राजकुमार गुप्ता।।
कलम चलती है जब,
       अपने कर्तव्य पथ पर,
लिखती दास्तां छवि समाज की,
स्वच्छ,पंक,धूसरित दर्प छन्द पर,
है आवाज़ शोषितों मजलूमों की,
करती वार सत्ता के दंभ पर,
सत्य का कर संधान,
होते न डिग पल भर,रहते निडर,
कलमों की धार बना बिगाड़ देती है छवि,
कलम चलती है जब-अपने कर्तव्य पथ पर.............
सत्ता का मद चूर कर देती है,
जन का दुःख हर लेती है,
देती है दुखती रगों को संबल,
करती सवाल बन विपक्ष कातर,
दिखाती सही गलत का अंतर,
गली हो या जंतर-मंतर,
करती निनाद कलरव जीवन भर,
कलम चलती है जब अपने कर्तव्य पथ पर............
खोलती उर के भय बन्धन,
लाती बाहर स्वेत क्रंदन,
शोषण का खोल कपाट,
         सत्ता होती है नतमस्तक,
कलम चलती है जब अपने कर्तव्य पथ पर.............

               

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