राजकुमार गुप्ता
 आगरा जिले की बाह तहसील के ग्राम कुंवारी में शिक्षक दंपति इंद्रपाल सिंह भदोरिया और आनंदा देवी के घर में 2 जनवरी 1980 को प्रथम पुत्र के रूप में विशाल भदौरिया फौजी का जन्म आगरा के एसएन हॉस्पिटल में हुआ! अपने माता-पिता की प्रथम संतान के रूप में जन्मे विशाल ने शिक्षक दंपति के घर का माहौल गुंजायमान कर दिया जो आगरा में प्राइवेट शिक्षण कार्य करते थे पिता इंद्रपाल सिंह भदोरिया माता आनंदा देवी के प्रथम पुत्र विशाल अपने माता-पिता के आंगन में खुशियां समेटे हुए एक शिक्षित परिवार में जन्म लिया मां आनंदा देवी के ट्रांसफर के बाद मुरैना जिले के कैलारस नगर की शुगर फैक्ट्री के विद्यालय में मां नंदा देवी ट्रांसफर होकर शिक्षक के रूप में आई यहीं पर पिताजी इंद्रपाल सिंह भदोरिया अभी शासकीय शिक्षक बन गई मेरे मित्र विशाल की प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा कैलारस नगर में ही हुई विशाल बचपन से ही पढ़ने में काफी तेज तर्रार प्रखर बुद्धि के धनी थे नतीजतन जवाहर नवोदय विद्यालय में जब उन्होंने नवोदय विद्यालय की प्रवेश परीक्षा दी और उसे उत्तरी ऐड कर लिया तो घर में एक बार फिर उनकी प्रखर बुद्धि का परिचय सभी ने देखा और वह अपनी आगे की शिक्षा के लिए जवाहर नवोदय विद्यालय जौरा में पहुंच गए क्योंकि वह अपने माता पिता की पहली संतान थी उनके माता-पिता को नवोदय विद्यालय का रहन-सहन रास नहीं आया और दसवीं पास  करने के बाद पुनः विशाल नवोदय विद्यालय छोड़कर कैलारस के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के छात्र बन गए यहीं से विशाल और मेरी पहचान हुई तब मैं उनका जूनियर हुआ करता था लेकिन अपनी मिलनसार इता और मधुर वाकपाटुता से हमारे सीनियर छात्र होने के बाद भी दोस्ताना संबंध हो गए उनके चेहरे पर हमेशा मुस्कान झलकती रहती थी इस दौरान उन्होंने 12वीं की कक्षा    पास कर आर्मी में अपनी सेवाएं देने चले गए 3 बरस तक उन्होंने आर्मी में अपनी सेवाएं दी लेकिन जैसा मैंने आपको बताया वह अपने माता पिता की प्रथम संतान होने के चलते माता-पिता के प्रेम के चलते आर्मी से बने मजबूरन रिजाइन देना पड़ा और और पुनः शिक्षा दीक्षा के लिए कैलारस आ गए अब जो विशाल हमारे कभी सीनियर हुआ करते थे अब हम और वह एक साथ कॉलेज की शिक्षा प्राप्त करने लगे। इस दौरान उनके छोटे भाई से मिली काफी गहन मित्रता हो गई क्योंकि हम साथ साथ पढ़ते थे। पर एक बात जो देखने लायक थी कभी भी उन्हें उदास होते हुए नहीं देखा सदा उनके चेहरे पर मुस्कान झलकती रहती थी। दोस्तों के इतने सच्चे हमदर्द और हितैषी थे किसी भी दोस्त पर किसी भी संकट के समय मदद करना उन्हें ढाढस बधाना एक सही रास्ता दिखाना उन्हें बखूबी आता था।
 बात उन दिनों की है जब उन्हें ब्रेन ट्यूमर जैसी खतरनाक बीमारी से गुजरना पड़ा तो हम सभी दोस्तों के मन में एक शंका  का घर कर गई और हम सभी दोस्त चिंतित हो गए लेकिन वहां विशाल ने अपनी जीवटता का परिचय दिया और उस गंभीर बीमारी से जीतकर बाहर आए सदा दिल खोल कर बात करना सभी की मदद करना जैसे उन्हें विरासत में मिला हो हम सब उन्हें प्यार से दादा कहकर बुलाते थे क्योंकि उन का छोटा भाई विक्रांत और मैं  साथ -साथ पढ़े हैं विक्रांत उन्हें दादा कहकर बुलाता था वहीं हम सब भी फौजी दादा कहकर उनका उद्बोधन करते थे विशाल भाई फिर पाणीग्रहण संस्कार में बंधे और टूंडला निवासी रजनी देवी से उनका विवाह हो गया जिनके  आंगन में एक प्यारी सी बच्ची कनुप्रिया  का जन्म हुआ। मिलनसार का के साथ-साथ मेहनती भी काफी पक्के थे खुद की खेती किसानी खुद ही संभालते हुए हमने उन्हें बरसों तक देखा है अपने फार्म हाउस पर एक किसान की तरह मेहनत करते हुए उन्हें कभी भी देखा जा सकता था दोस्तों के लिए दोनों हाथों से अपना सब कुछ लुटाते हुए भी कई बार मैंने उन्हें देखा मैं जब भी संकट में आया हमेशा होने अपने साथ खड़ा पाया क्योंकि मैं एक जनवादी  पत्रकार हूँ सो हमेशा वो मुझसे कहा करते थे अरे रिंकू पत्रकारिता तेरी ठीक है पर कुछ कमाई बमाई के लिए कुछ और भी किया कर  क्योंकि पत्रकारिता से तो तू कुछ करता नहीं है कमाता नहीं है धन अर्जन के लिए भी कुछ काम धंधा दिया कर और हमेशा मैं उनकी बात हां दादा कह कर टाल देता था वह हमेशा कहते थे कि तेरी वामपंथी विचारधारा  तेरे लिए ठीक है लेकिन गृहस्ती के संचालन के लिए कुछ तो करना होगा पर मैं हमेशा उनकी बात को अनसुना कर दिया करता था। यहां यह बात भी बताना चाहूंगा जब जब भी मुझे किसी भी  कार्यक्रम के लिए या बाहर आने जाने के लिए किसी भी प्रकार की कोई आवश्यकता हुई  तो उन्होंने हर समय मेरी मदद की और हमेशा हंसकर के कहते रहते थे  तेरा कुछ नहीं हो सकता लेकिन मैं हमेशा उनकी बात को क्योंकि वो भी मुस्कुरा देते तो मैं भी हंसकर टाल देता था क्या दादा, हां दादा देखूंगा,आगे देख लूंगा ऐसा क्या पता था कि आज हमारे बीच दोस्तों का सच्चा हमदर्द एक सच्चा हितेषी  असमय ही हम सब को छोड़ कर चला जाएगा  आकाश की अनंत गहराइयों में खो जाएगा इसकी कल्पना शायद ही कभी हमने की हो आगे क्या लिखूं कैसे लिखूं आगे अब लिखने की हिम्मत नहीं होती.। अंत में इन पंक्तियों के साथ अपने लेख को विराम देता हूं
 बिछड़ा कुछ इस अदा से की रुत ही बदल गई
 एक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया

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