*भारत की प्राचीन संस्कृति में निहित हैं योग की जड़ें '*

             डॉ कामिनी वर्मा
   प्रोफेसर, काशी नरेश राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय                     ज्ञानपुर ,भदोही ,उत्तर प्रदेश
      

घर में अक्सर बड़े बुजुर्गों से यह प्रेरक संदेश  अवश्य मिलता है। कि अगर सुबह की शुरुआत अच्छी हो तो पूरा दिन खुशनुमा व्यतीत होता है । दिन को खुशनुमा बनाने का सशक्त माध्यम सुबह की सैर और योग है। योग मनुष्य के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास में बहुत उपयोगी है।आज के जीवन की तीव्र व्यक्ति ने जीवन की दिनचर्या को अस्त-व्यस्त कर दिया है। फलतः बहुत सी बीमारियां शरीर को जकड़ने लगी हैं। ऐसी उलझन भरी और तनावपूर्ण दिनचर्या में  अगर दिन की शुरुवात योग से की जाए तो ना सिर्फ मन प्रसन्न रहता है, बल्कि शरीर में कई बीमारियां स्वयं समाप्त होने लगती है। योग अनुशासित जीवन  जीने का विज्ञान है। चिकित्सा विज्ञान इस बात को स्वीकार करता है कि योग और प्राणायाम से शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की स्फूर्ति मिलती है। इसीलिए अक्सर कहते हुए सुना जाता है, करो योग रहो निरोग। योग से न सिर्फ शारीरिक और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती ही बल्कि मन में सकारात्मक भाव उत्पन्न होते हैं। और सकारात्मक भाव आने से व्यक्ति दुष्कर कार्य भी सरलता है कर सकता है। प्रातः काल में किया गया योग शरीर को दिनभर उर्जा प्रदान करता है और मन मस्तिष्क को शांत रखता है। और शांत मन सृजनकारी होता है। 

       'योग' शब्द संस्कृत भाषा की युज़ धातु से बना है, जिसका अर्थ जुड़ना है। योग करने से व्यक्ति की चेतना ब्रह्मांड की चेतना से सायुज्य होकर मन एवं शरीर तथा मानव एवं प्रकृति के मध्य सामंजस्य स्थापित करती है। योग विभिन्न मुद्राओं में सिर्फ अभ्यास या संतुलन करना नहीं है, बल्कि यह संपूर्ण जीवन पद्धति है। जो समय पर सोने- जगने व कार्य करने का प्रशिक्षण प्रदान करती है। जिससे स्वत: अनुशासन  का भाव जागृत होता है । और अनुशासित व्यक्ति समस्याओं का समाधान आसानी से कर सकता है। योग का अर्थ संयम या संतुलन है। संयमित रहने से उर्जा का अनावश्यक व्यय नहीं होता है। संयम से शारीरिक- मानसिक स्वास्थ्य प्राप्ति के साथ-साथ स्वविवेक भी जागृत होता है और व्यक्ति अपनी क्षमता व ऊर्जा का समुचित उपयोग कर पाता है। योग के महत्व को देखते हुए गीता में कृष्ण ने कहा है *योग में स्थित होते हुए सभी कर्म करो तो सफलता अवश्य मिलेगी* प्राचीन ऋषियों ने योग अभ्यास के द्वारा ही दुर्लभ सिद्धियाँ  हासिल की थी । जो सामान्य मनुष्य  के लिए अप्राप्त थीं। ऋषि अगस्त्य ने योग बल से ही समुद्र को उदरस्थ कर लिया था । भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण आने तक 6 माह तक योग बल से ही सरसैया पर विश्राम किया  और मृत्यु को पास आने नहीं दिया था। 
     भारत में योग की जड़ें लगभग 5000 साल पुरानी है। यहां की सबसे प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता में एक मुद्रा पर शिव की योग मुद्रा में प्राप्त प्रतिमा 2750 ईसा पूर्व भारत में योग विज्ञान का साक्ष्य प्रस्तुत करती है। अतः शिव को प्रथम योग गुरु या आदि योगी की संज्ञा से अभिहित किया जाता है। वैदिक संस्कृति में सूर्य उपासना को अधिक महत्व दिया गया जो आज सूर्य नमस्कार आसन के रूप में लोकप्रिय है। महर्षि पतंजलि ने तत्कालीन समाज में विद्यमान योग विज्ञान एवं योग मुद्राओं को  योग सूत्र में संकलित किया ।  उन्होंने चित्त वृत्ति निरोध को ही योग माना है। योग वशिष्ठ में योग शब्द का अर्थ संसार सागर से पार हो जाने युक्ति बताई गई है।  छठी शताब्दी ईसा पूर्व  धार्मिक एवं सामाजिक क्रांति के रूप में भिज्ञ है। इस काल में महावीर  स्वामी के  पंच महाव्रत और महात्मा बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग में योग साधना के तत्व स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होते हैं। श्रीमद भगवत गीता में समत्व और कर्म में कुशलता को योग कहा गया है।  ज्ञान योग ,भक्ति योग एवं कर्मयोग के रूप में इसे विस्तार मिला। तथा व्यास ने योग सूत्र पर महत्वपूर्ण टीका लिखी। 
       वर्तमान में संपूर्ण विश्व कोरोना वायरस के आतंक से आक्रांत है।  मौत के आंकड़े कभी कम कभी अधिक हो रहे हैं। अभी भी इसके कहर से निजात नहीं पाया जा सका है। इसके कहर से शायद ही कोई सौभाग्यशाली परिवार हो जिसने अपने परिवारी जन या प्रिय जन को न खोया हो। इस के भय से सभी शारीरिक व मानसिक स्तर पर टूट गए। वायरस ने कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों को आसानी से संक्रमित किया । वहीं मजबूत इम्यूनिटी वाले व्यक्ति बचे रहे। आज इस वायरस का संक्रमण महामारी का रूप धारण कर चुका है।
      जीवन की कोई भी जंग बिना स्वस्थ तन व मन के नहीं जीती जा सकती । और यह तभी स्वस्थ रहता है जब हमारे नियंत्रण में होता है। प्रसिद्ध मानसिक स्वास्थ्य मर्मज्ञ मनोविज्ञानी ब्रॉक चिसोल्म का कथन है *बिना मानसिक स्वास्थ्य के सच्चा शारीरिक स्वास्थ्य नहीं हो सकता और बिना शारीरिक स्वास्थ्य के मन को स्वस्थ नहीं रखा जा सकता* जीवन के संघर्ष में शरीर और मन दोनों की महत्वपूर्ण भूमिका है। 
      आज इस महामारी के दौर में  लगभग सभी लोग चाहे वह बच्चे हो या बुजुर्ग,स्त्री ,पुरुष ,विद्यार्थी ,कामगार दैनिक वेतन भोगी श्रमिक सभी तनाव की स्थिति से गुजर रहे हैं । यह तनाव ही आगे चलकर अवसाद का रूप धारण करता है। और अवसाद के लक्षण शरीर पर पड़ते हैं तो चिल्लाना, झगड़ा करना, व्यग्र होकर इधर-उधर घूमना ,किसी काम को बार-बार करना या शारीरिक तापमान बढ़ जाना और सिर दर्द होने के रूप में हमारे सामने आता है। साथ ही स्वस्थ मानसिक स्वास्थ्य वाला व्यक्ति भी समय-समय पर कई शारीरिक बीमारियों से दो चार हाथ होता रहता है। 
       ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में शारीरिक और मानसिक दोनों पक्षों को स्वस्थ रखने का उपाय योग में समाहित है। चिकित्सकों ने भी स्वीकार किया है आयुर्वेद और योग के सहयोग ने कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज में चमत्कारी असर  दिखाया है। यूएस नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिकल मेडिसिन द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में उल्लेखित है  "ध्यान के साथ योग करने से बुढ़ापे को टालने और कई बीमारियों को आरंभ में रोकने में मदद मिलती है योग न केवल शारीरिक स्वास्थ्य का उपचार करने में सहयोगी है बल्कि भावनात्मक और मानसिक सेहत सुधारता है तथा अवसाद को कम रखता है" इसके महत्व को देखते हुए अमेरिका में अधिकारिक खेल के रूप में इसे स्वीकार कर लिया गया है। 
       योग का नियमित अभ्यास जहाँ एकाग्रता बढ़ाता है, वही शरीर, दिमाग और आत्मा को स्वस्थ रखता है। तथा ओज व ऊर्जा को बढ़ाता है। स्फूर्ति और ऊर्जा का संचार होने के साथ-साथ नसों और नाड़ियों का शोधन होता है। और रोग से लड़ने की क्षमता भी मिलती है। यह शरीर को अंदर और बाहर से वायरस से लड़ने की क्षमता उत्पन्न करता है तथा मन का तनाव दूर करता है। प्रतिरोधक तंत्र मजबूत होने से शरीर जल्दी संक्रमित नहीं होता है। ब्लड प्रेशर, थायराइड, डायबिटीज, कमर दर्द तथा घुटने के दर्द को भी योग के द्वारा नियंत्रित रखा जा सकता है । 
      कोरोना वायरस का प्रकोप अभी भी समाप्त नहीं हुआ है। चारों ओर नकारात्मक विचार प्रसारित हो रहे हैं ऐसे में योग से मानसिक रूप से मजबूत होकर विचारों को सकारात्मक दिशा में नियोजित किया जा सकता है। 
     कपालभाति प्राणायाम ,प्राण -शक्ति में वृद्धि कर श्वसन तंत्र को सुदृढ़ कर सांस लेना आरामदायक बनाता है। साथ ही प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। 
     अनुलोम- विलोम से सामान्य रूप से होने वाली सर्दी ,खांसी, जुकाम में राहत मिलती है । तथा श्वसन क्रिया बेहतर होती है और प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है। भस्त्रिका प्राणायाम से भी शरीर की कोशिकाएं स्वस्थ बनी रहती है और श्वसन क्रिया से जुड़ी कोई भी बीमारी नहीं होती है। तथा प्रतिरोधक क्षमता सुदृढ़ होती है। वात पित्त व कफ दूर होते हैं। भ्रामरी ध्यान योग आत्म शक्ति को बढ़ाता है, जिससे अवसाद ,अकेलापन व तनाव घबराहट, बेचैनी दूर होता है । और व्यक्ति मानसिक रूप से मजबूत होता है तथा प्रसन्न रहता है। 
      अनुचित खानपान ,अनियमित दिनचर्या ,फास्ट फूड, जंक फूड की ओर अग्रसर जीवन शैली से उत्पन्न मोटापा आज वैश्विक समस्या बन चुका है साथ ही कोरोनावायरस में अधिकतर घर लोग घरों में ही है तो अवकाश के काल में तरह-तरह के व्यंजन बनाकर उनका सेवन करने से  तथा शारीरिक गतिशीलता घरों के अंदर सीमित हो जाने से शरीर में वसा की मात्रा बढ़ रही है। इस वसा को शरीर से दूर करने का उपाय योग में है। कई व्यायाम शरीर के विभिन्न अंगों की वसा को कम करने के लिए है। जिनमें कपालभाति, भस्त्रिका, उज्जई प्राणायाम को जीवन पद्धति बनाकर असंतुलित वसा से छुटकारा पाया जा सकता है। 
      आधे घंटे तक प्रतिदिन व्यायाम करने से दिमाग में तनाव उत्पन्न करने वाले हार्मोन धीरे-धीरे खत्म होने लगते हैं और मस्तिष्क में खुशी बढ़ाने वाले हार्मोन ऑक्सीटॉसिन का स्राव तेजी से  होता है, जिससे प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है और मानसिक सेहत दुरुस्त रहती है। फेफड़े और शरीर के  अन्य अंग भली प्रकार से काम करते हैं।  वास्तव में योग तन और मन दोनों के लिए संजीवनी बूटी का कार्य करता है। यह सदियों से वैश्विक समुदाय को निरंतर स्वस्थ रहने का संदेश देता आ रहा है और आज भी इसकी उपयोगिता न सिर्फ अक्षुण्ण है अपितु इस कोरोना महामारी में बढ़ गयी है।

Post a Comment

If you have any doubts, please let me know

और नया पुराने