उतरौला बलरामपुर मोहल्ला  रफी नगर के समाजसेवी सैफुद्दीन उर्फ लालबाबू ने बताया कि रमजान के महीने में बाजारों में  सेहरी और अफतार करने से पहले दुकानों पर रोजेदारों की भारी भीड़ लगी रहती है ।
सेहरी रोजा और अफतार के लिए कुछ अलग व्यंजन भी बाजार में मौजूद हैं जो कि रमजान बीत जाने के बाद बाजारों में दिखाई नहीं पड़ती जहां लोग दूध  फैनी दही के साथ सेहरी कर रोजे की शुरुआत करते हैं वही खजूर फल नुक्ती समेत अनेक व्यंजनों को अपनी अफ्तार में शामिल रखते हैं अफ्तार के लिए अफजल मानी जाने वाली खजूर की कई ब्राइटिया भी बाजार में मौजूद है इसके अलावा फलों की बिक्री भी इस दौरान बढ़ गई है उन्होंने कहा कि बहुत से लोग यह समझते हैं कि रोजे का मतलब सुबह सेहरी आना नमाज पढ़ना शाम को अफ्तार करना बस इतनी सच्चाई यह है कि रमजान का मकसद हमारे अंदर तल बा परहेज गारी पैदा करना होता है इसमें यह है कि मेरी आंखें बुरा न देखें मेरा काम बुरी बातें न सुने मेरी जुबान से किसी की गीबत गीबत व चुगली न करें भीड़ से तन्हाई में यह महसूस करना की अल्लाह ताला मुझे देख रहा है मैं कोई गलत रास्ते पर व गलत काम नहीं करूंगा नहीं तो उसकी खबर अल्लाह ताला सब कुछ देख रहा है 
यही मकसद है कि रमजान से हम केवल एक के महीने के लिए ही नहीं बल्कि अपनी जिंदगी भर के लिए अपनी में सुधार करने।
असगर अली 
उतरौला 

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