राजकुमार गुप्ता 
भारतीय सनातन संस्कृति और भारतवर्ष में भगवान श्री राम के राज्य को आदर्श माना जाता है रामराज में क्लासलैस समिति की तरह शासन चलता था। तुलसीकृत रामायण में तुलसीदास जी ने इसका विस्तृत वर्णन किया है । साथ ही साथ उन्होंने भगवान श्री राम के राज्य को आदर्श राज्य माना जो तुलसीकृत रामायण की अपेक्षा इंडोनेशिया, कंबोडिया ,नेपाल मे पाई जाने वाली रामायण, वाल्मीकि रामायण अन्य तमाम रामायण राम के नाम पर जितने भी ग्रंथ हैं। वह सभी प्रमाणित करते हैं कि भगवान श्री राम का राज्य आदर्श राज्य था। उनके राज्य में सदभाव था। सो आज ऐसे समय पर जब देश में अयोध्या में भगवान श्री रामचंद्र जी के मंदिर का उद्घाटन 22 जनवरी को होने जा रहा है। और राम राज्य के आने का दावा किया जा रहा है। साथ ही साथ कहा जा रहा है कि हम राम लला को लाए हैं। अरे भाई राम तो विश्व के प्रत्येक जनमानस ,प्रकृति ब्रह्मांड के कण-कण में व्याप्त है फिर हम और आप उन्हें लाने वाले कौन होते हैं। मसलन राम शब्द का अर्थ होता है स्वयं के अंदर का प्रकाश।
 भगवान श्री राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। राम से पहले भी राम के नाम का व्यापक प्रभाव हो चुका था। जमदग्नि ऋषि ने अपने प्रतापी पुत्र का नाम भी राम ही रखा था। जो बाद में चलकर परशुराम के नाम से विख्यात हुए क्योंकि वह अपने साथ फरसा रखते थे। इसलिए उनका नाम परशुराम पड़ गया। राम के चरित्र पर दुनिया भर में कई किताबें लिखी गई हैं। हालांकि सबसे पुरानी किताब बाल्मीकि रामायण को ही माना जाता है। उस बाल्मीकि रामायण के अनुसार भी राम राज्य एक आदर्श राज्य था ।जहां सभी को अपने-अपने धर्म को मनाने की संपूर्ण आजादी थी। सभी सद्भाव और परस्पर प्रेम से रहते थे। ऐसा था रामराज्य।
 जहां सभी के लिए एक विधान ऐसा विधान निर्धारित था जिसमें पूरा लोक परस्पर प्रेम से रह सके ।
राजनीतिक रूप से राम राज्य के दावे सत्ता के हुक्मरानों द्वारा किए जा रहे हैं। और राम को लाने का दवा और श्रेय लेने का एक मकसद सा दिखाई देता प्रतीत होता है।
 क्योंकि बात जब राम के राज्य से हो रही है तो हश तुलसीदास जी की तुलसीकृत रामचरितमानस की चौपाई से राम राज्य की परिकल्पना कर सकते हैं कि
*दैहिक दैविक भौतिक तापा। रामराज नहिं काहुहि ब्यापा॥सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती* अर्थात
'रामराज्य' में दैहिक, दैविक और भौतिक ताप किसी को नहीं व्यापते। सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं और वेदों में बताई हुई नीति (मर्यादा) में तत्पर रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करते हे सभी सद्भाव से रहते हैं ।
लेकिन अभी इसके उलट असम से सांसद बदरुद्दीन अजमल की चिंता जो उनके बयानों में झलक रही है। सोचने को मजबूर करती है ।
अभी हाल ही में सांसद बदरुद्दीन अजमल ने एक बयान जारी किया है। उस बयान में उन्होंने मेघालय के गवर्नर सत्यपाल मलिक के बयान का हवाला देते हुए भारत देश में बस रहे 20 करोड़ मुसलमान के प्रति चिंता जाहिर करते हुए कहा है की भारतीय मुसलमान भाई समय की नजाकत को समझते हुए समय की साजिश को समझते हुए धर्म के राजनीतिकरण के कारण रची जाने वाली साजिश को समझते हुए 20 से 26 जनवरी तक अपने ही घरों में रहे ताकि हमारी कोम पर कोई उंगली ना उठा सके, हमारी कोम को कोई बदनाम ना कर सके उन्होंने अपने बयानों में कहा है कि मेघालय गर्वनर सत्यपाल मलिक ने पुलवामा हमले का जिक्र करते वह राम मंदिर की स्थापना से पूर्व करीब 6 महीने पूर्व सत्यपाल मलिक के बयान का वह हवाला दे रहे हैं जो 4 पीएम नाम के डिजिटल न्यूज़ चैनल पर बदरुद्दीन अजमल का बयान सुना जा सकता है।
 उन्होंने कहा कि सत्यपाल मलिक ने यह चिंता जाहिर करी थी कि राम मंदिर के उद्घाटन के समय सत्ता में बैठे लोग मुसलमान को टारगेट कर लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए पुलवामा जैसी साजिश रच सकते हैं इस वजह से मेरे भारतीय मुसलमान भाई 20 जनवरी से लेकर 26 जनवरी तक अपने ही घरों में रहे यह चिंता बदरुद्दीन अजमल ने जाहिर करी है।
 वहीं दूसरी तरफ सत्य की बात रखने वाले लेखक पत्रकार और राजनीतिक टीका कार ,टिप्पणी कार ,धार्मिक टीकाकर भी कहीं ना कहीं दबी जुबान से कई मंचों पर इस दर्द को बयां कर चुके हैं इन बयानों से ऐसा नहीं कहा जा सकता कि यह राम राज्य की स्थापना का समय है, या यह राम राज्य की स्थापना कर रहे हैं, या रामराज्य आने वाला है, क्योंकि जहां तक आराध्य देव भगवान श्री राम का सवाल है जो तुलसीदास जी की जी चौपाई का हवाला इस लेख में मैं दे रहा हूं वह चौपाई भी सीधे-सीधे कहती है कि भगवान श्री राम के राज्य में चारों ओर खुशहाली थी। सभी को अपने-अपने धर्म का पालन करने की खुली छूट थी दूसरे शब्दों में कहा जाए की शेर और बकरी एक ही घाट से पानी पी सकते थे ऐसा था रामराज्य लेकिन आज ऐसा नहीं है यह सारे के सारे बयान कहीं ना कहीं सत्ता के इस नए राम राज्य पर उंगली उठाते हैं वहीं दूसरी तरफ स्वामी विवेकानंद ने भी सनातन संस्कृति के अनुसार जी राम राज्य की परिकल्पना को लोगों तक पहुंचाया था। कि राम राज्य के बारे में लोगों तक वर्णन पहुंचा था। उसमें भी वसुदेव कुटुंबकम की भावना निहित है।
 स्वतंत्रता के महानायक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी राम के बारे में कई जगह विस्तार से चर्चा की है गांधी जी सुराज और राम राज्य की बात करते थे। यदि एक सामान्य राजा के रूप में भी भगवान राम के चरित्र को देखें तो अनुकरणीय है
वर्तमान में बात करी जाए तो ऐसा राम राज्य आता नहीं दिखता अन्यथा ऐसी टिप्पणियां बदरुद्दीन अजमल का जो बयान आया वह नहीं आता यदि भय व्याप्त नहीं होता तो बदरुद्दीन अजमल का शायद बयान नहीं आता लेकिन जो भय का वातावरण देश भर में देखने को मिल रहा है इन बयानों के आधार पर उससे भी इनकार नहीं किया जा सकता खैर अंत में मैं तो केवल इतना ही चाहूंगा भगवान श्री राम के मंदिर का स्वागत करते हुए राम मंदिर के उद्घाटन का स्वागत करते हुए कि यदि सत्ता के हुक्मरानों को राम राज्य की वास्तव में स्थापना करनी है। तो सबसे पहले राम की इस चौपाई पर जाना होगा देहिक ,दैविक, भौतिक तापा रामराज काहू नहीं व्यापा वही स्वामी विवेकानंद जी के वसुदेव कुटुंबकम की भावना को अपनाना होगा। तब कहीं जाकर हम कह सकते हैं कि हम राम राज्य के अंश मात्र पायदान के करीब पहुंच रहे हैं। अन्यथा यूं ही राम राज्य का दावा करना मिथ्या है इसे रामराज्य नहीं कह सकते।
             *नरेंद्र सिकरवार 

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