राजकुमार गुप्ता 
मथुरा। लठामार होली में लाडली जी मंदिर पर रसायनयुक्त रंगों की फुहार नहीं छोड़ी जाती है। इस दिन कुंटलों टेसू के फूलों से बनाया गया रंग प्रयोग में लाया जाता है। जिसको नंदगांव से आये कृष्ण के ग्वालों पर होली के हुरियारों व श्रद्धालुओं पर डाला जाता है। लठामार होली के दौरान होली खेलने में टनों रंग और अबीर गुलाल बरसाया जाता है। कहीं किसी हुरियारिन या हुरियारे को किसी प्रकार की परेशानी न हो इसके लिये भी बरसाना लाडली जी मंदिर के सेवायतों द्वारा विशेष प्रकार का रंग तैयार कराया जाता है। जिसके लिये टेसू के कुंटलों फूलों का प्रयोग किया जाता है। इसको तैयार करने में 10 दिन का समय लगता है। कुंटलों फूलों को पानी के साथ बड़े बड़े ड्रमों में पानी के साथ भिगोया जाता है। उसके बाद फूलों का रस निकाल जाता है। निकले रस में चूने को मिलाकर वापस ड्रमों में भर दिया जाता है। इस प्रकार तैयार किया जाता है टेसू ईको फ्रेंडली रंग फिर खेली जाती है विश्व प्रसिद्ध लठामार होली। राधा रानी मंदिर के सेवायतों ने बताया कि आज कल के जो रंग बाजार में मिलते हैं वो मिलावट होते हैं। किसी भी हुरियारे हुरियारिन व श्रद्धालुओं को त्वचा संबधित परेशानी हो सकती है। लेकिन टेसू के फूलों से बना ईको फ्रेंडली रंग से त्वचा को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचती साथी ही इसकी खुशबू से मन में ताजगी बनी रहती है। साथी होली का वातावरण भी महकने लग जाता है। गोकुलेश गोस्वामी सेवायत श्रीजी मंदिर ने बताया कि लठामार होली में उच्च कोटि के रंगों का प्रयोग किया जाता है। रसायन व मिलावटी रंगों का प्रयोग नही करते। इन रंगों को नंदगांव से आये हुरियारों के साथ  श्रृद्धालुओं पर डालते हैं। साथ ही टेसू के फूलों से बनाया गया रंग भी हुरियारों व श्रृद्धालुओं पर डाला जाता है।

वर्जन
टैसू रंग को बनाने के लिए दिल्ली से टेसू के 10 से 12 क्विंटल फूल मंगाए गए हैं। इन फूलों को बड़े बड़े ड्रामों में भरकर पानी में भिगो कर रखा जाता है। टैसू फूलों का रस निकाल कर छान लिया जाता है बाद में इस रंग को चूने में मिलाकर ड्रमों में भर दिया जाता है। टेसू के फूल से बने इस रंग को लाडली जी मंदिर पर ऊपर रख दिया जाता है। इस रंग से आने वाले श्रद्धालुओं एवं नंदगांव के हुरियारों पर प्रेम से डाला जाता है।
-विष्णु दयाल गोस्वामी, सेवायत श्रीजी मन्दिर

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