हजरते इब्राहीम अलै हिस्सलाम की कुर्बानी त्याग बलिदान का प्रतीक है---इमाम अख्तर रजा

उतरौला(बलरामपुर)ईदुल अजहा(बकरीद)का त्यौहार हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है।जिसे त्याग बलिदान के रूप में जाना जाता है। हज़रते इब्राहीम अलै हिस्सलाम ने अल्लाह की रजा के लिए अपने बेटे हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम की कुर्बानी पेश की। यह जानकारी जामा मस्जिद उतरौला के इमाम मौलाना अख्तर रजा ने देते हुए बताया कि हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने हिजरत के बाद बेटे के लिए दुआ की 



इलाही मुझे लाएक़ औलाद दे- तो हमने उसे खुशखबरी सुनाई एक अकलमंद लड़के की- 

*कुर्बानी के वक्त हज़रते इस्माइल अलै हिस्सलाम की उम्र:*
 
कुछ अहले इल्म का क़ौल यह है कि ज़बह का वाक़िया दर पेश आने के वक़्त हज़रते इस्माईल अलै हिस्सालाम की उम्र तेरह (13) साल थी।



*इम्तेहान की वजह*

क्योंकि पहली आयते करीमा मैं यह ज़िक्र हुआ कि अल्लाह तआला ने हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को हलीम बेटे की बशारत दी-  अब इम्तेहान ले कर उसे वाज़ेह कर दिया कि कितना अज़ीम' साबिर' और बुर्दबार बेटा आप को अल्लाह तआला ने अता किया है।जिसने इतने बड़े इम्तेहान को सब्र और खंदा पेशानी से पास किया-
शैतान ने हजरते इब्राहीम अलैहिस्सलाम और आपके बेटे हजरत इस्माइल अलैहिस्सलाम पर कामयाब होने का तमाम इरादा किया फिर भी उसका दांव न चल सका तो उसने बहुत मोटा ताजा बनकर वादी को भर दिया।ताकि आप उससे आगे न जा सकें,हजरते इब्राहीम अलैहिस्सलाम के साथ एक फरिश्ता था जिसने आपको कहा कि उसे मारें आप ने सात कंकरियां मारी तो वह रास्ते से हट गया।दोबारा फिर आगे आने की कोशिश की आपने फिर कंकरियां मार कर रास्ता से हटा दिया‌।तीसरी बार फिर इसी तरह आगे आकर रास्ता बंद कर दिया तो आपने उसी तरह सात कंकरियां मार कर रास्ते से हटा दिया।आज हाजियों पर इस‌ सुन्नते इब्राहीमी पर अमल करना वाजिब कर दिया गया है।अपने महबूबों की अदाएं रब त‌आला को कैसी पसंद आई कि उनको अजीम इबादत का हिस्सा बना दिया।हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम जिल हिज्जा के सात दिन गुजर जाने पर रात को ख्वाब देखा कि कोई कहने वाला कह रहा है बेशक अल्लाह त‌आला तुम्हें बेटा जिबह‌ करने का हुक्म देता है।
 आपने सुबह उस पर तफक्कुर किया और कुछ सोच में रहे कि क्या ये अल्लाह‌ त‌आला का ही हुक्म है या फकत ख्याल तो नही,आठ तारीख गुजर जाने के बाद रात में फिर ख्वाब देखा सुबह यकीन कर लिया कि ये अल्लाह त‌आला की तरफ से ही हुक्म है इसलिए नौ जिल हिज्जा को यौमे अरफा (पहचानने का दिन)कहा जाता है।उसके बाद आने वाली रात को फिर ख्वाब देखने पर सुबह अमल करने का पुख्ता इरादा कर लेने पर ही दस जिल हिज्जा को यौम -उन-नहर (जिबह का दिन)कहा जाता है।

असग़र अली
उतरौला

Post a Comment

If you have any doubts, please let me know

और नया पुराने