आज 1 जनवरी है, बस....?

घरों की दीवारों पर टंगे कैलेंडर बदल जाएंगे, पर हमारी संस्कृति तो वही रहेगी, जिसको हम मानते और जानते हैं, जिसके अनुसार जीवन जीते हैं, हां हमारी संस्कृति में पाश्चात्य संस्कृति का घालमेल मंदिरों के जरिए आवश्यक होने लगा है...? 


कल भारत के अधिकांश मंदिर, चर्च की भूमिका में सजाए गए हैं, रात्रि में भजन संध्या इत्यादि कर, उन मंदिरों पर ईसाई नववर्ष मनाया जा रहा है, यह मंदिर कहने को तो हिंदुओं के हैं, पर वास्तव में तो यह अघोषित चर्च ही तो हुए...?


इन मंदिरों को चर्च में बदलने का दबाव किसने बनाया, किसने ऐसा आदेश पारित किया, कि इन मंदिरों पर भारतीय नववर्ष के बजाय ईसाई नववर्ष मनाया जाए...?


क्या यह आदेश मठ मंदिर के पुजारी ने दिया या धर्माचार्यों ने दिया या सरकार ने दिया, ऐसा कोई प्रमाण प्रत्यक्ष तौर पर नहीं मिल रहा है, फिर भी मंदिरों पर ईसाई नववर्ष को भारतीयता की चाशनी में लपेटकर मनाया जा रहा है ।


यह वैचारिक गुलामी नहीं है यह कन्वर्ट ईसाई होने की गारंटी है कि हम सब मानसिक तौर पर कन्वर्ट हो चुके हैं...? 


इसीलिए विदेशी ताकते भारत को कमजोर करने के लिए दहाड़ रही हैं, उन्हें मालूम है कि भारत का अधिकांश हिंदू हरामी हो चुका है वह लाख प्रयत्न करने के बाद भी क्रिप्टो क्रिश्चियन ही बना रहेगा, तो ऐसे लोगों के द्वारा वास्तविक भारत का प्रकटीकरण व भारतीय संस्कृति का पुनर्जागरण कैसे किया जाए...?


यह विचारणीय है कि आज के तथाकथित विद्वान, अपने को जन प्रतिनिधि कहने वाले, शिक्षित छात्र सहित सभी जन एक दिन के लिए घोषित तौर पर अपना धर्म परिवर्तित कर विदेशी नववर्ष मना रहे हैं, कल फिर से मुसलमानो को गाली देकर हिंदुत्व का डंका बजाने लगेंगे और कट्टर हिंदू हो जाएंगे...? 


ऐसे लोगों को दंडित किया जाए या करने पर विचार किया जाए तो कैसे...?


यह सब संविधान में नववर्ष के रूप में अंकित शक संवत को मानते नहीं और अपने नववर्ष को स्वीकार नहीं करते तथा ईसाई नववर्ष को गर्व पूर्वक मनाने हेतु अनेक प्रकार के प्रयत्न करते हुए दिख रहे हैं, यह प्रयत्न हमारे मठ मंदिरों तक पहुंच गया है...?


कितने शर्म की बात है...? 

शर्म करो, शर्म करो, शर्म करो..? 


अगर लाज हया बची है तुम्हारे रक्त में अगर असल बाप का खून है तो शर्म कर विचार करो कि तुम कर क्या रहे हो...?


।। भारत माता की जय।।

विजय कुमार दिक्षित द्वारा लिखित

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