राजकुमार गुप्ता
मुझसे एक साल बड़े जसिटस अब्दुल एस नजीर साहब सेवानिवृत्ति के एक माह आठ दिन बाद ही ' मी लार्ड ' से लाट साहब बन गए .केंद्र की भाजपा सरकार ने नजीर को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त कर एक ऐसी नजीर दी है जिसकी कोई सानी नहीं है .अब सेवानिवृत्ति के बाद किसी भी ' मीलार्ड ' के लिए रोजगार के नए रास्ते खुल जायेंगे .
केंद्र में भाजपा सत्तारूढ़ है.पिछले कुछ वर्षों में भाजपा ने देश की संसद और भाजपा शासित राज्यों की विधानसभाओं को मुस्लिम विहीन कर ये धारणा मजबूत की थी कि भाजपा मुस्लिमों के सख्त खिलाफ ही और उसके काल्पनिक हिन्दू राष्ट्र में शायद ही मुसलमानों को कोई बड़ी जिम्मेदारी मिले ,लेकिन केंद्र सरकार ने जस्टिस अब्दुल एस नजीर को राज्यपाल  नियुक्त कर इस धारणा को नेस्तनाबूद करने की कोशिश की है .
यज्ञ के अन्न को भले ही गधे न खा सकते हों किन्तु सत्ता की पंजीरी हर किसी के लिए उपलब्ध है. खासकर पूर्व सैन्य और न्यायिक अधिकारियों के लिए .पहले एक नैतिकता भी थी की सेवानिवृत्ति के दो-ढाई साल तक कोई भी सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी या  न्यायाधीश सार्वजनिक जीवन या राजनीति में सीधे प्रवेश नहीं करता था किन्तु अब ये भी नहीं है .
जस्टिस  अब्दुल एस नजीर साहब विद्वान और चर्चित न्यायाधीश हैं ,उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कुछ ऐसे फैसले किये हैं जो सत्तारूढ़ दल और केंद्र सरकार के लिए संजीवनी साबित हुए. तीन तलाक,नोटबंदी  और अयोध्या की रामजन्मभूमि का विवादास्पद मामला ऐसे ही उदाहरण हैं .अच्छी बात ये है कि अब न्यायाधीश हों या सैन्य अधिकारी नैतिकता-वैतिकता के चक्कर  में नहीं पड़ते. उन्हें लोकनिंदा का भी अब कोई भय नहीं है.जनरल  वीके  सिंह सेना से और जस्टिस रंजन गोगोई न्यायपालिका से बाहर आते ही राजनीति को भा गए थे .मुमकिन है कि जस्टिस नजीर की सादगी पर भाजपा लट्टू हो गयी हो क्योंकि जस्टिस नजीर इतने सादगी पसंद हैं कि उनके पास 2019 तक पासपोर्ट नहीं था. कुछ सप्ताह पहले ही उन्होंने देश के बाहर मास्को की यात्रा की थी.
कर्नाटक के  नजीर साहब आंध्र में केंद्र सरकार की एजेंट की रूप में बैठेंगे .दक्षिण की राजनीति को साधने की लिए भाजपा को एक ऐसे ही सुलझे हुए आदमी की जरूरत थी .जस्टिस नजीर की राज्यपाल  बनने से राजनीति में सुचिता आएगी या न्यायजगत में लालच बढ़ेगा, मै विश्वासपूर्वक कह नहीं सकता ,किन्तु मुझे इस बात की आशंका जरूर है कि न्यायजगत में काम करने वाले बहुत से ' मीलार्ड' के  मुंह में पानी जरूर आने लगेगा .भला कौन है जो राजसुख न चाहता हो. जब नजीर जैसे सीधे-सादे लोग राजनीतिक दलों  को सेवाएं  देने  की लिए राजी हो सकते हैं तब  दूसरों  की बारे  में क्या  कहा   जा  सकता है .
भारत में राज्यपाल अंग्रेजों  कि जमाने में बनाई गई व्यवस्था मानी जाती है .राज्यपाल का पद अब तक राजनीति में पटरी  से उतरे नेताओं कि पुनर्वास के काम आता रहा है. अक्सर राज्यपाल का इस्तेमाल मुख्यमंत्री की जासूसी और नाक में नकेल डालने के लिये होता रहा है .कुछ राज्यपाल ये काम मजबूरी  में करते हैं तो  कुछ शौकिया  तौर  पर .नजीर साहब कौन सी भूमिका अख्तियार  करेंगे  ये भविष्य  के गर्त  में है  ,नजीर की राज्यपाल के रूप में नियुक्ति  से हिन्दू नाराज  हों या न हों लेकिन मुसलमान  खुश  जरूर  होंगे .मुमकिन है कि इसी  मकसद  से जस्टिस नजीर को राज्यपाल बनाया  गया  हो ?
मुझे दुःख  एक ही बात का है कि अब तक जो नजीर साहब सत्ता को अपनी  उँगलियों  पर नचाया  करते थे वे ही नजीर साहब अब सत्ता के इशारों  पर नाचते  नजर आएंगे . नजीर साहब वकील  और  न्यायाधीश बनने से पहले बचपन  या छात्र  जीवन में कभी  संघ  की किसी शाखा  में गए या नहीं ,ये मै नहीं जानता  किन्तु ये जरूर जानता हूँ  कि एक के बाद एक तीन विवादास्पद  फैसलों  की वजह  से नजीर साहब को भाजपा का शुभचिंतक  पहले से ही माना  जाता  रहा है . नजीर साहब चाहते  तो केंद्र के इस प्रस्ताव  को विनम्रता  से खारिज  कर एक और नजीर बना  सकते थे,लेकिन उन्होंने केंद्र के प्रस्ताव  को विनम्रता  से स्वीकार करने की नजीर बनाई  है. अब भविष्य में सेवानिवृत्त होने  वाले दूसरे 'मी लॉर्ड्स '   भी राजनीति में आकर  अपनी सेवाएं   देने की तैयारी  कर सकते हैं .उन्हें नजीर साहब की नजीर  देने में सहूलियत होगी .
सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख न्यायाधीश रह  चुके माननीय रंजन गोगोई ने इससे पहले भाजपा की और से राज्यसभा  में जाने का प्रस्ताव स्वीकार कर एक बड़ी नजीर पेश की थी. वे आलोचनाओं से नहीं डरे . उन्होंने शपथ  ग्रहण  के बाद राज्यसभा   में जाने के पीछे  की कहानी  बताने  का वादा  किया  था किन्तु आजतक  वो  कहानी  किसी  को सुनाई नहीं .बहरहाल अदालतों  से निकलकर  लोग राजनीति में आ  रहे  हैं ये अच्छी  बात है .राजनीति के यज्ञ का अन्न अनपढ़ ,अपराधी  और दिमाग  से पैदल  लोग खाएं  ,इससे तो अच्छा  है कि पढ़े -लिखे  'मी लॉर्ड्स' ही सियासत में आएं.
न्यायजगत से आये लोगों को केवल  इतनी  सावधानी  जरूर बरतनी  होगी की वे राजनीति कि 'जगदीप ' न बन जाएँ . राजनीति कि दरवाजे  पत्रकारों  और सेवानिवृत्त आईएएस /आईपीएस  अधिकारियों कि लिए पहले  से खुले  हुए  हैं. अनेक  ने अच्छे  परिणाम  भी दिए  हैं  .कुछ मंत्री,विधायक   और सांसद  भी बनाये  गए .कांग्रेस को भी अब जब कभी केंद्र में आने का मौक़ा मिले तो उसे भी भाजपा का ये फार्मूला अपनाना चाहिए .कांग्रेस फिलहाल राज्यसभा में कुछ सेवानिवृत्त न्यायधीश भेजकर हिसाब बराबर कर सकती है .मुमकिन है कि नजीर साहब के राज्यपाल   बनने से हमारे मोहम्मद औबेसी साहब खुश हों और आने वाले विधानसभा चुनानवों में भाजपा की खुलकर मदद कारण.अभी वे ये काम चिलमन के पीछे से करते हैं .
मुझे कभी लगता है कि 'मी लार्ड ' से 'लाट साहब' बनना  अब बहुत कठिन काम नहीं रहा .अब हमारे मंगू भाई से लेकर जस्टिस नजीर साहब कि श्रेणी एक जैसी है .मंगू भाई बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं किन्तु मध्यप्रदेश के लाट साहब हैं ,जस्टिस नजीर साहब ने बहुत पढ़ाई भी की है और वकालत भी.एक न्यायाधीश के रूप में दीर्घकालिक सेवाएं दी हैं सो अलग .लेकिन वे शायद नहीं जानते कि राजनीति में सब धान एक भाव से ही बिकते हैं .कब उन्हें लतिया दिया जाये ,कोई नहीं जानता .भगवान भी नहीं इसी क्रम  में मै जस्टिस  अब्दुल एस नजीर कि उज्ज्वल  भविष्य की कामना  करता हूँ. आपकी  आप  जाने.

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