जौनपुर। महिला सशक्तिकरण की बुलंद आवाज़ थीं अहिल्याबाई होलकर- राकेश मौर्य

जौनपुर। समाजवादी पार्टी के ज़िला कार्यालय पर शुक्रवार को लोकमाता, राजमाता अहिल्याबाई होलकर की 299वीं जयंती जिलाध्यक्ष राकेश मौर्य की अध्यक्षता में मनाई गई। इस अवसर पर गोष्ठी का आयोजन कर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा करते हुए उपस्थित सपाजनों ने अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

अध्यक्षता कर रहे जिलाध्यक्ष राकेश मौर्य ने अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि अहिल्याबाई होल्कर से रानी अहिल्याबाई बनने का सफर आसान नहीं था। अहिल्याबाई ने राज्य को मजबूत करने के लिए अपने नेतृत्व में एक महिला सेना की स्थापना की. अहिल्याबाई ने महिलाओं को उनका उचित स्थान दिलाया। उन्होंने कहा कि रानी अहिल्याबाई होल्कर की जयंती 31 मई को मनाई जाती है। राजमाता अहिल्याबाई होलकर का जन्म 1725 में महाराष्ट्र के अहमदनगर के चौंडी गांव में हुआ था। वे अपने गांव के पूज्य मनकोजी शिंदे की पुत्री थीं। वे किसी राजघराने से ताल्लुक नहीं रखती थीं, लेकिन एक दिन राज्य की सत्ता उनके हाथ में आ गई। एक साधारण परिवार की लड़की असाधारण जिम्मेदारियां निभाने लगी।औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगलों के पतन का यह दौर था, जब मराठा अपने साम्राज्य का विस्तार करने में व्यस्त थे। मराठा सेनापतियों में से एक मल्हार राव होल्कर थे। पेशवा बाजीराव ने मल्हार राव होल्कर को मालवा की जागीर सौंप दी। होल्कर ने अपने बाहुबल से राज्य की स्थापना की और यहीं इंदौर बसाया।

पूर्व जिलाध्यक्ष,पूर्व विधायक लालबहादुर यादव ने कहा कि अहिल्याबाई होल्कर कैसे बनी रानी मल्हार राव होल्कर अपने इकलौते बेटे खंडेराव के लिए ऐसी पत्नी चाहते थे जो गुणवान हो और राजगद्दी संभालने में उनके बेटे की मदद कर सके। इसी दौरान उनकी मुलाकात अहिल्या से हुई। वे भ्रमण के बाद चनुडी गांव से गुजर रहे थे, तभी शाम की आरती के दौरान एक लड़की के भजन ने उनका ध्यान खींचा। वे अहिल्या के गुणों और मूल्यों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपने बेटे खंडेराव होलकर का विवाह अहिल्या से करा दिया। विवाह के बाद खंडेराव ने सत्ता संभालनी शुरू कर दी। इसी दौरान अचानक हुए युद्ध में खंडेराव होलकर वीरगति को प्राप्त हो गए, वे सती प्रथा अपनाकर अपने पति के साथ अपने प्राण त्यागना चाहती थीं। लेकिन मल्हार राव होलकर को अहिल्या की योग्यता पर पूरा भरोसा था कि वे उनके बेटे की जिम्मेदारी संभाल सकती हैं। 

उन्होंने अहिल्या का पालन-पोषण अपने बेटे की तरह किया और अहिल्या भी राज्य के कामों में मल्हार राव की मदद करने लगीं। हालांकि उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा। पहले उन्होंने अपने ससुर और फिर 22 साल की उम्र में अपने बेटे मालेराव को खो दिया। बेटे के साथ राज्य का पतन न हो जाए, इसके लिए उन्होंने खुद ही प्रशासन संभालना शुरू कर दिया। हालांकि, चूंकि कोई पुरुष राजा नहीं था, इसलिए राज्य के एक कर्मचारी ने दूसरे राज्य के राजा राघोबा को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्हें होलकर को पकड़ने के लिए आमंत्रित किया गया। राजगद्दी संभालते समय रानी अहिल्याबाई होलकर ने यह सूचना आसपास के राज्यों में फैलाई। उनके सेनापति और पेशवा बाजीराव ने उनकी मदद की। अहिल्याबाई ने राज्य को मजबूत करने के लिए अपने नेतृत्व में एक महिला सेना की स्थापना की। अहिल्याबाई ने महिलाओं को उनका उचित स्थान दिलाया। अहिल्या ने लड़कियों की शिक्षा का विस्तार करने का प्रयास किया। निराश्रितों की मदद के लिए काम किया। 1795 में जब उनकी मृत्यु हुई, तो उनके सेनापति तुकोजी ने इंदौर की गद्दी संभाली। ऐसे में महिलाओं को बराबरी, सम्मान और न्याय दिलाने का काम अहिल्याबाई होलकर ने किया।

पूर्व जिलाध्यक्ष, पूर्व अध्यक्ष ज़िला पंचायत अध्यक्ष राजबहादुर यादव और ज़िला उपाध्यक्ष श्याम बहादुर पाल ने भी राजमाता अहिल्याबाई होलकर के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
गोष्ठी में मुख्य रूप से लाल मोहम्मद राइनी, डा. अमित यादव, अजय मौर्य, गुलाब यादव, नगर अध्यक्ष कमालुद्दीन अंसारी, सलीम मंसूरी, धर्मेंद्र सोनकर, विशाल पाल, अरविंद यादव, अरविंद सोनकर, अमजद अंसारी सहित अन्य सपाजन उपस्थित रहे। गोष्ठी का संचालन जिला महासचिव आरिफ हबीब ने किया।

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