आनंदनगर में धूमधाम से मना छठ महापर्व, गूंजे छठ मईया के गीत

महराजगंज। जनपद महराजगंज के अंतर्गत आदर्श नगर पंचायत आनंदनगर में इस वर्ष छठ महापर्व बड़ी ही श्रद्धा, भक्ति और उत्साह के साथ मनाया गया। चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व के दौरान नगर का माहौल पूरी तरह छठमय रहा। महिलाएँ पारंपरिक वेशभूषा में छठी माता की आराधना करती नजर आईं। पूरे नगर में छठ गीतों की गूंज और श्रद्धालुओं की भीड़ ने पर्व को और अधिक भव्य बना दिया।


छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय के साथ हुई, जिसमें व्रती महिलाओं ने स्नान करके घर की पवित्रता बनाए रखते हुए प्रसाद तैयार किया। दूसरे दिन खरना के अवसर पर पूरे नगर में उत्साह देखने को मिला। व्रती महिलाओं ने गुड़-चावल की खीर बनाकर छठी माता को अर्पित किया और व्रत का संकल्प लिया। इसके बाद तीसरे दिन यानी शाम के अर्घ्य पर नगर के विभिन्न घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी।

आनंदनगर का मुख्य छठ घाट सैकड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना रहा। घाटों पर आकर्षक सजावट की गई थी — रंग-बिरंगी लाइटें, फूलों की मालाएं और धार्मिक संगीत ने पूरे वातावरण को भक्तिमय बना दिया। बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग सभी छठ पूजा के रंग में रंगे नजर आए।

संध्याकालीन अर्घ्य के दौरान जब अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के लिए महिलाएं जल में उतरीं, तो दृश्य अत्यंत मनमोहक और भावनात्मक हो उठा। श्रद्धालुओं ने सूर्य देव से परिवार की सुख-समृद्धि और आरोग्यता की कामना की। नगर में जगह-जगह झांकियों का आयोजन भी किया गया, जिनमें भगवान सूर्य की भव्य झांकी विशेष आकर्षण का केंद्र रही। श्रद्धालुओं ने झांकी यात्रा के दौरान “छठ मईया के जयकारे” लगाते हुए पूरा माहौल भक्तिमय बना दिया।

नगर पंचायत प्रशासन और स्थानीय सामाजिक संस्थाओं ने छठ पर्व को सुचारू रूप से संपन्न कराने के लिए विशेष व्यवस्थाएँ कीं। घाटों की साफ-सफाई, विद्युत प्रकाश की उचित व्यवस्था और सुरक्षा के लिए पुलिस बल की तैनाती की गई। नगर पंचायत अध्यक्ष एवं कई जनप्रतिनिधियों ने भी छठ घाटों का भ्रमण कर श्रद्धालुओं का अभिवादन किया।

अंतिम दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ छठ महापर्व का समापन हुआ। सुबह की लालिमा में जब व्रती महिलाओं ने छठी माता की पूजा कर सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित किया, तो हर चेहरा श्रद्धा और आनंद से भरा हुआ था।

आनंदनगर में इस वर्ष का छठ पर्व आस्था, स्वच्छता और सामूहिकता का अद्भुत संगम बन गया। स्थानीय लोगों ने कहा कि यह पर्व सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक परंपरा का प्रतीक है।

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