तुलसी विवाह से पा सकते हैं कन्या दान तुल्य पुण्य..
ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री  

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन तुलसी और भगवान शालिग्राम के विवाह का उत्सव मनाया जाता है।देवउठनी एकादशी को देवोत्थान या देव प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन जगह-जगह तुलसी का विवाह किया जाता है। तुलसी विवाह का आयोजन ठीक वैसे ही होता है, जैसे वर-वधु का विवाह हिंदू रीति-रिवाज से किया जाता है।
इस दिन तुलसी के पौधे का श्रृंगार दुल्हन की तरह किया जाता है और मंगल गीत गाए जाते हैं। तुलसी विवाह के माध्यम से यह दिन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है और इनका विवाह कन्या दान के बराबर फल की प्राप्ति होती है। 
आइए ज्योतिषाचार्य पण्डित अतुल शास्त्री जी से जानते हैं तुलसी विवाह के शुभ मुहूर्त सहित विवाह की विधि… 
ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री का कहना है कि कार्तिक माह में भगवान विष्णु के शालीग्राम रूप और मां तुलसी के विवाह का विधान है. देवात्थान एकादशी के दिन चतुर्मास की समाप्ति होती इसके अगले दिन तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है. इस साल देवोत्थान एकादशी 14 नवंबर को है।और तुलसी विवाह का  15 नवंबर (सोमवार) को किया जाएगा. एकादशी तिथि 15 नवंबर को सुबह 06 बजकर 39 मिनट पर समाप्त होगी और द्वादशी तिथि आरंभ होगी. द्वादशी तिथि 16 नवंबर (मंगलवार) को सुबह 08 बजकर 01 मिनट तक रहेगी.
तुलसी विवाह के दिन हर्षण योग का शुभ संयोग बन रहा है। अतुल शास्त्री का कहना है कि हर्षण योग 15 नवंबर की देर रात 1 बजकर 44 मिनट तक रहेगा। हर्षण योग शुभ व मांगलिक कार्य के लिए उत्तम माना जाता है।
तुलसी विवाह की पूजा विधि:
सर्वप्रथम लकड़ी की एक साफ चौकी पर आसन बिछाकर तुलसी रखें।
दूसरी चौकी पर भी आसन बिछाएं और उस पर शालीग्राम को स्थापित करें।
अब उनके समीप एक कलश में जल भरकर रहें और उसमें पांच या फिर सात आम के पत्ते लगाएं।
इसके बाद तुलसी के गमले को भलिप्रकार से गेरु से रंग दें।
अब दोनों के समक्ष घी का दीपक प्रज्वलित करें और रोली या कुमकुम से तिलक करें।
इसके बाद गन्ने से मंडप बनाएं और तुलसी पर लाल रंग की चुनरी चढ़ाएं।
इसके बाद चूड़ी,बिंदी आदि चीजों से तुलसी का श्रंगार करें।
तत्पश्चात सावधानी से चौकी समेत शालीग्राम को हाथों में लेकर तुलसी का सात परिक्रमा करनी चाहिए।
पूजन के बाद देवी तुलसी व शालीग्राम की आरती करें और उनसे सुख सौभाग्य की कामना करें।
पूजा संपन्न होने के पश्चात सभी में प्रसाद वितरीत करें।
तुलसी विवाह का महत्व:
तुलसी विवाह देवउठनी एकादशी के दिन होता है। इस दिन से चतुर्मास समाप्त होते हैं और तुलसी विवाह के साथ ही सभी शुभ कार्य और विवाह आरंभ हो जाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन जो लोग तुलसी विवाह संपन्न करवाते हैं उनके ऊपर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है और उनके जीवन के कष्ट दूर होते हैं। तुलसी विवाह करने से कन्यादान के समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है। देवी तुलसी की कृपा से आपके घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। इस दिन शालीग्राम व तुलसी का विवाह होता है इसलिए महिलाएं सुखी वैवाहिक जीवन व सौभाग्य के लिए व्रत पूजन करती हैं।
ज्योतिषाचार्य पण्डित अतुल शास्त्री जी बताते हैं, हिन्दू धर्म में तुलसी का खास महत्व होता है. इसका धार्मिक महत्व तो है ही साथ में इसका वैज्ञानिक महत्व भी है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तुलसी में स्वास्थ्यवर्धक गुण पाए जाते हैं. धार्मिक रूप से इसका खास महत्व है. तुलसी माता को मां लक्ष्मी का ही स्वरूप माना जाता है, जिनका विवाह शालीग्राम भगवान से हुआ था. शालीग्राम दरअसल, भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण का ही रूप माने जाते हैं. देवउठनी या देवोत्थान एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु चार मास बाद जागते हैं. तुलसी जी को विष्णु प्रिया भी कहा जाता है, इसलिए देव जब उठते हैं तो हरिवल्लभा तुलसी की प्रार्थना ही सुनते हैं. देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी जी का विवाह शालिग्राम से की जाती है. अगर किसी व्यक्ति को कन्या नहीं है और वह जीवन में कन्या दान का सुख प्राप्त करना चाहता है तो वह तुलसी विवाह कर प्राप्त कर सकता है.

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