उतरौला बलरामपुर गुनाहों से तौबा और बुराइयों से बचने की तरबियत देकर रमजान का महीना रोजेदारो की रूह को पाकीज़गी और दिल को सुकून बख्सता है।
रमजान की पाकीज़गी और इसकी अहमियत के बारे में व माहे रमज़ान के हर रोज़ा के साथ घंटा, मिनट काफी अहमियत वाला है। ये बातें नगर पालिका परिषद उतरौला पूर्व अध्यक्ष पद के प्रत्याशी मलिक एजाज ने कही। उन्होंने कहा की रोजा एक बहुत ही खास इबादत है। सिर्फ मुसलमान में ही नहीं बल्कि हर कौम में हर पैगंबर ने रोजा रखने की बात किसी न किसी रूप में कही है‌ और आज भी रोज हर धर्म में किसी न किसी रूप में मौजूद है। कुरान के अनुसार रोजे का उद्देश्य इंसान में तकवा या आत्मसंयम पैदा करता है। रमजान को हदीस में हम दर्दी और गमख्वारी का महीना भी कहा गया है। हर इंसान चाहे वो किसी धर्म और किसी नस्ल का हो तो उसके साथ भलाई की जानी चाहिए। रमजान के मुबारक महीने में की गई इबादत और नेकियों के बदले में अल्लाह सत्तर गुना सवाब अता फ़रमाता है। इस महीने में अदा किए गए जकात और फितिरे के बदले अल्लाह बंदो को रोजियों में बेशुमार बरकत अता फ़रमाता है। हर रोजेदार मुसलमान को इस महीने में झूठ चुगली बेईमानी बेहयाई या और दूसरी बुराइयों से हमेशा के लिए तौबा कर लेना चाहिए। बेशक अल्लाह बहुत ही बड़ा बख्शने वाला है। किसी जरूरतमंद की मदद चुपचाप बिना किसी प्रचार के ही करें। इतना याद रखें कि अल्लाह को दिखावा बिल्कुल पसंद नहीं है।
*अल्लाह को पसंद है माहे ए रमजान*
रमजान में रोजेदार इबादत कर अल्लाह के नजदीक आने की कोशिश में लगा रहता है। वह भूख प्यास समेत इच्छाओं को रोकता है। इसके बदले में अल्लाह अपने इबादतगुजार रोजेदार बंदे के बेहद करीब आकर उसे अपनी रहमतों और बरकतों से नवाजता है। अल्लाह ने अपनी बंदों से पाकीज़गी की ओर इशारा किया है कि 14 00 पहले ही इस्लाम में यह कहा गया है कि पाकी आधा ईमान है।
इसी को खुदा के रसूल मोहम्मद सल्लल्लाहो ताआला अलैहे वसल्लम ने कहा है,कि कुरान मे अल्लाह ने फरमाया है कि जो इंसान पाक साफ हो तो वह आधे ईमान का हकदार होता है।
असगर अली
उतरौला 

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