#दिनांक:-7/3/2025
#शीर्षक:- स्त्री को समझना आसान नहीं

हाँ तुम कह चुके हो, 
मेरा इंतज़ार कर रहे हो......

इंतजार मुझे भी रहता है मैसेज का,
फोन का, समय का, अपनापन का,
कुछ अनकहे भावार्थ का.....

पर क्या सब कुछ आसान होता है? 
किसी भी उम्र में यौवन जवान होता है ?

आज लोग अपनो से ज्यादा गैरो में घूल गए है,
हर सीमा लाँघकर अपनो को भूलते गए है ।

चाहती है सदियो से स्त्रियाँ, कोई अजीज हो,
जिससे कह सके वो सारी परेशानियाँ, हैरानियाँ 
गुप्त बाते, बची हुई मासूमियत, सब कुछ....
पर क्या सारी परेशानी कह पाती है????

स्त्री को समझना आसान नहीं, 
अभी कुछ है, तो कभी कुछ बन जाती 
किसी को सिरोधार्य तो किसी को घास तक न डालती....

शादी के बाद से की सारी भावनाओ का अर्थ, 
जीवन साथी दोस्त बना तो ठीक, नहीं तो व्यर्थ ।
अपनी उद्विग्न, उद्वेलित प्रेम से नहीं,
समाज से डरती है, 
घर परिवार में बेइज्जती से डरती है ।

जैसे डेंगु का इलाज मलेरिया नहीं कर सकता, 
वैसे ही परिवार की बाते पति से नहीं कह सकती,
इसलिए ढूँढती है अनजान, अनाम-सा मित्र, 
जिसे दोस्त..., अरे नहीं, पक्कमपक्की दोस्त मान सके,
आकर्षक और प्रेम से ऊपर बिन नाम का रिश्ता दे सके ।

जिससे लगाव तो नहीं, पर उसके बिन अभाव जरूर लगे,
जो चिंतन करता हो, मनन करता हो, सच्चाई दिखाता हो,
दिल के शहर में आने की जिद नहीं बल्कि इंतजार करता हो, 
इंतजार फोन का, इंतजार मैसेज का, इंतजार मस्ती का,
इंतजार खुलेपन का, इंतजार सुरक्षित भाव का.........।।

(स्वरचित, मौलिक और सर्वाधिकार सुरक्षित है)
प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई

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