#दिनांक:-26/8/2025

#गीत

#मैं सान्ध्य-ज्योति तुम सूरज मेरे।


सुनो प्रिय प्रियतम वचन मांगती हूँ,

जीवन का साथ सनम मांगती हूँ। 

सदा सुहागन का है वरदान मिला,

आपका मन मंदिर दर्पन मांगती हूँ। 

 

मैं सांध्य- ज्योति तुम सूरज मेरे, 

दिशाओं में श्रेष्ठतर, पूरब मेरे।

बनूंगी सदा सुख-दुख की परछाईं, 

धड़कन को सुखी करते मूरत मेरे। 

यमराज भी डरे तुमको छूने से, 

अपने लिए ऐसा वचन मांगती हूँ।

सदा सुहागन का है वरदान मिला, 

आपका मन मंदिर दर्पन मांगती हूँ।।1।


कुमकुम, काजल लगाती बिन्दी,

श्रृंगार करूँ प्यारे रचाकर मेंहदी।

मधुर गीत गाए चूड़ी, झुमका झूमें, 

मैं लगूँ मानो संस्कृत दुलारी हिन्दी। 

सोलह श्रृंगार सौन्दर्य, शुभता बढ़ाए, 

आजीवन सम्मान का मन मांगती हूँ। 

सदा सुहागन का है वरदान मिला, 

आपका मन मंदिर दर्पन मांगती हूँ।।2।


तेरे संग देख, दुख छू भी ना पाए,

गंगासागर मिलन अभिभूत कराए। 

सच्चे हमसफर सदा साथ चलें तो, 

आँखों की चमक चेहरे को सजाए। 

लड़ाई के बाद भी तुमको ही चुनती, 

स्वामी तेरा प्रेम अटूट बंधन मांगती हूँ। 

सदा सुहागन का है वरदान मिला, 

आपका मन मंदिर दर्पन मांगती हूँ।।3।


(स्वरचित, मौलिक और सर्वाधिकार सुरक्षित है)

प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"

चेन्नई 

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