उत्तर प्रदेश में और बहुरेंगे बाजरे के दिन

अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष-2023 में मोटे अनाजों को प्रोत्साहित करने के लिए

तैयार हुई रणनीति

खूबियों के प्रति जागरूक करने के लिए चलेगा आक्रामक प्रचार अभियान
किसानों को खेती के उन्नत तरीकों की जानकारी के लिए दिया जाएगा प्रशिक्षण
लखनऊ, 5 सितम्बर।
उत्तर प्रदेश में बाजरे के दिन और बहुरने वाले हैं। हालांकि बाजरे के प्रति
हेक्टेयर उपज, कुल उत्पादन और फसल आच्छादन का क्षेत्र (रकबे) में लगातार
वृद्वि हुई। इसके बावजूद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा है कि अपने
पौष्टिक गुणों के कारण चमत्कारिक अनाज कहे जाने वाले बाजरे की खेती को
यथा संभव प्रोत्साहन दिया जाय। यही वजह है कि विधानसभा चुनाव के तुरंत
बाद अगले 100, दिन, 6 माह, दो साल और पांच साल के काम का लक्ष्य तय
करने के लिए सेक्टरवार मंत्री परिषद के समक्ष प्रस्तुतिकरण लिया था। इसी क्रम
में सामाजिक सेक्टर के प्रस्तुतिकरण के दौरान उन्होंने निर्देश दिया था कि
न्यूट्रीबेस्ड फूड बाजरे का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद और
वितरण की व्यवस्था की जाए।
सीएम योगी के निर्देश पर अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष-2023 में बाजरा एवं
ज्वार सहित लुप्तप्राय हो रही कोदो और सावा की फसल को प्रोत्साहित करने के
लिए कृषि विभाग ने कई योजनाएं तैयार की हैं। बाजरे की खेती के लिए
किसानों को इसकी खूबियों के प्रति जागरूक करने की जरूरत है। अंतरराष्ट्रीय
मिलेट वर्ष-2023 का मकसद भी यही है। इस दौरान राज्य स्तर पर दो दिन की
एक कार्यशाला आयोजित की जाएगी। इसमें विषय विशेषज्ञ 250 किसानों को
मोटे अनाज की खेती के उन्नत तरीकों, भंडारण एवं प्रसंस्करण के बारे में
प्रशिक्षित किया जाएगा। जिलों में भी इसी तरह के प्रशिक्षण कर्यक्रम चलेंगे।
बाजरे की खेती को प्रोत्साहन के लिए प्रस्तावित कार्यक्रम
इसी क्रम में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत 24 जिलों में दो दिवसीय
किसान मेले आयोजित होंगे। हर मेले में 500 किसान शामिल होंगे। इसमें
वैज्ञानिकों के साथ किसानों का सीधा संवाद होगा। ज्वार की खूबियों के प्रति
लोगों को जागरूक करने के लिए रैलियां निकाली जाएंगी। राज्य स्तर पर इनकी
खूबियों के प्रचार-प्रसार के लिए दूरदर्शन, आकाशवाणी, एफएम रेडियो, दैनिक

समाचार पत्रों, सार्वजिक स्थानों पर बैनर, पोस्टर के जरिए आक्रामक अभियान
भी चलाया जाएगा।
गेंहू, धान, गन्ने के बाद प्रदेश की चौथी फसल है बाजरा
उल्लेखनीय है कि गेहूं धान और गन्ने के बाद उत्तर प्रदेश की चौथी प्रमुख
फसल है, बाजरा। खाद्यान्न एवं चारे के रूप में प्रयुक्त होने के नाते यह बहुपयोगी
भी है। पोषक तत्वों के लिहाज से इसकी अन्य किसी अनाज से तुलना ही नहीं है।
इसलिए इसे चमत्कारिक अनाज, न्यूट्रिया मिलेट्स, न्यूट्रिया सीरियल्स भी कहा
जाता है।
हर तरह की भूमि में ले सकते हैं फसल
इसकी खेती हर तरह की भूमि में संभव है। न्यूनतम पानी की जरूरत, 50
डिग्री सेल्सियस तापमान पर भी परागण, मात्र 60 महीने में तैयार होना और
लंबे समय तक भंडारण योग्य होना इसकी अन्य खूबियां हैं। चूंकि इसके दाने छोटे
एवं कठोर होते हैं ऐसे मेंउचित भंडारण से यह दो साल या इससे अधिक समय
तक सुरक्षित रह सकता है। इसकी खेती में उर्वरक बहुत कम मात्रा में लगता है।
साथ ही भंडारण में भी किसी रसायन की जरूरत नहीं पड़ती। लिहाजा यह
लगभग बिना लागत वाली खेती है।
पोषक तत्वों का खजाना है बाजरा
बाजरा पोषक तत्त्वों का खजाना है। खेतीबाड़ी और मौसम के प्रति सटीक
भविष्यवाणी करने वाले कवि घाघ भी बाजरे की खूबियों के मुरीद थे। अपने एक
दोहे में उन्होंने कहा है, "उठ के बजरा या हँसि बोले। खाये बूढ़ा जुवा हो जाय"।
बाजरे में गेहूं और चावल की तुलना में 3 से 5 गुना पोषक तत्व होते हैं। इसमें
ज्यादा खनिज, विटामिन, खाने के लिए रेशे और अन्य पोषक तत्व मिलते हैं।
लसलसापन नहीं होता। इससे अम्ल नहीं बन पाता। लिहाजा सुपाच्य होता है।
इसमें उपलब्ध ग्लूकोज धीरे-धीरे निकलता है। लिहाजा यह मधुमेह (डायबिटीज)
पीड़ितों के लिए भी मुफीद है। बाजरे में लोहा, कैल्शियम, जस्ता, मैग्निसियम
और पोटाशियम जैसे तत्व भरपूर मात्रा मे होते हैं। साथ ही काफी मात्रा में
जरूरी फाईबर (रेशा) मिलता है। इसमें कैरोटिन, नियासिन, विटामिन बी6 और
फोलिक एसिड आदि विटामिन्स मिलते हैं। इसमें उपलब्ध लेसीथीन शरीर के
स्नायुतंत्र को मजबूत बनाता है। यही नहीं बाजरे में पोलिफेनोल्स, टेनिल्स,
फाईटोस्टेरोल्स तथा एंटीऑक्सिडैन्टस् प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। यही वजह है कि

सरकार ने इसे न्यूट्री सीरियल्स घटक की फसलों में शामिल किया है। अपने
पोषण संबंधित इन खूबियों की वजह से बाजरा कुपोषण के खिलाफ जंग में एक
प्रभावी हथियार साबित हो सकता है।
फसल के साथ पर्यावरण मित्र भी है बाजरा
बाजरे की फसल पर्यावरण के लिए भी उपयोगी है। यह जलवायु परिवर्तन
के असर को कम करती है। धान की फसल जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील
है। पानी में डूबी धान की खड़ी फसल में जमीन से ग्रीन हाउस गैस निकलती है।
गेहूं एक तापीय संवेदनशील फसल है। तापमान की वृद्धि का इस पर बुरा असर
पड़ता है। क्लाइमेट चेंज के कारण धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है। ऐसे
में एक समय ऐसा भी आ सकता है जब गेहूं की खेती संभव ही न हो। उस समय
बाजरा ही उसका सबसे प्रभावी विकल्प हो सकता है। इसीलिए इसकी खेती को
भविष्य की भी खेती कहते हैं।
बिना लागत की खेती
बाजरे की खेती में उर्वरकों की जरूरत नहीं पड़ती। इसकी फसल में कीड़े-
मकोड़े नहीं लगते। अधिकांश बाजरे की किस्में भंडारण में आसान हैं। साथ ही
इसके भंडारण के लिए कीटनाशकों की जरूरत नहीं पड़ती। इसी तरह नाम मात्र
का पानी लगने से सिंचाई में लगने वाले श्रम एवं संसाधन की भी बचत होती है।
प्रसंस्करण की काफी संभावनाएं
बाजरे से चपातियां, ब्रेड, लड्डू, पास्ता, बिस्कुट, प्रोबायोटिक पेय पदार्थ
बनाए जाते हैं। छिलका उतारने के बाद इसका प्रयोग चावल की तरह किया जा
सकता है। इसके आटे को बेसन के साथ मिलाकर इडली, डोसा, उत्पम, नूडल्स
आदि बनाया जा सकता है।


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