जलालपुर, अम्बेडकर नगर। श्री रामलीला सेवा समिति द्वारा आयोजित एक भव्य रामलीला में भरत मिलाप एवं राम राज्याभिषेक जैसे महत्वपूर्ण प्रसंगों का अत्यंत ही जीवंत और मनमोहक मंचन किया गया, जिसने दर्शकों को रामायण काल में पहुँचाकर भाव-विभोर कर दिया। इस सांस्कृतिक आयोजन की अध्यक्षता समिति के अध्यक्ष संजीव मिश्र ने की।

🪔 वैदिक मंत्रों के बीच पूजा-अर्चना

कार्यक्रम के दौरान अतुल जायसवाल, संजीव मिश्र, कृष्ण गोपाल गुप्त, राधेश्याम शुक्ल, अरुण मिश्र, आशाराम मौर्य, अजीत मौर्य और बंटी मिश्र ने रामदौर मिश्र द्वारा पढ़े गए वैदिक मंत्रों के उच्चारण के बीच भगवान राम, माता सीता एवं अन्य पात्रों का तिलक कर आरती उतारी। इस पवित्र अनुष्ठान ने पूरे माहौल को आध्यात्मिक भक्ति रस में सराबोर कर दिया।

🚶‍♂️ भरत मिलाप की भव्य झांकी ने मोहा मन

आयोजन का सबसे प्रमुख और मनमोहक आकर्षण श्री रामलीला समिति अध्यक्ष सुरेंद्र सोनी के निर्देशन में "भरत मिलाप" की भव्य झांकी थी। यह झांकी नगर के विभिन्न मार्गों से गुज़री और अपने मार्ग में स्थित मुनि आश्रम में कुछ देर के लिए रुकी, जहाँ विशेष पूजा का आयोजन किया गया।

इस झांकी में भगवान राम के चौदह वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटने पर उनके भाई भरत से मिलाप का अत्यंत ही हृदयस्पर्शी और मार्मिक दृश्य प्रस्तुत किया गया। इस मंचन ने दर्शकों की आँखों को नम कर दिया, क्योंकि कलाकारों ने भाइयों के प्रेम और आत्मीयता के उस पल को बेहद सजीवता के साथ जीवंत कर दिया। झांकी के मार्ग में नगरवासियों ने अपने-अपने घरों और दुकानों से होती हुई पुष्पवर्षा कर इस ऐतिहासिक पल को और भी यादगार बना दिया।

🤝 व्यवस्था में जुटे समिति के सदस्य

इस भव्य आयोजन की व्यवस्था की कमान सुरेश गुप्त, बेचन पांडे, दीपचंद सोनी, विकाश जायसवाल और लड्डू सोनी समेत पदाधिकारियों ने संभाली। उनके अथक प्रयासों और समर्पण से ही यह जनसमागम सुचारु रूप से संपन्न हो सका।

👥 उपस्थित जन

कार्यक्रमों में संदीप अग्रहरि, आलोक बाजोरिया, अरुण सिंह, अखिल सेठ, रामचन्द्र जायसवाल, केशव श्रीवास्तव, मनीष सोनी, मुन्ना और रोहित सहित नगर के अनेक गणमान्य लोग उपस्थित रहे। इस धार्मिक एवं सांस्कृतिक उत्सव में नगर के व्यापारियों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और पुष्पवर्षा करते हुए विधिवत पूजा-अर्चना में शामिल हुए।

🌟 सांस्कृतिक महत्व

जलालपुर में आयोजित यह रामलीला न केवल एक नाट्य मंचन था, बल्कि यह सामुदायिक सद्भाव और हमारी सांस्कृतिक विरासत को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने का एक सशक्त माध्यम भी साबित हुई। भरत मिलाप के मंचन ने भाईचारे, कर्तव्यपरायणता और त्याग के उन मूल्यों को फिर से याद दिलाया, जो आज के दौर में और भी अधिक प्रासंगिक हैं।

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