(अच्छा लगे, तो मीडिया के साथी *राजेंद्र शर्मा* का यह व्यंग्य ले सकते हैं। सूचित करेंगे या लिंक भेजेंगे, तो खुशी होगी।)

*करो, करो, जल्दी गर्व करो!*
*(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)*

लगता है कि अमृत वर्ष भी यूं ही निकल जाएगा। पर मेरा भारत महान, सबसे महान तो क्या, महा-महान भी नहीं बन पाएगा। नहीं, ऐसा नहीं है कि मोदी की तरफ से कोशिश में कोई कमी है। बेचारे मोदी जी तो अपनी तरफ से प्राणपण से लगे हुए हैं। सुना है कि अपनी ही तपस्या में कोई कमी मानकर उन्होंने तपस्या के दिन के अपने घंटे, पहले के अठारह से बढ़ाकर अब बीस कर दिए हैं। बल्कि कोई-कोई तो बताता है कि अब बीस से भी बढ़ाकर बाईस कर दिए हैं। 

कमी है तो बस पब्लिक की। रही होगी पहले, सरकारों की भी कमी रही होगी। कमी रही क्या होगी, पहले वालों में था ही क्या कमियों के सिवा। पर अब नहीं। मोदी जी के आने के बाद नहीं। मोटा भाई के साथ छोटा भाई के भी राज संभालने के बाद तो बिल्कुल-बिल्कुल नहीं। बस पब्लिक ही साथ नहीं दे रही है। वोट दे रही है, बल्कि भर, भर कर दे रही है। टैक्स-वैक्स भी अपनी औकात से बढ़कर, पेट काटकर दे रही है। जितनी बार मांगें मोदी जी को थैंक यू भी दे रही है। बस पब्लिक वही कर के नहीं दे रही है, जो मोदी जी उससे मांग रहे हैं -- अपने कर्तव्यों का पालन। बाकी मोदी जी पर छोड़ो, पर पब्लिक हर बात पर और कभी-कभी बेबात भी, राष्ट्र पर गर्व तो कर के दिखा सकती है ; हर चीज में मेरा देश महान का गीत तो गा सकती है। पर वह तो इतना भी कर के राजी नहीं है। बस इसीलिए, पब्लिक के हाथों ही हिंदुस्तान मात खाता जा रहा है। वर्ना मोदी जी को कोई और पब्लिक दे दो, फिर देखना कि देश कहां से कहां पहुंचता है!

हिंदुस्तानी पब्लिक इतनी निखट्टू नहीं होती, तो बेचारी निम्मो ताई को गुस्सा क्यों खाना पड़ता? लहसुन-प्याज न खाने वाली सात्विक ताई को भी तमोगुणी गुस्सा खाना पड़ गया। पब्लिक के नाम पर विपक्ष वाले बेचारी इकॉनमी को महान तो छोड़ो, कोई बेहाल तो कोई हैरान-परेशान बताने पर तुले थे। और पीछे से पब्लिक मुंडी हिला-हिलाकर, हूंकारे भरे ही जा रही थी। 

महंगाई बढ़ती बेहिसाब -- हूंकारा। छिनते जाते रोजगार--हूंकारा। पर इतने तक तो सात्विक ताई गम खाए रहीं। पर जैसे ही विरोधियों ने पांच साल में दस लाख करोड़ रुपए के कर्जे बट्टे-खाते डालने को धन्नासेठों के लिए गिफ्ट बताया, ताई उखड़ गयीं। सात्विक प्रकृति, अर्धसत्य कैसे बर्दाश्त कर ले। फिर भी समझाने की कोशिश की। बट्टे-खाते डालने और माफ करने में बारीक अंतर है। बट्टे-खाते में फिर भी भागते भूत की लंगोटी हाथ आने की उम्मीद रहती है। जरा तो पाजिटिविटी दिखाइए, जब तक सांस है, तब तक आस बंधाइए। हम भी मोदी जी के चौकीदार हैं -- सौ रुपए में से दो-चार रुपए जरूर निकलवा के रहेंंगे, भागते भूत की लंगोटी सरकारी खजाने में जमा कर के रहेंगे!

पर तभी किसी ने रुपए के लुढ़कने का इल्जाम लगा दिया और पीछे से पब्लिक ने इस पर भी हुंकारा लगा दिया। बस ताई फट पड़ीं। फलां-फलां देश के पैसे में रुपया महंगा हो गया, वह तुम्हें दिखाई नहीं देता। बस डालर जरा सा मजबूत हो गया, वही दिखाई देता है। दुनिया में मोदी जी डंका बजवा रहे हैं, सो सुनाई नहीं देता। बस डालर का ढोल सुनाई देता है। क्यों? क्योंकि तुम्हें देश पर गर्व करना ही नहीं है। तुम लोगों को तो देश को शर्मिंदा करना आता है, बस। तुम मोदी जी के राज में देश को तरक्की करते नहीं देख सकते। तुम देश की तरक्की से जलते हो। शर्म करो, शर्म करो। चुल्लू भर पानी में डूब मरो। न हो तो पाकिस्तान से ही सीख लो, पर देश पर गर्व करना सीख लो। इतने महान देश पर गर्व भी नहीं कर सकते, तो पाकिस्तान या अफगानिस्तान चले जाओ! सोचने की बात है, अगर पब्लिक महंगाई, बेरोजगारी, रुपए की लुढक़न को भूलकर, राष्ट्रभूमि पर गर्व करने का अपना कर्तव्य निभाती, तो निम्मो ताई यूं गुस्सा क्यों खाती! हो गयी न दुनिया भर में देश की बदनामी -- पब्लिक महंगाई, बेरोजगारी से परेशान, इंडिया कैसे महान!

और चलो महंगाई, बेरोजगारी के मारे पब्लिक को देश पर, इकॉनमी वगैरह पर गर्व करना भूल जाए, यह तो फिर भी समझ में आता है। पर ये मंंबई के झुग्गी-झोंपड़ी वालों को कैसे राष्ट्र पर गर्व करना भूल गया। बताइए, मोदी जी कितनी मेहनत कर के जी-20 की सरदारी लाए हैं, कि दुनिया में भारत का डंका और जोरों से बजे। सरदारी के एक साल में, दो-ढाई सौ ईवेंटों का इंतजाम कराए हैं कि डंका बजना शुरू हो तो फिर रुके ही नहीं, आज यहां तो कल वहां, बस लगातार साल भर बजता ही रहे। और ये मुंबई के झुग्गी-झोंपड़ी वाले क्या कर रहे हैं? एक तो मोदी जी के मुफ्त घर देने के बाद भी जबर्दस्ती झुग्गी-झोंपडिय़ों में रह रहे हैं। ऊपर से कह रहे हैं कि जी-20 के मेहमानों को अपने को, अपनी झोंपडिय़ों को दिखाएंगे! हमें केसरिया-हरे पर्दों के पीछे क्यों छुपाया जा रहा है? विपक्ष वाले भी हां-हां करने लगे। कहते हैं कि गरीबों को छुपाने के लिए पर्दे की दीवार लगाना बंद करो। अरे ये क्या ताजमहल, नहीं सॉरी वाराणसी कॉरीडोर हैं, जो झुग्गी-झोंपड़ी वालों को विदेशी मेहमानों को दिखाया जाएगा? पर नहीं, इन्हें तो विदेशी मेहमानों को गरीबों के दर्शन कराने हैं! फिर सिर्फ मुंबई की बात थोड़े ही है। जहां-जहां जी-20 के मेहमान जाएंगे, वहां-वहां गरीबी ढांपने वाले पर्दों के पीछे से लोग यही चिल्लाएंगे -- हमें मेहमानों को देखने दो। मेेहमानों को सच देखने दो। जैसे 80 करोड़ मुफ्त राशनखोरों की गरीबी ही सच है। फिर अडानी जी की दुनिया में नंबर टू की अमीरी क्या है? देश के गौरव से जो करे प्यार, अडानी की अमीरी के सच से कैसे करेगा इंकार?

ऐसी पब्लिक के भरोसे तो हो चुका भारत सुपर-महान। अब तो मोदी जी को ही कुछ करना होगा। पब्लिक के कर्तव्यों का पहले ही बहुत शोर है, क्यों न कानून बनाकर देश पर गर्व करना अनिवार्य कर दिया जाए। जो देश का गौरव घटाने वाली महंगाई, बेकारी, गरीबी टाइप की नेहरू के टाइम की चीजों का जिक्र करेगा, खुद ब खुद राष्ट्र विरोधी घोषित हो जाएगा और सेडीशन पर जब तक रोक है, तब तक यूएपीए में ही परमानेंटली अंदर जाएगा। फिर देखते हैं कौन कहता है कि भारत को अभी तो विकसित देश बनना है।

*(लेखक प्रतिष्ठित पत्रकार और ’लोकलहर’ के संपादक हैं।)*

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