क्या लक्ष्मी की प्राप्ति से सम्मान की प्राप्ति भी होती है - जानते हैं धनतेरस पर क्या करें  डॉ सुमित्रा अग्रवाल से 

डॉ सुमित्रा अग्रवाल, कोलकाता 
सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री 
इंटरनेशनल वास्तु अकादमी सिटी प्रेजिडेंट कोलकाता 

धनि होना सब चाहते हैं और दीपावली के माहौल में लोग धन उपार्जन के नित्य नए नुस्खे अपनाते हैं। कभी क्या ये सोचे हैं की क्या धनि होना ही सम्मानित होना कहलाता है ? कई ऐसे धन्ना सेठ हैं जिनको उनके जीवन कल में सम्मान नहीं मिला और मरने पर लोगों ने जश्न मनाया है। तो एक बात साफ हो गई है की धन से सम्मान का सम्बन्ध नहीं है। धन से ज्यादा लोग अपने सम्मान, प्रतिष्ठा के लिए वर्षो तक अपने आपसे और समाज से लड़ते हैं। कितना अच्छा हो की धन भी आए, सम्पन्नता भी और सम्मान भी बढे।

इन वास्तु दोषो को न करें अगर आप सम्मान हानि नहीं चाहते हैं -

वास्तु में हम ऊर्जा को नियंत्रित करके परिणाम लाते हैं।  यदि केवल पश्चिम दिशा में निर्माण हो तथा दक्षिण या दक्षिण पश्चिम में निर्माण नहीं हो तो घर में धन का आगमन तो होता है लेकिन, अगर धन के तुलना में सम्मान की बात करें तो गृह के स्वामी लक्ष्मी प्राप्ति के अनुरूप सम्मान प्राप्त नहीं कर पाते हैं। इससे जुडी एक बात ये है की इनको धन तो मिला, पर सम्मान क्यों नहीं मिला ? सम्मान मिलने के लिए लोगों का आपको उच्च कोटि का दर्जा देना महत्वपूर्ण होता है। सम्मान के लिए लोगों का आपको और आपके कार्य को सरहाना भी जरुरी होता है। केवल पश्चिम दिशा में निर्माण हो तथा दक्षिण या दक्षिण पश्चिम में निर्माण ये कराने में समर्थ नहीं होता। एक और बात देखने में आती है की 
केवल पश्चिम में भारी निर्माण से जो धन आता है उनमें जुआ, लाटरी, सट्टा जैसे तत्व देखने को मिलते है। इससे परिवार में दुर्गुण उत्पन्न होते हैं और उस घर के अन्य प्राणी धन के अपव्यय का माध्यम खोज लेते हैं। चंचल लक्ष्मी से परिवार एक पीढ़ी का सुख भी भोगले तो भी उसे बहुत समझना चाहिए। 

चिर स्थायी लक्ष्मी और सम्मान के लिए क्या वास्तु उपाय करें

धन, अधिकार या नेतृत्व के लिए दक्षिण या दक्षिण पश्चिम क्षेत्रों में भारी निर्माण कराएं। ब्रह्मस्थान में उलंघन न करें। ईशान कोण में भरे निर्माण या भरे मंदिर न बनवाएं और न ही यहाँ शौचालय बनवाएं। 

इस धनतेरस क्या करें

श्री सूक्त का पाठ करे और श्री यन्त्र की पूजा करें।  श्री यन्त्र को ईशान कोण में लगाएं और पूजा करते समय उतर की तरफ मुँह कर के बैठे।

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