_यात्रावृत्तांतकार- खुशवंत कुमार माली उर्फ़ 'राजेश_ '
_( यात्रा का प्रथम भाग-१ )_
मित्रों लंबी-लंबी यात्राएँ अधिक आनंद उपजाती हैं यदि सह यात्री कोई अच्छा और सच्चा साथी हो| जब मुझे अनुज रणजीत से नेशनल एडवेंचर कैंप के आवेदन की जानकारी मिली| तो मैनें और मित्र अर्जुन भैया ने तुरंत आवेदन का प्लान किया| रणजीत भाई इस यात्रा के न केवल पैरोकार बल्कि योजनाकार व सूत्रधार भी थे| आवेदन, टिकिट, साइड सीन, टैक्सी, सीईओ भारत स्कॉउट गाइड से ओर्डर करवाना आदि समस्त कार्य उन्हीं की निष्ठा, समर्पण और कर्तव्यपरायणता से हो पाएँ| उसी का सुफल यात्रा की सुखद इति श्री के रूप में मिला| आवेदन की प्रक्रिया के पूर्ण हो जाने पर भी शिथिल पत्राचार के चलते यात्रा के प्रारंभ से पूर्व में काफी परेशानियाँ हुई कि यात्रा करे या न करे, ऑर्डर के अभाव और आचार संहिता के डर, कलेक्टर साहब की पूर्व अनुमति आदि अनेक प्रश्नों के बीच फंस गए थे? सभी एडवेंचर के प्रशिक्षनार्थी| रणजीत जी की लगातार भाग दौड़ और अनवर सर, प्रताप जी के प्रयास रंग लाएं और आखिर सीईओ साहब ने ओर्डर द्वारा ट्रेन टिकिट यात्रा प्रारंभ करने के दिन दोपहर 3 बजे अनुमति प्रदान की| शाम पांच बजे की बस और रात बारह बजे की उदयपुर से न्यू जलपाईगुडी की रेल, काफी भागमभाग रही पर यात्रा आखिर आनंद से प्रारंभ हुई|
रणजीत भाई ने सभी के एक साथ यात्रा हेतु आरक्षित श्रेणी के टिकिट करवाये थे पर सभी आरएसी थे| जब मुझे अर्जुन भैया से कंफर्म सीट टिकिट न होने का पता चला तो हमने तुरंत सेकंड एसी का रुख किया और उसमें कंफर्म सीट मिल गई बाकी साथियों के साथ उदयपुर बस स्टैंड मिलना हुआकिया ;वहाँ से हम सभी रेल स्थानक की ओर रुख किया| रेल तो बहुत रात अगला दिन लगने पर थी सो हम सभी ने डीनर लेना मुनासिफ समझा| डीनर के समय एक वंदे भारत ट्रेन का आगमन हुआ| इन दिनों सुपर फास्ट गाड़ियों में शामिल भारतीय रेल की सबसे नई नवेली दुल्हन के बारे में सुना तो बहुत था फील करना बाकी था| दीदार के साथ जो मुलाकात थी मानो बरसो इंतज़ार के बाद साजन सजनी से मिल रहा हो|
सभी ने अलग अलग तथा समूह में फोटो की झड़ी लगा दी| आजकल अति आधुनिक काल के वाट्सप युग में मेरे जैसे अधीर व्यक्ति ने तो तुरंत स्टेट्स भी अपडेट कर दिया फलस्वरूप शुभचिंतकों की प्रतिक्रियाएं भी आनी चालू हो गई| कुछ को रिप्लाई मिला बाकी को पेंडिंग छोड़ हम गाड़ी लगने का इंतज़ार करने लगे| थोड़े समय मे पलेटफोर्म तीन पर गाड़ी लगने की सूचना मिली और उसी पल अपना-अपना लगेज उठा बढ़ चले गाड़ी की ओर, गाड़ी को देख दिन भर की थकान छूमंतर हो गई| अब हमारी राहे अलग हो रही थी| सेकंड एसी और स्लीपर की बोगियां उतनी ही दूर-पास थी जैसे सगाई के बाद मंगेतर और साजन में होती हैं| कितने दूर? कितने पास? थकान भी जायदा थी और दार्जिलिंग के लिए न्यू जलपाइगुड़ी की दूरी भी करीब 2200 किमी थी जो कम न थी|
थकान के कारण लगेज सेट करते ही हमें अटेंडेंट से जैसे ही बेड शीट्स, पिलों, कंबल और टोवेल मिले| बिछाते ही कुंभकर्ण की चिर निद्रा के आगोश में ऐसे गए कि अगले दिन दोपहर को सुबह की| मेरे लगभग सभी यात्राओं का सहभागी सेकंड एसी ही रहा हैं| कम भीड़-भाड़ किराया बजट में और आनंद पुरा| अर्जुन भैया भी जग गए तो चाय के साथ सुबह की शरुआत की जो नाश्ता,फल,केक, नमकीन और न जाने क्या क्या स्थान स्थान के पकवानों के स्वाद संग रात तक पहुँचे| भूख के हिसाब से लस्सी, मूंगफली का निपटारा किया फिर लेटते ही निद्रा रानी ने प्रेम से अपने आगोश में समेट लिया| अगली सुबह थकान न रही भोर में पो फटते ही आँख खुली ब्रश और फ्रेश हो वापस कॉफी ली| ब्रेकफास्ट के बाद आगे बढे जो पुरे दिन कुछ न कुछ चरते रहे और दूरी कटती गई|
दोपहर में कुछ पढ़ने का मन हुआ तो 'नागानंदम' नाटक हाथ में ले लिया| पढ़ते-पढ़ते अर्जुन भैया ने चुपके से फोटो और वीडियो से एक शानदार अल्बम बना मुझे साझा किया जो वास्तव में बहुत प्यारा था| बढ़ती गाड़ी उत्तर प्रदेश देल्ही को पार कर अब बिहार में थी| चावल के दूर दूर तक फैले हरे भरे खेत, नारियल के पेड़ों की लड़िया हमें मौखिक आमन्त्रण दे रही थी| मुझे स्टेट्स पर अनायास ही लिखना पड़ा 'खूबसूरत बिहार' गाड़ी आगे बढ़ी और शाम होते होते बंगाल को मिली| अगणित खुबसूरत नदियाँ आती छुटती रही| प. बंगाल का प्राकृतिक सौंदर्य भी बिहार की भाँति अनुपम हैं| दो दिन से स्लीपर के साथियों की खबर न ली थी सो उनके हाल चाल भी पूछे फिर पहले महानंदा और बादमें तीस्ता के विशाल जल प्रवाह ने स्वामीजी की धरा पर हमारा स्वागत किया| तीस्ता की धारा में बहती अपार जलराशि सिक्किम में बादल फटने से आई त्रासदी का बखूबी बखान कर रही थी| गाड़ी में वापसी में भारत भूटान सीमा के एक जवान से आपदा की पुरी जानकारी बाद में मिली जो वास्तव में अत्यंत भयावह थी| इसी उहापोह में हम करीब 8 बजे न्यू जलपाइगुडी पहुँच गए| स्टेशन से बाहर निकलते ही रणजीत भाई की सुझबुझ से रॉबर्ट भाई अपनी टैक्सी के साथ स्वागत को तैयार खड़े थे| ग्रुप फोटो के बाद गाड़ी में सामान चढ़ाते ही बादलों में तैरते शहर कुर्सियोंग/ खरसांग की ओर हम बढ़ चले...............
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