स्त्री विमर्श" विषय पर ऑनलाइन संगोष्ठी का हुआ आयोजन

        गिरजा शंकर गुप्ता ब्यूरों
अंबेडकर नगर। रमाबाई राजकीय महिला पी.जी. कॉलेज अकबरपुर अंबेडकर नगर में एकेडमिक सोसाइटी के अंतर्गत " आज़ादी के बाद हिन्दी उपन्यासों में स्त्री विमर्श" विषय पर ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन महाविद्यालय के प्राचार्य व संरक्षक प्रोफेसर शेफाली सिंह के मार्गदर्शन व प्रोफेसर शाहिद परवेज के संयोजकत्व में किया गया।
      इस अवसर पर मुख्य वक्ता  डॉ0 सुचिता, एसोसिएट प्रोफेसर ,हिंदी ने कहा कि स्त्री-मुक्ति चेतना’ हिंदी उपन्यास का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है जो पुरुष वर्चस्ववाद को तोड़ने का रचनात्मक प्रयत्न कर रही है। आपका बंटी उपन्यास का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उपन्यास के माध्यम से मन्नू भंडारी ने सिर्फ बाल विमर्श ही नहीं, नारी विमर्श की बातों को भी सामने लाने का प्रयास किया है। नारी मन की व्यथा और उसकी वेदना, ऐसा लगता है मानो शकुन एक नारी, एक माँ दोनों पाटों में पिस कर रह गई। वर्तमान मध्य और निम्न मध्य वर्ग की उस औरत का प्रतिनिधित्व कर रही है, जो निरंतर प्रगति और उन्नति की नयीं-नयीं इबारतें लिख रही है। अगर काम नहीं करती है, घर से कदम नहीं उठाती है तो उसका खुद का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है और अगर गृहस्थी छोड़ कर काम करने निकलती है फिर पारिवारिक जीवन को खतरे में डालती है, वहीं से शुरू होता है संघर्ष ,दो-दो  ज़िंदगियाँ जीने का। औरत को भी महत्वकांक्षी होने का अधिकार है। पुरुष के बरअक्स वो क्यों दबी-सहमी रहे या उस पर निर्भर रहे? यह सवाल मुंह बाये खड़ा ही रहता है!


प्रोफेसर कमलेश वर्मा प्रोफेसर कमलेश वर्मा राजकीय महिला महाविद्यालय सेवापुरी ने अपने उद्बोधन में कहा कि
फणीश्वर नाथ रेणु के मैला आंचल उपन्यास के स्त्री विमर्श पर  बात करें तो स्पष्ट होता है कि  नारी मुद्दों की अभिव्यक्ति और नारी दृष्टि से मूल्यांकन करने पर हम उन छिपे हुए तंतुओं को जोड़ पाते हैं जो रेणु की ‘नारी विषयक सूक्ष्मदृष्टि’ के मूल थे।उपन्यास में लक्ष्मी नारी शोषण के चरम का प्रतीक तो है ही, लेकिन समाज में एक विधवा और अबला नारी की क्या स्थिति होती है इस बात पर रेणु ने मंगला देवी का आधार लेकर कलम चलाई है।इसके अलावा लेखक ने कुछ चरित्रों के माध्यम से स्त्रियों के प्रति दोहरी मानसिकता का परिचय भी दिया है- बालदेव और कालीचरण एक ओर स्त्रियों के प्रति एक विशेष प्रकार की सोच और कुंठा से ग्रसित हैं और दूसरी ओर कुछ स्त्रियों के प्रति उनके मन में श्रद्धा और आदर का भाव भी है।
          इस अवसर पर महाविद्यालय के मुख्य शास्ता ,प्रोफेसर अरविंद कुमार वर्मा ने कहा कि कहा कि  हिंदी उपन्यास पर स्त्री-विमर्श का गहरा प्रभाव पड़ा है और धीरे-धीरे यह प्रभाव बढ़ता जा रहा है। कृष्णा सोबती, मन्नू भंडारी, उषा प्रियंवदा आदि ने स्त्री-जीवन का प्रामाणिक अंकन प्रारंभ किया था जो बाद के उपन्यासों में और घनीभूत हुआ है। संगोष्ठी का संचालन व धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर शाहिद परवेज द्वारा किया गया वाह तकनीकी सहायता रवीन्द्र कुमार वर्मा द्वारा प्रदान की गई।

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