अंबेडकरनगर: करोड़ों की लागत से बने राजकीय मेडिकल कालेज में इलाज से लेकर जांच तक की व्यवस्था कागजों में पूरी तरह मुकम्मल है, लेकिन हकीकत में मरीजों को मामूली सुविधा के लिए भी तरसना पड़ रहा है। रोजाना सैकड़ों की ओपीडी के बीच यहां शुगर और थायराइड तक की सामान्य जांच भी हफ्तों से नसीब नहीं है। विद्रूप यह कि जांच की सुविधा उपलब्ध न होने के बावजूद मरीजों से शुल्क जमा करा लिया जा रहा है। रिपोर्ट पाने के लिए मरीज और तीमारदार अपनी एड़ियां रगड़ रहे हैं।
डाक्टरों को दिखाने के बाद अमूमन मरीजों को जांच के लिए भेज जाता है, जिसमें सभी की खून की जांच सामान्य तौर पर शामिल रहती है। लेकिन, मेडिकल कालेज में शुगर और थायराइड की जांच की मशीन सप्ताहभर से खराब पड़ी है। डिजिटल एक्सरे भी रोजाना नहीं हो रहा है। टेक्नीशियन की कमी के चलते इसे एक दिन के अंतर पर संचालित किया जा रहा है। बाजार में जांच की काफी महंगी सुविधा एमआरआई की स्थिति और भी शर्मिंदा करने वाली है। पिछले दो-तीन महीने से यह मशीन चली ही नहीं है। कालेज प्रशासन का दावा है कि विशेषज्ञों की कमी के चलते रिपोर्ट तैयार करने की व्यवस्था नहीं है। मजबूरी में मरीज निजी जांच केंद्रों पर अपनी जेब कटा रहे हैं। मंगलवार को यहां अकबरपुर से आईं मरीज प्रियंका तिवारी के तीमारदार गिरीश तिवारी ने बताया कि बीते 21 दिसंबर को डाक्टर को दिखाया था। उन्होंने थायराइड की जांच लिखी थी। उसी दिन जांच फीस भी करीब 400 रुपये जमा कर दिया, लेकिन रिपोर्ट अभी तक नहीं मिली। इसके लिए चार बार चक्कर लगा चुके हैं। हर बार यही बताया जाता है कि अभी मशीन सही नहीं हुई है, बाद में आइए। अधीक्षक कार्यालय में भी इसकी शिकायत की, लेकिन वहां उपस्थित दिलीप गुप्त ने बताया कि हम कुछ नहीं कर सकते। अधीक्षक साहब मीटिग में हैं, बाद में आइए।इसी तरह मरीज जयश्री के साथ आए रामबहल ने बताया कि डाक्टर ने शुगर की जांच कराने की सलाह दी है, लेकिन बताया गया कि अभी रिपोर्ट मिलना संभव नहीं है। मेडिकल कालेज परिसर के बाहर खड़े मरीज शिवदत्त ने बताया कि खून की जांच के लिए मशीन खराब बताकर वापस कर दिया गया। अब बाहर लैब पर खून का नमूना देने जा रहे हैं। दवा वितरण की भी स्थिति संतोषजनक नहीं है। कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रोन के बढ़े खतरों के बीच काउंटरों पर दवा लेने के लिए मारामारी है। लंबी लाइन में लगने के बाद किसी को आधी दवाएं मिल रही हैं तो किसी को तिहाई। मरीज सविता, आशीष ने बताया कि जो दवा नहीं मिली है, उसे बाहर से खरीदेंगे। इलाज की सुविधा पर सालाना करोड़ों खर्च होने के बाद भी मरीजों को इस तरह की दुश्वारियां झेलने के पीछे मुख्य रूप से यहां का कालेज प्रशासन जिम्मेदार है, लेकिन उसे लोगों की सेहत की चिता नजर नहीं आती। जांच विभाग में बैठे डा. मनोज गुप्त ने बताया कि कुछ मशीन खराब जरूर है। उसे पैक कराया गया है, अब बनने के लिए भेजा जाएगा। थायराइड जांच की मशीन खराब होने की सूचना है। इसके बनने में थोड़ा समय लग जाता है। दो दिनों से अवकाश पर हूं, जल्द ही मशीन सही कराकर सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी।
डा. बृजेश कुमार, चिकित्सा अधीक्षक मरीजों की खून की जांच हो रही है। मशीनें भी हैं, जांच में ज्यादा दिक्कत नहीं है। थायराइड जांच की मशीन खराब है। मशीन का सामान बाहर से आता है, थोड़ा समय लग जाता है। जल्द ही सही हो जाएगा। किसी मरीज से पैसा जमा करवाने की बात संज्ञान में नहीं है।

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