बेनामी लेनदेन को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला धारा 302 के तहत 3 साल की सजा का प्रावधान हटाया 

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बेनामी लेनदेन कानून को लेकर अहम फैसला सुनाते हुए तीन साल की सजा का प्रावधान रद्द कर दिया। बेनामी लेनदेन निषेध अधिनियम 1988 की धारा 3 (2) को असंवैधानिक बताते हुए शीर्ष अदालत ने इस प्रावधान को स्पष्ट रूप से 'मनमाना' करार दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने संशोधन को बताया करो

इसके साथ ही मामले की सुनवाई कर रहे मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना, न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार और हेमा कोहली की पीठ ने 2016 में इस कानून में मोदी सरकार द्वारा संशोधन को भी गलत ठहराया। कोर्ट ने कहा कि लेन-देन (निषेध) संशोधन अधिनियम, 2016 को पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू नहीं किया जा सकता। इसे एक्ट लागू होने के दिन से ही लागू किया जा सकता है I

पुराने मामले में नहीं लागू होगा कानून

मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अगुवाई वाली बेंच ने कोलकाता हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ केंद्र द्वारा दायर याचिका पर ये फैसला सुनाया है। कोलकाता हाईकोर्ट ने फैसला दिया था कि 2016 का संशोधन अधिनियम प्रकृति में संभावित है और वो पिछले समय के मामलों के लिए लागू नहीं हो सकता।

एक्ट लागू होने के दिन से हो कार्यवाई

कोलकाता हाई कोर्ट के फैसले पर सहमति रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून को पूर्वव्यापी लागू नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार का यह संशोधन मनमाना है और नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसे एक्ट लागू होने के दिन से ही लागू किया जाना चाहिए। पुराने मामलों को 2016 के संशोधित कानून के तहत कार्रवाई न की जाए।

 3 साल तक जेल और जुर्माने का प्रावधान 

बेनामी लेनदेन कानून की धारा 3 बेनामी लेनदेन का निषेध के मुद्दे से संबंधित है और इसकी उप-धारा (2) कहती है कि अगर कोई व्यक्ति बेनामी संपत्ति के लेन देन में शामिल पाया जाता है तो उसे तीन साल तक जेल या जुर्माना या फिर दोनों की सजा हो सकती है। 2016 में संशोधन के तहत बेनामी संपत्तियों को जब्त एवं सील करने का भी प्रावधान था।

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