संवाददाता अम्बेडकर नगर

अम्बेडकर नगर जिले के तहसील आलापुर क्षेत्र मे
 भौतिकता को छोड़ आध्यात्मिकता की छाँह पुरुषार्थ चतुष्टय के धर्म व मोक्ष का आश्रय ले वर्णाश्रम के ब्रह्मचर्य और सन्यास के हमराही किसी योगी का राजतिलक लोकतंत्र के इतिहास में किसी अजूबी दास्ताँ से कम नहीं है।कदाचित वैश्विक पटल पर चर्चाओं में छाए उत्तर प्रदेश की राजसत्ता पर योगी आदित्यनाथ की एकबार फिरसे ताजपोशी भाग्य और कर्म के समन्वित स्वरूप के साथ ही साथ भोग विलास में रत अन्य राजनेताओं के लिए एक सबक भी है और तमाचा भी।जिसके आगे लोगों के नतमस्तक होने के सिवा और कोई मार्ग नहीं दिखाई देता।आपको बता दे कि
    इसे किस्मत का खेल कहा जाय या फिर राजनेताओं के नेतृत्व पर प्रश्नचिन्ह,बात चाहे जो भी हो,उत्तर प्रदेश की सियासत ने किसी निर्लोभी और निर्मोही राजनेता के रूप में सन्यासी योगी आदित्यनाथ को प्रचंड बहुमत से दुबारा राजतिलक कर यह प्रमाणित कर दिया है कि जनमानस अब महज वायदों के झुनझुनों पर नाचने की बनिस्पत धरातल पर कुछ कर सकने वाले नेताओं के रूप में उत्तर प्रदेश में योगी को ईमानदार, कर्मठ और बेदाग प्रतिनिधि मान चुका है।2022 के चुनावों ने जहाँ योगी को राजतिलक कर एकबार फिरसे शासन सत्ता की बागडोर उनके हाथों में सौंप दी तो वहीं सत्ता की दहलीज से आउट हुए अखिलेश और मायावती जैसों को यहसास भी करा दिया कि आनेवाला वक्त उनकी जातिवादी और तुष्टिकरण सहित विभेदनकारी राजनीति स्वयम उनके लिए भी हितकारी नहीं होगी।जिससे 2024 के लोकसभाई चुनावों के सेमीफाइनल के रूप में यूपी के विधानसभाई चुनाव भाजपा के लिए मील का पत्थर साबित होंगें, इसमें कोई संदेह नहीं है।
     वस्तुतः यदि देखा जाय तो यूपी का विधानसभाई चुनाव राष्ट्रवाद बनाम जातिवादी व तुष्टीकरण का चुनाव रहा।जिसमें एकतरफ जहां योगी आदित्यनाथ कोरोनाकाल के प्रयासों, विकास,बिजली और गुंडा उन्मूलन सहित राष्ट्रवाद के सजग प्रहरी के रूप में तो दूसरी तरफ सपा नीत गठबंधन के अखिलेश यादव मुस्लिम,यादव,राजभर,मौर्य इत्यादि जातियों के सङ्गठन के बलबूते पुरानी पेंशन और लोक लुभावन घोषणाओं के प्रतीक बनकर मैदान में थे।बसपा इस चुनाव में प्ले बैक सिंगर की भूमिका में उपस्थिति तो थी किन्तु उसको कहीं बैटिंग करते हुए देखा नहीं गया।कदाचित बसपा की यही स्थिति सपा के लिए टॉनिक बनी अन्यथा सपा को दो अंकों में सिमटते देर नहीं लगती।
     आज़ादी के पश्चात कई दशकों तक कांग्रेस की सत्ता रहने के बाद चार बार मायावती,तीन बार मुलायम सिंह और एकबार अखिलेश यादव जिस प्रदेश में राज किये हों, यही प्रदेश आज उनके लिए बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना की कहावत चरितार्थ करता हुआ दिख रहा है।दरअसल बसपा और सपा की इस फटेहाली की जिम्मेदार न तो कांग्रेस है और न भाजपा।हकीकत में उठते प्रदेश की जनता ने चार बार के बसपा व चार ही बार के सपा कार्यकालों में प्रदेश की बदतर हालातों की स्वयम गवाह है।यही कारण है की इन दोनों के कार्यकालों में भ्रष्टाचार,डकैती,कमीशनखोरी,गुंडागर्दी व विकास विहीन स्थितियां भाजपा के लिये संजीवनी और योगी जे लिए ब्रह्मास्त्र बनी।जिनका प्रयोग करते हुए योगी ने चुनावों में बसपा,सपा और कांग्रेस को फिर से हाशिये पर कर दिया।कदाचित भाजपा की जीत के मुख्य कारण सपा कार्यकर्ताओं की उद्दंडता और उनके कार्यकालों की करतूतें हैं,जिनपर मतदाताओं ने अपनी नाराजगी जताते हुए भाजपा के पक्ष में मतदान किया।
    राजनीति के जानकार सूत्रों के मुताबिक योगी ने आज अपनी उपस्थिति से न केवल भाजपा नेतृत्व को अपने पक्ष में खड़ा होने को विवश किया बल्कि जनता तो उन्हें मोदी के बाद देश का अगला प्रधानमंत्री तक मानने लगी है।लिहाजा कहना गलत नहीं होगा कि 2030 के बाद का समय योगी के भाग्योदय का स्वर्णिम काल साबित हो तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।यहां यह भी कहना अनुचित नहीं होगा कि अब उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के लिये भी अनुकूल परिस्थितियाँ 2030 के पहले दृष्टिगोचर नहीं होतीं।इसप्रकार योगी की यह नवीन ताजपोशी उत्तर प्रदेश के लिए अंतिम नहीं अपितु निरंतरता की कड़ी कही जा सकती है।जिससे निपटना अखिलेश के मुस्लिम-यादव और बसपा के दलित-मुस्लिम समीकरणों के लिए मुश्किल होगा।
  अन्ततः योगी के दुबारा सत्तासीन होने को राष्ट्रवाद की जीत और माफियागिरी के सफाए के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।जिसका क्रम आनेवाले वर्षों में भी जारी रहने की पूरी प्रत्याशा है।आखिर जनतंत्र में जनता द्वारा प्राप्त जनादेश का सम्मान भी विकास के साथ साथ स्वच्छ प्रशासन और माफियागिरी का खात्मा भी तो है।जिसे सन्यासी से बेहतर कोई और आज के परिप्रेक्ष्य में निभा नहीं सकता।यही कारण है कि योगी का राजतिलक गुंडागर्दी के खिलाफ अमन चैन का जनादेश है।
-उदयराज मिश्र
मण्डल संयोजक, अयोध्यामण्डल
राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ,उत्तर प्रदेश
(माध्यमिक संवर्ग)

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