बलरामपुर।

       (डा माधवराज द्विवेदी) 
(पूर्व विभागध्यक्ष व संस्कृत विषय के प्रकांड विद्वान)

तराई के ऑक्सफोर्ड कहे जाने वाले एम.एल.के. पीजी कालेज बलरामपुर के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा माधवराज द्विविदी की लेखनी से बलरामपुर जनपद में शिक्षा के दूत व शिक्षा के गांधी कहे जाने वाले पूर्व प्राचार्य एम एल के पीजी कालेज बलरामपुर स्व आदित्य कुमार चतुर्वेदी पर एक स्मृतरूपी लेख–
विद्यार्थी जीवन में मुझे अपने गुरुजनों से अपार स्नेह और आशीर्वाद मिलता रहा है ,एतदर्थ मैं उनके प्रति विनयावनत हूं । शिक्षकों के साथ प्राचार्यों ने भी मुझे अपने स्नेह और आशीर्वाद से अभिसिंचित किया है । 
एम एल के कालेज के प्राचार्य के रूप में  परम श्रद्धेय आदरणीय श्री आदित्यकुमार चतुर्वेदी जी ने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया है । एम एल के पी जी कालेज के इतिहास में उनका नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जायेगा ।कला और विज्ञान वर्ग के सभी प्रमुख विषयों में स्नातकोत्तर कक्षाओं को  प्रारम्भ कराने का श्रेय आदरणीय चतुर्वेदी जी को ही जाता है । अप्रतिम व्यक्तित्व के धनी आदित्यकुमार चतुर्वेदी जी की वाणी जो प्रभाव था उससे महाविद्यालय के विकास को त्वरित गति प्राप्त हुई । 
करुणा की रसधार से प्लावित  अन्तःकरण वाले आदरणीय चतुर्वेदी जी अंग्रेजी साहित्य के विशिष्ट विद्वान् और ब्रज भाषा के समर्थ कवि थे । उनकी वाणी में ओज और व्यक्तित्व में आदित्य जैसा तेज था ।आपाद मस्तक वे एक दिव्य पुरुष लगते थे । लोगों के कल्याण में स्वयं के हितों की परवाह न करने वाले आशुतोष आदरणीय चतुर्वेदी जी ने जिन अनेक लोगों को ऊंचाइयों तक पहुंचाया उनमें से  अधिकांश ने उन्हें धोखा दिया और  उन्हें अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । बलरामपुर के शिक्षा जगत् के अनमोल हीरक आदरणीय चतुर्वेदी जी का मूल्यांकन करने में बलरामपुर के लोगों ने भारी भूल की और उन्हें सम्मान देने के बजाय ऐसा अनपेक्षित व्यवहार किया कि उन्हें अपने जीवन की सान्ध्यवेला में कष्टों का सामना करना पड़ा । एक शिक्षार्थी और शिक्षक के रूप में उनका सान्निध्य लाभ प्राप्त करके मैं स्वयं को धन्य मानता हूं । वस्तुतः वे महामानव थे और मानवता को समृद्ध करने के लिए अवतरित हुए थे । न दैन्यं न  पलायनम्  उनके जीवन का मूल मंत्र था । उनकी स्मृति में अपने हृदय के उद्गार मैं निम्नलिखित पंक्तियों में व्यक्त कर रहा हूं

दीप्तियुक्त आदित्य सम थे आदित्य कुमार । 
चार वेद सम्मत क्रिया और मृदुल व्यवहार ।। 
थे वे सुन्दर विमल मति और प्रगत आचार्य । 
हम सब के आदर्श थे श्रद्धास्पद प्राचार्य ।। एम एल के कालेज हुआ उनसे ही विख्यात । 
कालेज हित के लिए ही लगे रहे दिन रात ।।
 ऊर्जस्वल व्यक्तित्व था गर्वोन्नत था भाल । 
छात्रों की उपलब्धि से होते रहे निहाल ।। 
गरिमा की प्रतिमूर्ति थे वाणी में था ओज ।
 उत्तम शिक्षक की सदा करते रहते खोज ।। 
शिक्षक,शासक,कवि हृदय थे सच्चे इंसान । 
उपकारी संकल्प शुभ थे सद्गुण की खान ।। 
सात्विकता से युक्त था खान पान व्यवहार । 
दुर्जनता से बैर था कभी न मानी हार ।। 
देवोपम व्यक्तित्व को बारम्बार प्रणाम । 
राजत जो बैकुण्ठ में जहां बसैं सुखधाम ।। 


(यह लेखक के अपने विचार हैं)
उमेश चन्द्र तिवारी
–9129813351
हिंदी संवाद न्यूज
बलरामपुर 

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