उन्नाव और कठुआ के मामलों को मीडिया ने जमकर प्राथमिकता दी, नतीजन भारत सरकार ने रेप से सम्बंधित कानूनों में व्यापक बदलाव किये है | जिसे राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल चूकी है | जहाँ 12 साल तक की बच्ची के साथ रेप की घटना होने पर पहले सात साल से लेकर उम्रकैद की सजा का प्रावधान था वही अब न्यूनतम 20 साल अधिकतम फ़ासी की सजा का प्रावधान किया गया है | 12 से अधिक पर 16 साल से कम की किशोरी के साथ रेप की घटना होने पर पहले जहाँ दस साल से उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान था वही अब न्यूनतम 20 साल अधिकतम ताउम्रकैद की सजा का प्रावधान किया गया है | महिला के मामले में पहले जहाँ सात साल से उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान था वही अब न्यूनतम 10 साल अधिकतम ताउम्रकैद की सजा का प्रावधान किया गया है | अब नये प्रावधानों के तहत दो माह में पूरी करनी होगी रेप के केस की जाँच, दो माह में पूरा करना होगा ट्रायल | अपील का निपटारा 6 माह में करना होगा | 16 साल की उम्र से कम पीड़िता और गैंग रेप पीड़िता के आरोपी को अग्रिम जमानत देने पर अदालत को फैसला करने के 15 दिन पूर्व अभियोजक या पीड़िता के प्रतिनिधि को नोटिस देना होगा | सरकार ने यह भी घोषणा की है की यौन अपराधियों का डेटा भी तैयार किया जायेगा | विश्व में भारत नौवां ऐसा देश होगा जो यह कार्य करेगा | रेप के सम्बन्ध में इस नये प्रावधानों के पहले ही चार राज्य मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और अरुणांचल प्रदेश रेप के आरोपी को मौत की सजा की मंजूरी दे चुके है जबकि उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटका सरकार सहित कई राज्य सरकारें ऐसे मामलो में मौत की सजा पर विचार कर रही है | क्या वास्तव में ये नियम देश में बच्चियों महिलाओं को सुरक्षित रख पायेगे ? क्या देश में अब रेप पीड़िताओं के साथ न्याय हो पायेगा ? क्या यह आम जनता के वोटों को अपने पक्ष में करने का अनूठा प्रयास सरकार द्वारा किया गया है ? प्रश्न ढेरों है और जबाब भी ढेरों | आजादी के दशकों वर्ष व्यतीत हो जाने के पश्चात् भी महिलायें न केवल असुरक्षित है बल्कि गैंग रेप, बच्चियों के साथ रेप की बढ़ती घटना ने आम आदमी को इस विषय पर नये सिरे से सोचने के लिय बाध्य जरुर किया है |


सरकार की घोषणा जितनी आकर्षक और लोकहित की होती है यदि वही सही रूप से क्रियान्वित की गयी होती तो आज देश की शायद वर्तमान स्थिति इस सन्दर्भ में ऐसी नहीं होती | देश में बच्चियों से दुराचार के पोक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामले 3 साल में चार गुना बढ़ गए | 2014 में करीब 5000 मामले दर्ज हुये जो 2016 में 20000 के करीब पहुँच गये | अदालतों में रेप के लंबित मामलों की संख्या 1 लाख 50 हजार है | NCRB (National Crime Records Bureau) की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2016 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 3,38,594 केसेज दर्ज हुए है | जबकि इनमे से एक दो केसेज को छोडकर बाकि पीड़ितों की सिसकियों और दर्द की आवाज मीडिया ने सुनी और ही सरकारों ने | वर्ष 2016 में कुल 38,947 रेप केसज दर्ज हुये है | यहाँ यह भी समझना अनिवार्य है की सामाजिक दबाब, लोक लाज, डर-भय जैसे कारणों की वजह से 90 प्रतिशत रेप पीड़िता FIR (First Information Report) ही नहीं दर्ज कराती है | मासूम नन्ही बच्चियों से लेकर 70 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं के साथ देश में रेप होना न केवल अपराधी बल्कि पुरे समाज और सिस्टम को कटघरें में खड़ा कर रहा है | वर्ष 2016 में कुल दर्ज रेप केसेज में 2,167 गैंग रेप के केसेज दर्ज हुये है | वर्ष 2016 में रजिस्टर्ड रेप केसज में 95 प्रतिशत मामलों में अपराधी किसी किसी तरह से पीड़िता के जानने वालों में से था जबकि मात्र 5 प्रतिशत अपराधी अनजाने लोग थे | मतलब ख़तरा अनजानों से कम और जानने वालों से अत्यधिक है | वर्ष 2016 में रजिस्टर्ड रेप केस को राज्यवार क्रम में देखा जाय तो सबसे असुरक्षित महिलाये, मध्यप्रदेश, उत्तर-प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, और दिल्ली राज्य की है | इन राज्यों में सबसे अधिक रेप केसेज दर्ज हुए है | लक्ष्यदीप में मात्र 5 रेप के केसेज दर्ज हुए है जबकि जम्मू और काश्मीर में 256 रेप के केसेज दर्ज हुए है | NCRB की रिपोर्ट के अनुशार 1990 से 2008 के बीच की अवधि में 112 प्रतिशत रेप के केसेज में बढ़ोत्तरी हुई है | अर्थात जिस तरह से हम विकसित राष्ट्र की श्रेणी में अग्रसर हो रहे है हम और भी अमानवीय होते चले जा रहें है | वर्ष 2007 में जहाँ महिलाओं के खिलाफ अपराध प्रत्येक घंटे 21 होता था वही वर्ष 2016 में इसकी संख्या 39 पहुँच चूकी है |


नियम बनानें वाले भी नहीं है इससे अछुतें | जिन्हें मजबूत नियम/कानून इस विषय में बनाना चाहिए यदि उनका मुल्यांकन किया जाय तो लगभग 30 प्रतिशत विधायको का आपराधिक रिकार्ड है | 1581 वर्तमान विधायकों का आपराधिक रिकार्ड के है | 51 महिलाओं के खिलाफ अपराध में शामिल है | 48 MLA में से 4 के खिलाफ रेप केसेज दर्ज है | ADR (The Association for Democratic Reforms) की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2004 में अपराधिक रिकार्ड वाले सांसदों की की संख्या 24 प्रतिशत थी जबकि वर्ष 2014 में यह प्रतिशत बढ़ कर 34 हो गया | अर्थात  जिन्हें इन मामलों में नियम बनाने और प्रभावशाली रूप में लागू करने की जिम्मेदारी है वो भी इस अपराधिक कृत्य में कहीं न कहीं विचाराधीन है |

सरकार का नवीनतम निर्णय कितना असरदार होगा और आम जनता को इससे कितना विश्वास प्राप्त होगा वह जरुर समय के गर्भ में छिपा है परन्तु सरकार के जारी नवीन घोषणा से विरोध के कई स्वर अभी से उठने लगे है और कुछ बुद्धजीवी लोगों का मानना है की रेप की सजा सभी के लिये बराबर होनी चाहिये | और शायद लोगों की मांग सही भी है | औसतन दर्ज चार रेप केसेज में से विभिन्न न्यायालीय प्रक्रियाओं के पश्चात् मात्र एक को अपराधी दोषी ठहराया जा पाता है | यानि की अधूरे सबूतों के आभाव में चार में से तीन लोगों पर अपराध की पुष्टि नहीं हो पाती है | वर्ष 2016 के NCRB (National Crime Records Bureau) रेप के आकड़ों का पीडिता की उम्र के आधार पर और सरकार के लिये गये रेप के सन्दर्भ में लिये गये नवीनतम निर्णय के प्रभाव को समझने के लिये निम्न चार्ट अति सहायक है |


वर्ष 2016 के उपलब्ध विवरण से यह स्पष्ट है की 12 साल तक की उम्र की बच्चियों के साथ रेप की कुल घटना का मात्र 4.1 प्रतिशत है जबकि 12 साल से अधिक किन्तु 30 साल से कम का कुल प्रतिशत लगभग 80 प्रतिशत है | यदि सही मायने में महिलाओं की सुरक्षा और न्याय सरकार को देना है तो रेप के 1.5 लाख लंबित मामलों को तुरंत पूरा करायें साथ ही रेप की समस्त श्रेणियों के लिये फांसी की सजा का प्रावधान किया जाना चाहिये | देश में 95 प्रतिशत रेप के केस का ऍफ़.आई.आर. लोकलाज, डर भय, धीमी अदालती कार्यवाही, पुलिस के गलत तरीके से नहीं होता और जिनका ऍफ़.आई.आर. होता भी है उनमे से न्याय का प्रतिशत नगण्य है | सरकारें लोकहित में कम चुनावी एजेंडे में जब तक काम करती रहेंगी रेप जैसी कई दुर्व्यशन का अंत नहीं हो सकता |

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