जौनपुर। निजी विद्यालयों के ड्योढ़ी पर दम तोड़ रही शिक्षा

जौनपुर। वर्तमान समय में शिक्षा का बाजारीकरण हो रहा है। नया सत्र चालू होते ही यह कार्य तेजी से गति पकड़ लेता है। इनके बहकावें में आकर अभिभावक इसका शिकार हो रहे हैं। निजी विद्यालयों के ड्योढ़ी पर शिक्षा व्यवस्था दम तोड़ रही है।
        
इस तरह बेतहाशा फीस वृद्धि व मनमानी किताब के मूल्यों से बच्चों को पढ़ना अभिभावकों के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ा दी है और शिक्षा विभाग मौन व्रत धारण किया हुआ है। शिक्षा मानव विकास का मूल साधन है। इसके द्वारा मानव की जन्मजात शक्तियों का विकास, उसके ज्ञान व कौशल में वृद्धि एंव व्यवहार में परिवर्तन किया जा सकता है और उसे सभ्य व योग्य नागरिक बनाया जाता है। छोटे बच्चों के अंदर बहुत सी मानसिक शक्तियां विद्यमान रहती है। शिक्षक इन अंतनिर्हित शक्तियों को प्रस्फुटन करने में सहायता प्रदान करता है इसलिए शिक्षक को राष्ट्र निर्माता भी कहा जाता है। जिस प्रकार के शिक्षक होंगे, उसी प्रकार के नागरिक होंगे और राष्ट्र का भी उसी प्रकार निर्माण होगा। शाहगंज तहसील के कस्बा खेतासराय व आस-पास के क्षेत्रों में जहाँ बरसाती मेढ़क की तरह दिखाई देने वाले निजी विद्यालय अधिकतर गैर मान्यता प्राप्त है? अभिभावकों का शोषण करने में कोताही नहीं बरत रहे हैं। निजी विद्यालय व इंग्लिश मीडियम स्कूलों में अच्छी शिक्षा के नाम पर सिर्फ बच्चों के भविष्य के साथ धड़ल्ले से खिलवाड़ किया जा रहा है। अभिभावक अपने बच्चों का भविष्य सवारने के चक्कर में इन ठगों का शिकार हो रहे और जिम्मेदारों को इसकी परवाह नहीं है। सरकार के सख्ती के बावजूद शिक्षाधिकार अधिनियम की सरेराह धज्जियां उड़ाई जा रही है। शिक्षा माफिया नौनिहालों के भविष्य के साथ जमकर खिलवाड़ करने में जुटे हुए हैं। दरअसल नया सत्र शुरू होने से पहले से ही अच्छी शिक्षा, व्यवस्था व योग्य शिक्षक के नाम पर बाजार के विभिन्न चैराहों पर बड़े-बड़े बैनरों के माध्यम से आकर्षित करने वाले शब्दों में छपे बैनर फला बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त जैसे बैनरों से पाट दिया जाता है और फिर ठगने का खेल शुरू हो जाता है, इसका कुछ स्कूल अपवाद हो सकता है। हाल यह है कि शिक्षा के नाम पर धनकुबेर दाखिला ले लेतेहैं। फिर अपने मनमुताबिक शोषण करना शुरू कर देते हैं, बेचारे विद्यार्थी और अभिभावकों की मजबूरी बन जाती है। जिससे उन नौनिहालों का भविष्य चैपट होता चला जाता है और इन्हीं स्कूलों में योग्य शिक्षक के नाम अयोग्य शिक्षक कम पैसों में भरकर बच्चों को भेड़ की तरह हाँकना शुरू कर देते हैं। जबकि छोटे बच्चों की बुनियादी शिक्षा और संस्कारित होनी चाहिए। जिससे उनके भविष्य निर्माण की नींव मजबूत बन सके। योजना के मुताबिक हर वर्ष नया सत्र शुरू होते ही किताबें पैटर्न बदल दी जाती है और किताब स्कूल से ही देने की भी योजना बनाएं रहते हैं तथा बच्चों को ले आने और ले जाने तथा बढ़िया सुविधा के नाम पर अभिभावको के आँख में धूल झोककर पैसे ऐंठ लिया जा रहा है। वहीं बच्चों के जान जोखिम में डालकर डग्गामार वाहनों से भूसा की तरह भरकर बच्चों को ढोने का काम बसूरती से जारी है। इन डग्गामार वाहनों को कम पैसों में नैसिखिया चालकों द्वारा ढोया जा रहा है। इनके खिलाफ आज तक क्षेत्र एआरटीओ ने भी कोई कार्यवाही नहीं की है। कुल मिलाकर क्षेत्र में अच्छी शिक्षा के नाम निजी स्कूल नौनिहालों के जिन्दगी के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। इनके खिलाफ कई बार शिकायत भी अभिभावको ने किया लेकिन आज तक कोई असर नहीं देखने को मिला। यह कहना जरा भी बेमानी नहीं हो सकती कि ऊपर से लेकर नीचे सब मिल बाट कर खाने के चक्कर नौनिहालों के जिन्दगी को तबाह करने में लगे हैं एसे में क्षेत्र की शिक्षा व्यवस्था भगवान भरोसे है।

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