*काफी अहम है रमजान के आखिरी अशरे की पांच रातें -मौलाना न‌ईमुद्दीन*   
          उतरौला(बलरामपुर) रमजानुल मुबारक का महीना अन्य महीनों हे अफजल है,और इस महीने के आखिरी अशरे की पांच रातों की काफी फजीलत है।इन पांच रातों को शबे कद्र के नाम से जाना जाता है पैगम्बरे इस्लाम की उम्मत के लिए यह रातें तोहफा है।
        अल जामेतुल गौशिया अरबी कालेज मौलाना व कारी न‌ईमुद्दीन ने बताया कि हदीस में आया है कि पैगम्बर ने जब देखा कि मेरी उम्मत की उम्र बहुत कम यानी 60,70साल तकरीबन होती है जब कि पहले के नबियों के उम्मतियों की काफी ज्यादा होती थी।मेरी उम्मत की नेकियां उनके मुकाबले में कम होगी उन्हें इसका दुख था।अल्लाह पैगम्बर की खुशी के लिए रमजान की 21,23,25,27,29 वीं की रातों को शबे कद्र करार दिया कहा जाता है कि एक शबे कद्र की इबादत का सवाब एक हजार महीने या 84 साल की इबादत के सवाब से ज्यादा होता है,इसे लैलतुल कद्र भी कहा गया है।इन रातों की फजीलत कुर‌आन पाक व हदीश में बयान की ग‌ई है।इस रात में नफिल नमाज के साथ साथ कुर‌आन की तिलावत कसरत से करें क्योंकि कुर‌आन शबे कद्र की रात में ही नाजिल हुआ था।
बंदों को चाहिए कि सच्चे मन से अस्तगफिरूल्लाह पढ़ें और गुनाहों से दूर होने का पक्का और सच्चा वादा अपने रब से और अपने आप से करें।
असग़र अली
उतरौला

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