छत्तीसगढ़,श्रीमती पदमा राजीव दीवान एक सामाजिक कार्यकर्ता और साहित्यकार हैं ।जिन्होंने कभी भी किसी की मदद या सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में विभिन्न कार्य किये है।जिसे उन्होंने कभी उछाला  नहीं क्योंकि ना उन्हें शोहरत कमाने का शौक ना ही औरों की तरह फंड इकट्ठा करने की लालसा रही।वह हमेशा किसी न किसी रूप में दूसरों की सहायता करती रही है ।वह हमेशा दिल के सुकून के लिए और समाज ने हमें जो दिया है उसे सूद समेत वापस  लौटाने के लिए और अपने कर्मों का हिसाब मै ऊपर वाले पर छोड़ देती हूं चाहे वह कोरोना काल में भोजन बंटवाने  का कार्य जो कि अभी भी जारी है, या 221 कन्या पूजन ,चाहे कभी किसी संस्था को आर्थिक सहयोग और अनाज, या  किसी निर्धन की  बेटी की शादी में मंडप (सामान पूजा )का सामान,या आश्रम में डोनेशन पर 21 जून 2022 को जो विवाह संपन्न कराना। जिसमें वह साक्षी है और सहयोगी भी।यह विवाह अनूठा , विशेष और समाज के लिए एक मिसाल है जहां दूल्हा दुल्हन मूक बधिर है और दुल्हन सुकुमारी  मीनाक्षी एक मूक बधिर लड़की ही नहीं अपितु अनाथ भी है उसका कोई भी नहीं है। जो मूक बधिर आश्रम मे पिछले पाँच बरस से रह रही थी।जिसे नारी निकेतन से लाया गया था।मीनाक्षी की शादी में हम 50 लोगों को  विशेष रूप से निमंत्रित किया गया। हम में से किसी  का मीनाक्षी से कोई रक्तसंबंध नहीं था ना ही कोई रिश्तेदारी थी हम सबो का मीनाक्षी से कोई संबंध ना होते हुए भी हम लोगों ने खुशी-खुशी उसका विवाह संपन्न कराया। पहले तो आश्रम वालों ने सोचा कि 11 कपडों  में ही उसका विवाह  कर दिया जाए या विदा कर दिया जाए ,पर रायपुर शहर में समाजसेवियों की सेवा  भाव ऐसी है उसे हर वह सामान मिल गया। आशीर्वाद के रूप में जो एक लड़की को उसके माता-पिता शगुन के रूप में देते हैं मेरे सौभाग्य रहा कि हमारे द्वारा भी 108 बर्तनों का पूरा सेट दिया और भविष्य में  जरूरत पड़ी तो और भी कुछ सहयोग करूँ।मेहंदी  मीनाक्षी के साथ में पढ़ रहे  आश्रम में एक मूक-बधिर बालक ने लगाई व दूसरे दिन हम सब ने हल्दी और डांस कर संगीत का भी  खूब आनंद लिया ।हमारा मीनाक्षी से रक्त संबंध न होते हुये भी उसके पारिवारिक सदस्य हो गये थे।  हम सब ने मिलकर बारात  स्वागत किया और  हर रस्म बखूबी निभाई। चूंकि 21 जून योग दिवस था  तो वरमाला "वीरभद्रासन" में संपन्न हुई। पिछले कई वर्षों से मूक बधिर आश्रम में जाना रहा है  और उन  बच्चों के बीच बैठकर और अपने पति के साथ किसी न किसी रूप में सेवा देकर अपने मन को सुकून और आनंद की अनुभूति करते रहे है और ये लगता है इससे बड़ा सुकून कहीं नहीं मिलेगा। यह विवाह इसलिए विशेष रहा है क्योंकि यह"शून्य कचरा रहित प्रबंधन" के तहत संपन्न हुई जिसमें डिस्पोजल का प्रयोग नहीं किया गया था प्लास्टिक का प्रयोग नहीं किया गया था और लड़की का विवाह भी उसके पारिवारिक या रक्त संबंधियों नहीं किया हम जैसे परायों ने किया और जो कि उसके अपने सगे बन गए ऐसा सिर्फ मेरे देश में संभव है यही तो अनेकता में एकता का प्रतीक है और मानवता के जिंदा होने की एक मिसाल है शायद इसी को कहते हैं "वसुधैव कुटुंबकम"।

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