क्या बैकफुट पर हैं रुस-चीन या हिला हुआ है नाटो और अमेरिका ? 
       - अनुज अग्रवाल

रुस के राष्ट्रपति पुतिन द्वारा फिर से यूक्रेन के ख़िलाफ़ किसी भी हद तक जाने (परमाणु हमले की धमकी देने) के बाद से पूरा यूरोप डरा व घबराया हुआ है तो नाटो व अमेरिका हिले हुए हैं। यूक्रेन में अपने क़ब्ज़े वाले साठ हज़ार किलोमीटर के क्षेत्र में से नौ हज़ार किलोमीटर के क्षेत्र को किसी गोपनीय रणनीति के तहत छोड़ देने के रुस के फ़ैसले के बाद प्रॉपगंडा वार में महारथी अमेरिका व नाटो ने इतनी ज़्यादा अफ़वाह फैलायीं कि पुतिन परेशान हो गए व ख़तरनाक रूप से आक्रामक होने की रणनीति अपनाने पर मजबूर हो गए। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाईडेन की इस आक्रामक व उकसाने वाली रणनीति की पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प ने कड़ी आलोचना करते हुए इसे मूर्खतापूर्ण कहा है किंतु बाईडेन बाज़ नहीं आ रहे। अब अगली अफ़वाह पुतिन के साथ दीवार की तरह खड़े चीनी राष्ट्रपति शी जिन पिंग के सेना द्वारा हाउस अरेस्ट करने की फैलाई जा रही है। अमेरिका व नाटो देश यह मानकर चल रहे हैं चाहे कुछ भी हो जाए किंतु रुस परमाणु हथियारों का विकल्प नहीं प्रयोग में लाएगा क्योंकि यह आत्महत्या के समान है। किंतु जिस प्रकार पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका व नाटो देशों ने यूक्रेन का सैन्यकरण किया व रुस को चारों ओर से घेरा व रुस में अपने कठपुतली राजनीतिक दलों को आगे बढ़ाया उस सब के बाद रुस कोई भी बड़ा कदम उठा भी सकता है। आश्चर्यजनक रूप से दुनिया के अधिकांश युद्ध के मोर्चे रुस व चीन के इर्द गिर्द ही हैं और पिछले तीन दशकों में अमेरिका व नाटो देशों ने ही रुस व चीन को बाज़ार अर्थव्यवस्था की ओर धकेला है। सभी के देखते देखते पिछले कुछ महीनो में रुस ने यूक्रेन को तबाह कर दिया और अमेरिका व नाटो देश बड़े बड़े दावों के बाबजुद मात्र कुछ हथियारों को मदद के अलावा कुछ ख़ास नहीं कर सके। रुस ने यूरोप की लाइफ़लाइन गैस की पाइपलाइन बंद कर उसको भयंकर संकट, मंदी व बर्बादी की और धकेल दिया है और अगले कुछ महीनो में यूरोप बड़े स्तर पर तबाह हो जाएगा। वैसे भी जलवायु परिवर्तन की मार से यूरोप ख़ासा परेशान व बदहाल हो ही गया है। अमेरिका के पास यूक्रेन व यूरोप को देने के लिए कुछ नहीं है बस कुछ आश्वासन व हथियार के सिवा। बल्कि वह तो आपदा में अवसर की तरह अपना धंधा बढ़ा रहा है इस समय। हर वो माल जो युद्ध से पहले जिस क़ीमत पर यूरोप रुस व चीन से ख़रीद रहा था , उनमे से कुछ अब अमेरिका दो से तीन गुणी क़ीमत पर दे रहा तो बाक़ी के लिए यूरोप आज भी रुस व चीन पर निर्भर है। ऐसे में अमेरिका की प्रोपगंडा वार कुछ समय के लिए तो सच पर पर्दा डाल सकती है किंतु जब सच्चाई से पर्दा उठेगा तब तक उसके हाथों से बाज़ी निकल चुकी होगी। यह कहना कि रुस के नागरिक देश छोड़कर भाग रहे हैं क चीन में सेना ने क़ब्ज़ा कर ली जिन पिंग को हाउस अरेस्ट कर लिया है मात्र हास्यास्पद बातें हैं। हैं भी तो बहुत सीमित मात्रा में। अगर इनमे ज़रा भी सच्चाई होती तो मास्को व बीजिंग में स्थित सभी देशों के दूतावास आधिकारिक सूचनाएँ दे चुके होते। 
   अमेरिका व नाटो की वास्तविक घबराहट रुस की आक्रामकता व तीन लाख और सैनिकों को यूक्रेन युद्ध में उतारना व चीन की ताइवान पर आर- पार की लड़ाई की तैयारी और आगामी 16 अक्तूबर को शी जिन पिंग के जीवन पर्यंत चीन का राष्ट्रपति बन सर्वशक्तिशाली होने से है जिसकी कोई काट वो ढूँढ नहीं पा रहे हैं। सच तो यह है कि दुनिया विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ी है और इसकी जिम्मेदारी अमेरिकी कैम्प की अधिक है । दुनिया इनकी बाज़ारवादी नीतियो व संसाधनों के अत्याधिक दोहन के कारण ग्लोबल वार्मिंग व जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से जूझ ही रही है ऊपर से महाशक्तियों के सत्ता व संसाधनों पर क़ब्ज़े के संघर्ष से भयग्रस्त अस्तित्व के संकट से दो चार है। अभी तक विश्व युद्ध व परमाणु अस्त्रों के प्रयोग की बातें बेमानी ही लग रही थीं व कूटनीतिज्ञ व जानकर इन बातों को हवा हवाई ही बता रहे थे। किंतु अब स्थितियाँ पूर्णतः बदल चुकी हैं व संकट सचमुच में सर पर मंडराने लगा है । ऐसे में आने वाले महीने महाशक्तियों के ज़बरदस्त संघर्ष के गवाह बनने जा रहे हैं। युद्धोन्माद दुनिया को तबाही के क्या क्या मंजर दिखाएगा यह समय व नियति ही तय करेगी  हां यह कहा जा सकता है कि यह अनेक मोर्चों पर युद्ध, अनेक राष्ट्रों में ग्रहयुद्ध , घातक हथियारों के अनियंत्रित प्रयोग के कारण बड़े नरसंहार, मौत के मंजर,  संसाधनों की बेतहाशा कमी, खाद्य व ऊर्जा संकट,भुखमरी , ग़रीबी, अराजकता, लूटमार , विस्थापन, बीमारियाँ और बेरोज़गारी के रूप में होगी। ग्लोबल वार्मिंग इस आग में घी का काम करेगी व इन संकटो को कई गुना बढ़ा देगी। 
अनुज अग्रवाल
संपादक, डायलॉग इंडिया
www.dialogueindia.in

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