#दिनांक:-10/9/2025
#समय:-11:08सुबह
#गीतिका
शीर्षक:- स्वप्न बन सान्ध्य ढ़ल गयी।

नयन साक्षात्कार न कर पाये,मन की बात मन में रह गयी।
जिन्दादिल इंसान बच्चूलाल,स्वप्न बन सान्ध्य ढ़ल गयी।।1।

तोड़ना सबको आता पर, जोड़ने का काम किया गुरु ने।
सर्वदा सुख-दुख के साथी बनो, कह करके ज्योति बुझ गयी।।2।

सब कुछ जल कर राख हुआ,शेष रह गई स्मृतियाँ।
अद्वितीय कवि,अद्भुत शैली, व्यंग्यकार, विधा व्यंग्य रह गयी।।3। 

हमेशा मार्गदर्शक, अनुभवी, चिंतक, उर्जावान सेतुबंध रहे। 
मंथन-अनुयायी अंत की पीड़ा, हँस कर हर पीर सह गयी।।3।

स्मरण है मुझे बेटी तुम,अद्भुत मीरा समान प्रतिभावान हो। 
साहसी सशक्त प्रतिभा-नयन,सहज अश्रु-धार बह गयी।।5।

प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"
चेन्नई

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