जिस प्रकार शनि देव सृष्टि के प्रथम दण्डाधिकारी हैं भगवान चित्रगुप्त सृष्टि के प्रथम न्यायाधीश हैं उन्हें न्याय का देवता माना जाता है. मनुष्यों की मृत्यु के पश्चात, पृथ्वी पर उनके द्वारा किए गये कार्यों के आधार पर उनके लिए स्वर्ग या नरक का निर्णय लेने का अधिकार चित्रगुप्त के पास है, अर्थात किसे स्वर्ग मिलेगा और कौन नरक में जाएगा? इस बात का निर्धारण चित्रगुप्त द्वारा ही किया जाता है.
ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की रचना की और इसके लिए देव-असुर, गंधर्व, अप्सरा, स्त्री-पुरुष, पशु-पक्षी आदि को जन्म दिया तो उसी क्रम में यमराज का भी जन्म हुआ. जिन्हें धर्मराज कहा जाता है, क्योंकि वे धर्म के अनुसार ही प्राणियों को उनके कर्म का फल देते हैं. यमराज ने इस बड़े कार्य के लिए जब ब्रह्मा जी से एक सहयोगी की मांग की तो ब्रह्मा जी ध्यानलीन हो गए और एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद एक पुरुष उत्पन्न हुआ, जिसे भगवान चंद्रगुप्त के नाम से जाना गया. चूंकि इस पुरुष का जन्म ब्रह्मा जी की काया हुआ था, अतः इन्हें कायस्थ भी कहा जाता है. यम द्वितीया के दिन यम और यमुना की पूजा के साथ भगवान चित्रगुप्त जी की भी विशेष पूजा की जाती है क्योंकि भगवान चित्रगुप्त यमदेव के सहायक हैं.चित्रगुप्त महाराज भारत और नेपाल की हिंदू कायस्थ जाति के जनक देवता बताये जाते हैं.
धनतेरस के पांचवे दिन अर्थात भाई दूज के दिन कायस्थ समाज अपने इष्टदेव श्री चित्रगुप्त जी महाराज की पूजा अर्चना भी करते हैं. इस दिन मूलतः कलम-दवात की पूजा की जाती है. मान्यता है कि चित्रगुप्त जी की पूजा करने से साहस, शौर्य और ज्ञान की प्राप्ति होती है, क्योंकि चित्रगुप्त जी को ज्ञान का देवता भी माना जाता है. वस्तुतः श्रीचित्रगु्प्त जी ब्रह्मा के पुत्र बताये जाते हैं.

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