नव वर्ष उत्सव चौथा दिन
पांच महायज्ञ स्वर्ग व मोक्ष की सीढ़ियां हैं


                -आचार्य विष्णुमित्र वेदार्थी


 *आर्यवीर दल के तत्त्वावधान में ओम् भवन में दशदिवसीय नववर्ष महोत्सव के चौथे दिन यज्ञ, भजन व प्रवचन के कार्यक्रम सम्पन्न हुए |*
*इस अवसर पर वैदिक विद्वान् आचार्य विष्णुमित्र वेदार्थी के ब्रह्मत्व में अथर्ववेद के मन्त्रों से राष्ट्र के कल्याण के लिये राष्ट्रभृत यज्ञ सम्पन्न किया गया | राष्ट्रभृत यज्ञ में गुरुकुल सुलतानपुर के ब्रह्मचारियों ने मन्त्र पाठ किया व आर्य अशोक तिवारी,  वृन्दा तिवारी, आर्यव्रत तिवारी,  हिमांशु आर्य, अरुण कुमार आर्य, इत्यादि महानुभावों ने यजमान के आसन को अलंकृत किया |*
*यज्ञोपरान्त वैदिक विद्वान् आचार्य विष्णुमित्र वेदार्थी ने सम्बोधित किया कि पांच महायज्ञ स्वर्ग व मोक्ष को दिलाने वाली सीढ़ियां हैं |*
*उन्होंने कहा कि ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, बलिवैश्वदेव यज्ञ व अतिथि यज्ञ महायज्ञ कहलाते हैं | इन महायज्ञों में पहला  ईश्वर की भक्ति करना तथा वेद आदि सत्य शास्त्रों का पढ़ना- पढ़ाना ब्रह्मयज्ञ कहलाता है | दूसरा महायज्ञ देवयज्ञ है | इस यज्ञ में अग्नि में सुगन्धित, रोगनाशक, आरोग्यकारक व मीठे पदार्थों से बनी हुई सामग्री व गोघृत को डालने का विधान है |  क्योंकि अग्नि में डाला हुआ पदार्थ सूक्ष्म होके फैलकर वायु के साथ दूर - दूर तक जाकर दुर्गन्ध की निवृत्ति करता है, आरोग्यकारक व रोग विनाशक होता है | हवन के इस अग्नि का वह सामर्थ्य होता है कि वह घर के वायु और दुर्गन्धयुक्त पदार्थों को छिन्न - भिन्न और हल्का करके उसे बाहर निकालकर पवित्र वायु को प्रवेश करा देता है | मनुष्य के शरीर से जितना दुर्गन्ध उत्पन्न होकर वायु और जल को बिगाड़ कर रोगों को उत्पन्न करके प्राणियों को दु:ख प्राप्त कराता है उतना ही पाप उस मनुष्य को होता है | उसके निवारण के लिये उसे उतना सुगन्ध या उससे भी अधिक सुगन्ध वायुमण्डल में फैलाना चाहिये |*
*आचार्य वेदार्थी ने कहा कि तीसरा यज्ञ पितृयज्ञ है | इस यज्ञ के दो भाग हैं तर्पण और श्राद्ध | ये तर्पण व श्राद्ध मृतकों के नहीं अपितु जीवित लोगों के लिये किये जाते हैं | जिन कर्मों से विद्वान्, ऋषि और पितरों को सुखी करते हैं उन कर्मों को तर्पण और श्राद्ध कहते हैं | " सब जीव हमारे मित्र और हम सब जीवों के मित्र रहें " इस भावना से जीवों का उपकार करना चौथा बलिवैश्वदेव यज्ञ होता है और पांचवां यज्ञ अतिथि यज्ञ होता है | जो पूर्ण विद्वान् व धार्मिक महात्मा विद्या, धर्म का प्रचार और अविद्या, अधर्म की निवृत्ति  करते हैं उनको अतिथि कहते हैं | उनकी सेवा व सत्सङ्ग करना अतिथि यज्ञ है | इन पांच महायज्ञों को  करके मनुष्य को सदा आनन्द में रहना चाहिये |*
*इस अवसर पर आर्य भजनोपदेशिका पण्डिता शशि आर्या ने “ संसार में जिसका प्रभु से प्यार न होगा…“  “ ईश्वर जो कुछ करता है अच्छा ही करता है… “ “ मानव बनकर क्यों करता है पशुओं सा व्यवहार…इत्यादि गीतों से श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध किया*  कार्यक्रम में डॉ .विष्णु त्रिपाठी डॉ दिनेश मिश्रा, स्वामी आत्मानंद, राम फेरन मिश्र, मदन गोपाल शास्त्री, मयंक सिंह आर्यावर्त त्रिपाठी, देवव्रत त्रिपाठी, सत्यार्थ मिश्र, वृंदा, सविता, आरिका सिंह, पृथ्वी मिश्रा आदि उपस्थित रहे!
उमेश चन्द्र तिवारी
9129813351
हिंदी संवाद न्यूज़ 


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