अकबर के हरम में हर महिला के शामिल होने का अपना एक किस्सा होता था. जैसा सरकार शेख की बहू का. उसकी भी अपनी एक कहानी है.

जब शिकार के दौरान उपद्रव की खबर मिली

बादशाह अकबर मथुरा के पास हिरन का शिकार करने पहुंचे थे. शिकार के दौरान उन्हें सूचना मिली कि दिल्ली में हालात सामान्य नहीं है. उपद्रव शुरू हो गया है. यह जानकारी मिलते ही वो सैनिकों के साथ दिल्ली के लिए निकल पड़े. कुछ समय आगरा में बिताया. प्रवास के दौरान उन्हें ख्याल आया कि क्यों न दिल्ली और आगरा के रईसों को अपनी रियासत से जोड़ा जाए.

इसी सिलसिले में चर्चा के लिए अकबर ने आगरा के सरदार शेख बादाह से मुलाकात की. यह उस दौर की बात है जब शादियों के जरिए राजनीति-कूटनीतिक सम्बंधों की नींव पड़ती थी. आगरा में भी यही हुआ. सरदार शेख बादशाह से जुड़ने के लिए राजी हो गया. शहर में जैसे ही यह चर्चा आम हुई तो कोहराम कच गया. शहर के अमीरों के लिए यह खबर परेशान करने वाली थी, क्योंकि उन पर दबाव बढ़ गया था.

सुबर की सैर और महिला का दीदार

आगरा प्रवास के दौरान ही एक दिन सुबह की सैर कर रहे बादशाह की नजर उसी शेख बादाह के बेटे अब्द-उल-बासी की बेगम पर पड़ी. बेगम बेहद खूबसूरत थी. उसे देखकर अकबर ने निकाह के लिए जिद पकड़ ली. अकबर को उस महिला की जानकारी मिलने के बाद शेख को पत्र भेजा.

पत्र में साफतौर पर लिखा कि वो उस महिला से निकाह करना चाहते हैं. यह बात पढ़कर बाप-बेटे पर आसमान ही टूट पड़ा. दोनों में गुस्सा और आक्रोश था, लेकिन अकबर का विरोध कर पाना उनके बस में नहीं था. विरोध न जता पाने की एक वजह थी वो था मुगल कानून.

मुगल कानून भी बढ़ा रहा था मुश्किलें

उस दौर में मुगल कानून प्रभावी था, जो कहता था अगर बादशाह किसी महिला पर चाहतभरी नजर डालता है तो उसका पति उसे तलाक देने के लिए बाध्य हो जाता था. शेख के मामले में भी यही हुआ. उसके बेटे को अंतत: पत्नी को तलाक देना पड़ा. पत्नी को तलाक देने के बाद उसे शहर छोड़कर दक्कन राज्य की ओर रुख करना पड़ा. उसकी पत्नी आकर तमाम महिलाओं की तरह बादशाह के हरम में खो गई.

उस दौर में ऐसी घटनाएं आम थीं जब बादशाह अपनी अय्याशियों के लिए लोगों का जीवन उजाड़ देते थे और जबरन तलाक दिलाया जाता था. मुगल बादशाह अकबर के समकालीन इतिहासकार रहे अब्दुल कादिर बदायुनी ने अपनी क़िताब ‘मुन्तख़ाब-उत-तवारीख’ इसका जिक्र किया है.

जब हरम की महिलाओं के लिए खिंच जाती थी तलवारें

कादिर बदायुनी लिखते हैं, विदेश से आने वाले लोगों के लिए मुगलों का हरम हमेशा ही जिज्ञासा का विषय रहता था. इतिहासकार थॉमस रो लिखते हैं कि मुगलों में हरम में अलग-अलग धर्म और संस्कृतियों की महिलाएं मौजूद रहती थी. इसे उनकी विलासिता के प्रतीक के तौर पर भी जाना जाता था. महिलाओं को उनकी मर्जी से बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी. दिनभर पर्दे के पीछे रहना और बादशाह को खुश रखना ही उनका एकमात्र काम था.

दरबारियों को हरम की महिलाएं ले जाने का अधिकार था, लेकिन बादशाह की अनुमति से. हरम में कुछ ऐसी महिलाएं भी रही हैं, जिन्हें अपने घर ले जाने के लिए दरबारियों में तलवारें भी खिंच गई थीं.

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