*पौराणिक दृष्टिकोण से अलौकिक है भारत की भूमि*

लखनऊ। अयोध्या श्रीधाम से पधारे संतशिरोमणि श्रीयुत राघवाचार्य जी के श्रीमुख की सुश्रुत वाणी का लखनऊ वासियों ने श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण किया।
आद्यगुरु शंकर पिता बाबा भोलेनाथ शिवशंकर जी द्वारा मिली प्रेरणा श्रीसंत वेदव्यास  महराज जी नैमिषारण्य की पावन पवित्र देवभूमि पर श्रीमद्भागवत  कथा रचित किया।

*श्रीमतेरामानुजाय नमः।।*

अयोध्या में श्रीरामलला सदन देवस्थान ट्रस्ट अध्यक्ष, जगद्गुरू स्वामी श्री राघवाचार्य जी महाराज जी श्रीमुख से उनके प्रवास स्थल पर बतौर पत्रकार श्रीमद्भागवत के धार्मिक प्रसंगों पर संवाद कर महराज जी का आशीर्वाद प्राप्त किया।
श्रीसंत महराज जी ने कहा *८४लाख योनियों* के बाद *मनुष्य जीवन* मिलता है। हर मनुष्य को जीवन में सदैव सत्य का साथ देना चाहिए। क्योंकि  *सत्य के मार्ग पर ही चलकर सफलता* मिलती है। सत्यम परमं। *संत्य स्वरुप ही भगवान* है। 
संत शिरोमणी श्री राघवाचार्य जी ने बताया शास्त्र के अनुसार अपने-अपने *धर्म का अनुसरण करते हुए कर्म* करना चाहिए। एक दूसरे के *धर्म की नकल नहीं* करना चाहिए। *सदैव स्वधर्म का पालन* होना चाहिए।
श्रीसंत ने कहा *महाभारत में अनेकानेक रत्न* हैं। लेकिन *जीवन सुखमय* बनाने के लिए *दो अनमोल रत्न* हैं। पहला *भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को "गीता" सुनाई*,और दूसरा  *भीष्म पितामह* ने *विष्णु सहस्रनाम* पढ़ा है।
श्रीसंत शिरोमणि राघवाचार्य जी ने श्रीमद्भागवत कथा के भक्त श्रोताओं से कहा मनुष्य को जीवन में अनवरत स्वाध्याय करते रहना चाहिए।  *पूजा-पाठ या भक्ति न* भी कर सकें तो अपने जीवनकाल में यदि सिर्फ़ और सिर्फ़ *गीता और विष्णु सहस्रनाम* नाम पढ़ लें तो *मनुष्य जन्म सफल* हो जाएगा।
 कर्म की डोर में बंधकर जीवन जीने की *संस्कृति और संस्कार की रेखा* खींचकर जीवन जीना चाहिए‌। अधिक भोजन से आयु क्षीण होती है। सिर्फ स्वस्थ जीवन जीने के लिए ही भोजन करना चाहिए। *जीवन का गर्व नहीं होना चाहिए,जो कुछ है वह ईश्वर की कृपा से है।*  
महराजश्री ने कहा *ब्रम्हबंधु का तात्यपर्य* है कि यदि कोई *जाति से ब्राम्हण* हो और *कर्म से वह भले ही ब्राम्हण न हो* लेकिन *ब्राम्हण को कभी मृत्युदंड नही देना* चाहिए। 
संतशिरोमणि ने साथ ही *लंकापति लंकेश रावण का उदाहरण देते हुए यह भी कहा हालांकि ऐसे ब्राम्हण पर यह सिद्धांत लागू नहीं* किया जा सकता है जो कि अताताई हो। उसे तो मारना ही श्रेष्ठता है। *त्रेता और द्वापर* युग में *रावण और कंस* के संग अनेकों *अताताई राक्षसों का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने अवतार लिया* था।

*ऐसी है भारत भूमि की महिमा*

श्री संतशिरोमणि राघवाचार्य जी ने कहा विश्व में भारत देश प्रथम उदाहरण है जहां *भक्ति में चरण तो क्या चरण पादुका की भी पूजा* होती है। पौराणिक दृष्टिकोण से अलौकिक है भारत भूमि। विश्व में ऐसी धार्मिक भूमि नहीं है। *पूरे विश्व में कहीं भी किसी धर्म में किसी ने "अवतार" नही "जन्म" लिया है।  *भारतवासियों को अपने सनातन धर्म पर गौरवान्वित होते हुए, गर्व होना चाहिए कि हमार जन्म भारतभूमि* पर हुआ है। इस भारतभूमि की पृथ्वी पर आने को देवता भी तरसते हैं। यूं तो भारत के विभिन्न प्रांतों में देवस्थान है। *श्रीविष्णु भगवान* ने *राक्षसों का वध* करने के लिए *कई प्रकार के अवतार* लिए हैं।
 श्रीमहराज जी विभिन्न श्रीधामों की महिमा बताते हुए कहते हैं *भारत के सूबे में भी उत्तर प्रदेश की देवभूमि* को यह गौरव मिला है कि *श्रीविष्णु भगवान का रामावतार और कृष्णावतार* हुआ,एवं *कैलाशपति जी काशी के वासी* भी हैं।
 श्रीसंतशिरोमणि राघवाचार्य जी ने *मोक्षदायिनी अयोध्या,मथुरा, काशी की भूमि महत्व* बताते हुए कहते हैं- *अयोध्या* की भूमि *(वैराग्य की भूमि)* है। प्रभु *श्रीराम,भरत,लक्ष्मण, शत्रुघ्न* *राजपाट छोड़कर मानव की भूमिका में आदर्श मनुष्य लीलाएं करने के लिए वैरागी* हुए थे।

जगद्गुरु श्री राघवाचार्य जी कहते हैं कि वहीं *वृंदावन की भूमि* *(प्रेम की भूमि)* है। प्रेम लीलाएं करने वाले देवकीनंदन श्रीकृष्णजी के *वृंदावन धाम में भगवान का ध्यान लगाने की जरूरत ही नहीं* है। वहां तो कृष्ण प्रेम की बांसुरी सदैव बजती रहती है। मनुष्य को अपने आप ही *कृष्ण भक्ति के प्रेम की अनुभूति* होती है। ऐसा है  *अपना वृंदावन धाम*।

जगतगुरु संतशिरोमणि राघवाचार्य जी कहते हैं कि वाराणसी *" काशी"* की धरती बाबा काशी  विश्वनाथ शिवशंकर जी के त्रिशूल पर टिकी हुई है। *काशी ज्ञान की भूमि* है। यहां *महादेव ज्ञान के अधिदेवता* हैं। *ज्ञान चाहिए तो भगवान शंकर की आराधना करिए*। काशी में *ज्ञान का प्रकाश पुंज* है।

सीतापुर जनपद में नीमसार *(नैमिषारण्य) तपस्थली भूमि* है। यह लाखों *ऋषियों-मुनियों ने तपस्या की*। *वैदिक काल के ग्रंथों को भगवान शंकर की प्रेरणा से लिपिबद्ध के लिए *महर्षि वेदव्यास जी नैमिषारण्य में बैठकर ४-वेद, ६-शास्त्र,१८-पुराण एवं गीता महाभारत ग्रंथ को तपस्थली पर रचना* की है।

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