मथुरा।ग्वालियर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के प्रथम दिवस की कथा में श्रीमद्भागवत का महात्म्य सुनाते हुए कथावाचक पंडित राजेश अग्निहोत्री भागवताचार्य ने धुन्धकारी का प्रसंग सुनाया। जिसमें उन्होंने श्रोताओं को बताया कि वैश्यायों ने धुन्धकारी को मारने के लिए पहले धुन्धकारी का गला दबाया लेकिन उसकी जब मृत्यु नहीं हुई तब उन्होंने उ सब के खुले हुए मुंह में आग के जलते हुए अंगारे डाले जिससे उसकी मृत्यु हो गई और उसे प्रेत योनि प्राप्त हुई। पांच प्रकार की मृत्यु अकाल मृत्यु कहलाती हैं एक जिसकी मृत्यु आग में जलने से होती है दूसरी जिसकी मृत्यु जल में डूबकर होती है तीसरी जिसकी मृत्यु जहरीले जन्तुओं के काटने से होती है चौथी जिसकी मृत्यु फांसी के फन्दे से होती है और पांचवीं जिसकी मृत्यु दुर्घटना में होती है। गोकर्ण ने धुन्धकारी को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए गया में जाकर श्राद्ध और पिण्ड दान किया फिर भी उसकी मुक्ति नहीं हुई । सूर्य भगवान के कहने से जब गोकर्ण ने धुन्धकारी को श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह विधि से सुनाई तब उसकी प्रेत योनि से मुक्ति हुई। कहने का तात्पर्य प्रेत योनि से मुक्ति के लिए श्रीमद्भागवत के सिवा अन्य कोई साधन नहीं है। अन्त में कपिल मिश्रा, अन्नू अग्निहोत्री, विवेक, श्रीमती आरती, गुड़िया, श्रीमती पिंकी शर्मा, मुन्नी अग्निहोत्री, वासुदेव शर्मा,रवी,मुनीश आदि लोगों ने आरती की।
पांच प्रकार की मृत्यु अकाल मृत्यु कहलाती हैं। पंडित राजेश अग्निहोत्री भागवताचार्य
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