर्म की सही पहचान है, जिसे महाकुम्भ ने फिर से नई पहचान दी।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि वाराणसी के इस प्राचीन श्रीरामजानकी मन्दिर का इतिहास बहुत गौरवशाली है। यहां का इतिहास सात सौ से सवा सात सौ वर्षों का है। संवत 1398 ईंसवीं में जगद्गुरु स्वामी रामानंदाचार्य जी के प्रथम शिष्य स्वामी अनंताचार्य जी महाराज द्वारा यहां श्रीरामजानकी मंदिर की स्थापना की गयी। इतिहास बताता है कि जगद्गुरु स्वामी अनंताचार्य जी, उनके शिष्य स्वामी नरहरिदास और उनके शिष्य गोस्वामी तुलसीदास जी ने शैशवावस्था के पांच वर्ष वेद व वेदान्त के अध्ययन के लिए इसी स्थान पर व्यतीत किए थे। संत तुलसीदास के श्रीरामचरितमानस और सुन्दरकाण्ड का पाठ हर सनातन धर्मावलम्बी अपने मांगलिक कार्यों में करते हैं। इस बीज का रोपण श्रीरामजानकी मन्दिर से होता है। इसका केन्द्र बिन्दु प्राचीन श्रीरामजानकी मंदिर है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि अनेक ज्ञानियों, तपस्वियों और त्यागियों ने इसे कर्मसाधना की भूमि के रूप में स्वीकार किया। बाबा कीनाराम, स्वामी विवेकानंद, माँ आनंदमयी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, जगद्गुरु भगवताचार्य, जगद्गुरु शिवरामाचार्य, श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष रहे महंत रामचंद्र दास परमहंस जी महाराज, श्रीराम जन्मभूमि न्यास के वर्तमान अध्यक्ष और मणिराम दास छावनी के महन्त नृत्य गोपाल दास जी महाराज और पूर्व सांसद श्री रामविलास वेदांती आदि संतों की समृद्ध परंपरा इसी प्राचीन श्रीरामजानकी मंदिर की देन है। यहीं से इन्होंने संन्यास जीवन की शुरुआत की।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि इसी परम्परा की 23वीं पीढ़ी के रूप में स्वामी डॉ0 रामकमलाचार्य वेदान्ती जी महाराज द्वारा अपनी विरासत के संरक्षण का अभिनव प्रयास किया गया है, जो हर सनातन धर्मावलम्बी के लिए नई प्रेरणा, नया प्रकाश व नया मार्ग है।
मुख्यमंत्री जी ने सभी को बासंतिक नवरात्रि व श्रीरामनवमी की बधाई देते हुए कहा कि श्रीरामनवमी पर हमारा संकल्प होना चाहिए कि भगवान श्रीराम का यह प्राचीन मन्दिर दिव्य और भव्य रूप में फिर से जगमगाकर प्राचीन गौरव की परम्परा के साथ आगे बढ़ता रहे, क्योंकि इन परम्पराओं ने ही भारत की विरासत को बहुत समृद्ध किया है। अपनी इस परम्परा का संरक्षण व समर्थन करना तथा इसे सहयोग प्रदान करना हमारा नैतिक दायित्व व कर्तव्य है। काशी की परम्परा से जो भी जुड़ा, बाबा विश्वनाथ की कृपा व माँ गंगा के आशीर्वाद से उसे महारथ हासिल हुई। काशी के कण-कण में भगवान शंकर का वास है। भगवान विश्वनाथ के प्रसाद को ग्रहण कर अपने जन्म और जीवन को धन्य करना चाहिए।
समारोह में स्टाम्प तथा न्यायालय शुल्क एवं पंजीयन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री रवीन्द्र जायसवाल, आयुष राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री दयाशंकर मिश्र ’दयालु’ सहित अन्य जनप्रतिनिधिगण, जगद्गुरु स्वामी डॉ0 रामकमलाचार्य वेदान्ती जी महाराज, स्वामी संतोषाचार्य जी महाराज उर्फ सतुआ बाबा एवं अन्य संतगण उपस्थित थे।
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