राजकुमार गुप्ता
मथुरा।महावन। नंदगांव, बरसाना की लठामार होली, श्रीकृष्ण जन्मस्थान की सांस्कृतिक होली, ठाकुर बांकेबिहारी, द्वारिकाधीश मंदिर, सप्त देवालयों की रंगभरी होली से होता हुआ ब्रज की मदमस्त करती होली का कारवां फाल्गुन मास उजार पक्ष की द्वादशी को गोकुल पहुंच गया। यहां अनूठी, अद्भुत और दिव्य छडी होली खेली गई। दुनियां भर में होली का यह स्वरूप गोकुल में ही देखने को मिलता है। विरला और अनूठे होली उत्सव को निहार श्रद्धालु को बालकृष्ण की बालीलाओं और होली के आनंद से सराबोर हो उठे। भगवान श्री कृष्ण ने जिस गांव में अपने बचपन की लीलाएं की थी, उस गोकुल गांव में द्वापर युग की दिव्य होली वर्ष जीवंत हो उठती है। जब नंद भवन से निकल कर ग्वाल बालों के साथ बाल स्वरूप श्रीकृष्ण का डोला मुरलीधर घाट पर पहुंचा तो गोकुल का आसमान रंग और अबीर गुलाल से रंगा गया। श्रद्धालुओं के चेहरे भी नीले पीले लाल हो गए। सभी एक दूसरे पर अबीर गुलाल उढेलने लगे। श्री कृष्ण के बाल स्वरूप पर गोपियों ने छड़ियां बरसाना शुरू हो गईं। सभी छड़ी मार होली की मस्ती में सरोवर हो गए। इससे पहले डोला के साथ नंदकिला मंदिर से मुरली घाट तक शोभायात्रा निकाली गई। आगे आगे कान्हा की पालकी और पीछे पीछे सुंदर वस्त्र पहने हुए हाथों में छड़ी लेकर चलती गोपियां के साथ बैंड बाजों के साथ निकाली गई। भगवान की शोभायात्रा ने कुछ देर मुरली घाट पर विश्राम किया। जिसके बाद होली की धूम शुरू हो गई और जमकर होली का श्रद्धालुओं ने लुफ्त उठाया। गोकुल की छड़ी मार होली भगवान श्री कृष्ण के बचपन में खेली थी। यहां गोपियों के हाथ में लठ्ठ नहीं छड़ी दिखाई देती हैं। उसी छड़ी से वह कृष्ण के सखाआें के ऊपर जमकर बारिश की गई। गोकुल में जिस समय भगवान श्री कृष्ण ने होली खेली थी तो उनकी आयु बहुत कम थी। श्रीकृष्ण को चोट न लग जाए इसलिए सखियां हाथों में छड़ी लेकर उनको मारती हैं। तभी से ही छड़ी मार होली की परंपरा चली आ रही है।

Post a Comment

If you have any doubts, please let me know

और नया पुराने