*पाप का मूल कारक है लोभ-आचार्य बालकृष्ण मिश्र*
लोभ का प्रभाव बड़े बड़े ज्ञानी महात्मा लोगों को भी नहीं छोड़ता संसार में लोभ ही पाप का मूल कारक है यह मनुष्य का सबसे बलवान शत्रु है। यहां तक कि महर्षि कश्यप भी लोभवश दुराचार में लिप्त हो गये थे।एक बार महर्षि यज्ञकार्य के लिए वरुणदेव की गौ ले आये। यज्ञ-कार्य की समाप्ति के बाद वरुणदेव के बहुत याचना करने पर भी उन्होंने वह गौ वापस नहीं किया तो उदास मन से वरुणदेव ब्रह्माजी के पास गये और उनको अपना दु:ख सुनाते हुए कहा–हे महाभाग ! वह अभिमानी कश्यप मेरी गाय नहीं लौटा रहा है। अत: मैंने उसे श्राप दे दिया कि मनुष्य जन्म लेकर तुम गोपालक हो जाओ और तुम्हारी दोनों पत्नियां भी मानव योनि में उत्पन्न होकर अत्यधिक दु:खी रहें।जिस तरह मेरी गाय के बछड़े माता से अलग होकर दु:खी हैं उसी तरह पृथ्वीलोक में जन्म लेने पर अदिति के भी गर्भ से जन्म लेते ही उसके बच्चे मृत्यु को प्राप्त कर उससे दूर हो जायेंगे इसे कारागार में रहना पड़ेगा और उसे बहुत कष्ट भोगना होगा। वरूण की बात सुनकर ब्रह्माजी ने भी अपने प्रिय पौत्र कश्यप को श्राप दे दिया कि तुम पृथ्वी पर यदुवंश में जन्म लेकर वहां अपनी दोनों पत्नियों के साथ गोपालन का कार्य करोगे।
फलत:कश्यप मुनि ने अगले जन्म में वसुदेव और उनकी दोनों पत्नियों ने देवकी और रोहिणी के रूप में जन्म लिया। तथा वसुदेव व देवकी को घोर कष्ट झेलना पड़ा।

Post a Comment

If you have any doubts, please let me know

और नया पुराने